अब स्वीकार्यता आपका आभूषण हो ओपी भाईसाब
देवेश तिवारी अमोरा | फेसबुक : ओपी भाईसाब को कब लगा कि राजीनीति में आना चाहिए, जब वे निगम की कमिश्नरी में थे तब, तीन जिलों की कलेक्टरी में या जनसम्पर्क संचालक रहने के दौरान ?
ओपी भाईसाब को लेकर आपका अनुभव भले ही सुखद रहा हो लेकिन पत्रकार के तौर पर मेरा अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा. वे दूर की कौड़ी पहले ही भांप चुके थे, जब वे जनसम्पर्क के संचालक रहने के दौरान तल्ख खबरों के प्रसारण पर तल्ख होते थे. संचालक का काम खबरों की समीक्षा करना नहीं था तब भी वे सरकार को नापसंद खबरों को लेकर इस तरह बौखलाया करते थे जैसे उनके व्यक्तिगत खबरें बनाई गई हो. यह सरकार के प्रति उनकी असीमित निष्ठा का परिणाम था. उन्होंने पत्रकार को दो हिस्सों में बांट रखा था, हमारे वाले और हमारे विरोध वाले.
जब पीएम मोदी पहली विजिट में जावंगा गए तब एक उपलब्धि का बखान करने वाले साक्षात्कार के लिए भी आपसे मिन्नतें करनी पड़ी.
एक गरीब को रायपुर जिले में कागज पर मृत घोषित कर दिया गया, मैं चाहता था कि कलेक्टर बाईट देकर कह दें, पेपर सुधार कर उन्हें जीवित घोषित करने का बयान दे दें, साहब ने गाड़ी का कांच बंद कर लिया. यानी सरकार के प्रति असीमित प्रेम और खुद को सत्ता का स्थायी दत्तक पुत्र समझने का भाव हमेशा ही नजर आया, जबकि हम अपेक्षा करते हैं ब्यूरोक्रेसी निष्पक्ष होकर सभी पहलुओं को देखेगी.
आज आप नेता हैं और नेतागिरी में आप भयानक सफल होंगे. भयानक का आशय आप सकारात्मक ही लें. राजनीति प्रवेश पर हजारों सवाल पर आप चुप रहे, इस बीच कौन-सा वीडियो प्रवेश के तुरन्त बाद जाएगा, किस फ़ोटो को पहले पोस्ट करना करना है, सब तय था.
एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह आपने सम्भावनाओं को आसानी से मौन रहकर खुला छोड़ दिया. जवाब नहीं दिया मगर मना भी नहीं किया.
केवल मंचों पर बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी में आपने वीडियो तैयार किया. आप जानते थे कि राजनीति में केवल आईएएस के तमगे को बेचकर आप सफल नहीं हो सकते, लिहाजा आपने अपने संघर्ष पथ को बार बार मोटिवेशन के जरिये कांक्रीट किया. आप दिल्ली में थे और पूर्व रिकार्डेड वीडियो सोशल मीडिया में तैरने लगा. सब कुछ समय पर हो रहा है.
आप नेता बनने के पहले जान चुके थे कि मां और पिताजी को कैसे सहानुभूति का माध्यम बनाना है. बार बार मैं छोटा था तब पिता का साया उठ गया, मेरे स्कूल की छत चुहती थी, कहकर आपने सहानुभूति और अपने संघर्ष को सामने रखा. यही कुशल राजनीति का गूढ़ रहस्य है, जिसे आपने महीने भर से सालों पहले समझ लिया.
आप बाय बर्थ लीडर हैं. जो इस मुगालते में हैं कि आप आज नेता बने हैं, वे आपको समझने में कमजोर हैं. इन सबके बाद भी आपकी आत्मीयता लुभाती है. आपसे सहमति वाले करीब पाए जाएंगे मगर राजनीति में असहमति को प्रश्रय देना आपको बड़ा बनाएगा. अटल जी की कविता के साथ उनके उदार ह्रदय को भी अपने भीतर लाना होगा, जो एक जनसम्पर्क संचालक के काकस में बसे एकगामी सोच से सम्भव नहीं है. अब आपको ब्यूरोक्रेसी के दम्भ और अस्वीकार्यता के स्वभाव से निकलकर, सब कुछ समा लेने वाला शिव बनना होगा. राजनीति में एक तीक्ष्ण बुद्धि के विलक्षण और संघर्षों की बुनियाद पर बनाए गए व्यक्तित्व का स्वागत होना बेहद सुखद है. आप बेहद सफल हों. शुभकामनाएं !