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ओपी समेत 4 IAS पर सवाल

रायपुर | संवाददाता: दंतेवाड़ा ज़मीन घोटाला में कम से कम 4 आईएएस की भूमिका रही है. इस मामले के दस्तावेज़ बताते हैं कि ओपी चौधरी समेत चार आईएएस इस ज़मीन के लेन-देन में शामिल थे. जिसे लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की थी.

आम आदमी पार्टी द्वारा ज़मीन घोटाला के दस्तावेज़ों के सामने लाने के बाद मामले की परतें उधड़नी शुरू हो गई हैं.

यहां तक कि भाजपा नेता ओपी चौधरी मामले के सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला दे कर आप को चुनौती दे रहे हैं, उस मामले में हकीकत ये है कि ओपी चौधरी या राज्य सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गई ही नहीं है. हाईकोर्ट द्वारा सीधे-सीधे कलेक्टर और दूसरे अधिकारियों को इस ज़मीन घोटाला के लिये जिम्मेवार माना है, उस मामले में पीड़ित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

ज़मीन की अदला-बदली को लेकर हुये भ्रष्टाचार के इस मामले में शामिल चार आईएएस में से एक ओपी चौधरी ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है. वहीं बाकि तीन आईएएस आज कलेक्टर हैं. इन तीन लोगों में नीरज बनसोड़, केसी देव सेनापति और सौरभ कुमार कलेक्टर हैं.

जिस समय जमीन की अदला-बदली का खेल शुरू हुआ, उस समय नीरज बनसोड़ दंतेवाड़ा जिला पंचायत में मुख्य कार्यपालन अधिकारी थे. इसी तरह सौरभ कुमार तब एसडीएम थे. ओपी चौधरी के बाद अंतिम रुप से इस मामले को जिस कलेक्टर के हस्ताक्षर से अंजाम दिया गया, वो नाम केसी देवसेनापति का है.

दिलचस्प ये है कि पिछले साल एक साथ इनमें से तीन आईएएस अफसरों को केंद्र सरकार ने सम्मानित किया था. रायपुर कलेक्टर ओपी चौधरी को स्टैंडअप इंडिया के तहत बेहतर क्रियान्वयन, दंतेवाड़ा कलेक्टर सौरभ कुमार को पालनार कैशलेस विलेज और सुकमा कलेक्टर नीरज कुमार बंसोड़ को एजुकेशन सिटी बनाने के लिए प्रधानमंत्री अवॉर्ड दिया गया था.

ज़िला पंचायत सीईओ ने दिया था प्रस्ताव

जमीन की पहली अदला-बदली जिला पंचायत के विस्तार के नाम पर शुरू की गई. दस्तावेज़ों के अनुसार प्रस्ताव देने का काम ज़िला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी नीरज बंसोड़ की ओर से दिया गया. इसे तत्कालीन कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी ने तत्कालीन एसडीएम सौरभ कुमार को फारवर्ड किया और प्रक्रिया पूरी कर ली गई.

अदला-बदली के दूसरे चरण में 50 डिसमिल जमीन के स्थान पर 23 डिसमिल की साफ सुथरी करवाई गई जमीन की फाईल कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी ने आगे बढ़ाई तब भी सौरभ कुमार एसडीएम थे. इस फाईल पर शेष कार्रवाही तत्कालीन कलेक्टर केसी देव सेनापति ने की.

अब भाजपा के नेता बने ओमप्रकाश चौधरी भले सार्वजनिक मंच से मामले को चुनौती दे रहे हैं. लेकिन इस मामले में कलेक्टर समेत दूसरे अधिकारियों की भूमिका पर हाईकोर्ट ने गंभीर सवाल उठाये. इसे हाईकोर्ट ने सीधे-सीधे ज़मीन घोटाला बताया.

दिलचस्प ये है कि जिस मामले में कलेक्टर को भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेवार बताया गया, उसमें आरोपी कलेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाया. ओपी चौधरी सुप्रीम कोर्ट में मामले के लंबित होने का जो हवाला दे रहे हैं, उस मामले में अपीलकर्ता ओपी चौधरी या छत्तीसगढ़ सरकार नहीं है.

ज़मीन भ्रष्टाचार के इस मामले में अदला-बदली से मिली जमीन पर निर्मित काम्प्लैक्स के मौजूदा मालिक व उसके खरीदारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा अपने हक के लिए खटखटाया है. जिस पर फिलहाल स्थगन मिला हुआ है.

जमीन अदला-बदली मामले में हाईकोर्ट की डबल बेंच की कठोर टिप्पणी व जांच के आदेश को छत्तीसगढ़ शासन ने गंभीरता से नहीं लिया. यही कारण है कि जांच समेत भ्रष्टाचार के इस मामले में कार्रवाई तो दूर, सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी ले कर नहीं गई.

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