कहीं यह नूरा कुश्ती तो नहीं
दिवाकर मुक्तिबोध
प्रदेश भाजपा के लिए सब कुछ बढ़िया-बढ़िया हो रहा है. एक तो सरकार के मुखिया के रूप में रमन सिंह का शालीन चेहरा, जिस पर कोई दाग नहीं, भले ही सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर हो. ऐसी स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री को निरंकुश नौकरशाही और निरंकुश भ्रष्टाचार से कोई लेना-देना नहीं है.
दरअसल, उन्होंने 2003 से 2008 तक अपने पहले कार्यकाल में अपनी छवि पर खूब मेहनत की, लिहाजा इसमें ऐसी चमक आ गई कि 2008 के बाद दूसरे कार्यकाल में उसमें चार चांद लग गए. आगामी नवम्बर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में यदि पार्टी पुन: सत्ता में आई तो उसका बहुत कुछ श्रेय रमन सिंह को जाएगा.
दूसरा कारण बनेगा राज्य सरकार की कतिपय जनकल्याणकारी नीतियां विशेषकर सुव्यवस्थित सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिसके अन्तर्गत चावल, गेंहू एवं चना राज्य के 35 लाख से अधिक बीपीएल परिवारों को लगभग मुफ्त में दिया जा रहा है.
लेकिन सत्ता की हैट्रिक के लिए एक और कारण जिम्मेदार रहेगा, जिसकी वजह से प्रदेश भाजपा का नेतृत्व बहुत मुदित है. वह कारण है कांग्रेस का आंतरिक कलह, बेइंतिहा गुटबाजी तथा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और संगठन के बीच दिनों दिन तीखी होती जा रही स्वाभिमान की जंग.
भाजपा के खुश होने का यह बहुत बड़ा कारण है. यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो हैट्रिक में क्या शक? मौजूदा हालात में डॉ. रमन सिंह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने देख ही सकते हैं.
लेकिन सवाल है, क्या प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों जो कुछ घटित हो रहा है, उसके पीछे कोई कूटनीति है जिसने वास्तविकता पर परदा डाल रखा है? क्या जोगी एवं संगठन के नेताओं के बीच नूरा कुश्ती चल रही है ताकि राजनीतिक भ्रम बना रहे?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि अजीत जोगी पहले की तुलना में ज्यादा आक्रामक हुए हैं. जुलाई के अंतिम सप्ताह में नई दिल्ली में कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात एवं बातचीत के बावजूद उनका ऐसा रुख आश्चर्यजनक है. यह बात गले नहीं उतरती कि हाईकमान से एकजुटता एवं सामंजस्य की हिदायत को वे पूरी तरह नजरअंदाज करेंगे तथा अपनी अलग लाइन खींचते चले जाएंगे जैसा कि वे इन दिनों अपने दौरे में कर रहे हैं.
मिनी माता की पुण्यतिथि के अवसर पर जोगी ने जांजगीर-चांपा के बलौदा, रायपुर जिले के अभनपुर एवं दुर्ग जिले के पाटन में आमसभाओं को संबोधित किया. जबर्दस्त भीड़-भाड़ वाली इन सभाओं में जोगी ने अप्रत्यक्ष रुप से न केवल स्वयं को भावी मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट किया वरन इन सभाओं में अपनी पसंद के उम्मीदवारों के नाम भी घोषित किए. अपनी ही पार्टी के विरोधी नेताओं के क्षेत्र के उनके ये दौरे क्या महज भड़ास निकालने के लिए हैं या इनके पीछे कोई मकसद छिपा हुआ है?
इन सभाओं में जोगी ने जो तेवर दिखाए, उससे संगठन खेमे में खलबली मच जानी चाहिए लेकिन ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है. और तो और प्रदेश प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद तथा प्रदेशाध्यक्ष चरणदास महंत कह रहे हैं कि जोगी के दौरे कांग्रेस और छत्तीसगढ़ को मजबूत करने के लिए हैं. इस प्रतिक्रिया से यह आभास होता है कि सब कुछ सधा-बधा है. ये कूटनीतिक युद्ध है जिसका मकसद विपक्ष को यह संदेश देना है कि पार्टी आंतरिक कलह में बुरी तरह उलझी हुई है तथा इससे उबर पाना उसके लिए मुश्किल है. इसलिए वह बेफ्रिक रहे.
अगर यही सच है तो भाजपा को सतर्क रहने की जरूरत है. वैसे भी कांग्रेस के हमले तेज होते जा रहे हैं. स्व. नंदकुमार पटेल ने लगभग मुर्दा संगठन को जिंदा करके चुनौती के रुप में खड़ा कर दिया था. उनकी मौत के बाद आक्रमण की धार कुंद नहीं पड़ी बल्कि वह तेजतर होती जा रही है.
जोगी मिनी माता पुण्यतिथि पर आयोजित श्रृंखलाबद्ध जनसभाओं में भले ही विरोधी गुट के नेताओं की खबर ले रहे हैं लेकिन दरअसल वे पार्टी के लिए अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस से छिटके इस वर्ग का झुकाव यदि पार्टी की ओर हो गया तो-भाजपा की हैट्रिक की कल्पना धराशायी हो जाएगी.
‘अपनों’ को कोसते हुए जोगी इसी मुहिम पर काम कर रहे हैं. इसीलिए उनके तमाम तल्ख बयानों के बावजूद प्रदेश कांग्रेस ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया है अन्यथा प्रदेश चुनाव समिति की 12 अगस्त से नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे के निवास में हुई बैठक में हो हल्ला मचता. चुनाव समिति के सदस्य के रुप में जोगी की इस बैठक में उपस्थिति यह दर्शाने के लिए काफी है कि कांग्रेस एक सोची समझी रणनीति पर काम कर रही है, जिसका एक सिरा जोगी को पकड़ा दिया गया है.