खरसिया नहीं, चंद्रपुर से लड़ेंगे ओपी ?
रायपुर | संवाददाता: रायपुर के पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी चंद्रपुर विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं. पहले भाजपा की टिकट पर उनके खरसिया से चुनाव लड़ने का अनुमान था लेकिन खबर है कि भाजपा से जुड़ा एक धड़ा उन्हें खरसिया के बजाये चंद्रपुर से चुनाव मैदान में उतारने के पक्ष में है. राजनीति से जुड़े उनके परिजन भी खरसिया के बजाये चंद्रपुर से चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं.
गौरतलब है कि 1977 में विधानसभा सीट घोषित हुई खरसिया पर हमेशा से कांग्रेस का कब्जा रहा है. कांग्रेस के लिये यह अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में भी किस हद तक सुरक्षित सीट थी, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने इस सीट से चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचना ज्यादा मुफीद समझा था.
1990 से इस सीट से कांग्रेस नेता स्व. नंद कुमार पटेल चुनाव जीतते रहे और वे मध्यप्रदेश समेत छत्तीसगढ़ में भी मंत्री रहे थे. माओवादियों द्वारा उनकी हत्या के बाद उनके बेटे उमेश पटेल ने इस सीट से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे.
2003 में नंद कुमार पटेल को जब 70,433 वोट मिले थे, तब भाजपा के लक्ष्मी पटेल को महज 37,665 वोट से संतोष करना पड़ा. अगली बार यानी 2008 में भी नंद कुमार पटेल को 81,497 वोट मिले और भाजपा की लक्ष्मी देवी पटेल को 48,069 वोट मिले. 2013 में उमेश पटेल ने रिकार्ड बनाया और कुल 95,470 वोट हासिल किये, जबकि भारतीय जनता पार्टी के जवाहरलाल नायक 56,582 वोटों में ही सिमट कर रह गये. कुल मिला कर ये कि खरसिया सीट से चुनाव लड़ना औपी चौधरी के लिये खतरनाक हो सकता है.
इसके उलट चंद्रपुर विधानसभा से अभी भाजपा के युद्धवीर सिंह जूदेव विधायक हैं. भाजपा में एक गुट ऐसा है, जो किसी भी हाल में युद्धवीर को इस सीट से 2018 में विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने देने के पक्ष में नहीं है. यूं भी समय-समय पर सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर करने वाले युद्धवीर सिंह जूदेव कई लोगों को खटक रहे हैं.
पिछले पांच चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि पांच में से एक बार एनसीपी और एक बार कांग्रेस को यह सीट मिली है. तीन बार इस सीट पर भाजपी का कब्जा रहा है. 1990 में भाजपा के दुश्यंत कुमार सिंह जूदेव को जहां 29029 वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को 18900 वोट से संतोष करना पड़ा था. 1993 में बाजी पलटी और कांग्रेस के नोबल वर्मा को 24934 वोट मिले और भाजपा को 14922 वोट ही मिल पाये. 1998 में बाजी फिर पलटी और भाजपा की रानी रत्नामाला देवी को 39995 वोट मिले जबकि कांग्रेस 28989 पर सिमट गई.
राज्य बनने के बाद यानी 2003 में इस सीट पर एनसीपी के उम्मीदवार नोबल वर्मा ने 31929 वोट ला कर जीत का परचम लहराया. इस चुनाव में कांग्रेस को 17262 वोट मिले, जबकि भाजपा को 19498 वोट से संतोष करना पड़ा.
2008 में भाजपा के युद्धवीर सिंह जूदेव को अप्रत्याशित रुप से 48843 वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 31553 वोट ही मिले. इस चुनाव में बसपा को 25426 वोट मिले थे. कांग्रेस और भाजपा के बीच वोटों का अंतर 17290 था. अगले चुनाव यानी 2013 में युद्धवीर सिंह जूदवे को 51,295 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 45078 वोट ही मिल पाये. दोनों पार्टियों के बीच वोटों का अंतर महज 6217 रह गया.
पांच सालों में 17290 से घट कर 6217 के वोटों का अंतर भाजपा के एक गुट को भी परेशान कर रहा है. यही कारण है कि इस बार के चुनाव में पार्टी युद्धवीर के बजाये किसी दूसरे उम्मीदवार पर दाव लगा सकती है. ऐसे में ओपी चौधरी का चेहरा भारतीय जनता पार्टी को चंद्रपुर के लिये जंच रहा है. पहला चुनाव और कम चुनौतियों के लिहाज से ओपी चौधरी के लिये भी यह सीट पहली पसंद हो सकती है.