‘हिंदुत्वा’ का तंबू
उर्मिलेश | फेसबुक: उनके ‘हिंदुत्वा’ का तंबू तार-तार हो रहा है! उसमें से ‘नंगा मनुवादी प्रेत’ उभर रहा है! जाति-उत्पीड़न और वर्ण-भेद ने समाज में विद्वेष और विभाजन को और बढ़ाया है!
डॉ अंबेडकर ने बहुत पहले कहा था, जाति यानी वर्ण असामाजिक, अलोकतांत्रिक और अंततः राष्ट्र निर्माण में बाधक है. इसलिए उन्होंने जातियों के विनाश का आह्वान किया. पर ‘हिंदुत्वा-मनुवादी’ जाति मिटाने की बात कैसे मानते!
‘हिंदुत्ववादी’ करें क्या, इनका ‘हिंदुत्वा’ और ‘राष्ट्रवाद’, दोनों जाति और वर्ण के बगैर सांस ही नहीं लेते! इसीलिए मैं कहता हूं, इनका ‘हिंदुत्वा’ दरअसल ‘मनुवाद’ है, इसका दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और सवर्ण पृष्ठभूमि के श्रमजीवी लोगों के धर्म-कर्म से कोई रिश्ता नहीं! वह राष्ट्र के निर्माण और उसके सुदृढ़ीकरण में बाधक है!
‘हिंदुत्वा’ को खारिज करो, मनुवादी-हिंदुत्वा के हिंसक अभियान और लिंचिंग गिरोहों के कुकर्म से भारत को बचाओ, जनतंत्र और समाज को बचाओ! नरेंद्र दाभोलकर, प्रो कलबुरगी, गोविंद पानसारे और गौरी लंकेश के हत्यारे ‘मनुवादी हिंदुत्वा’ की शैतान संतानें हैं! उमर खालिद, स्वामी अग्निवेश, डॉ हरिनारायण ठाकुर और असिस्टेंट प्रोफेसर संजय कुमार के हमलावर भी वही हैं! मुट्ठी भर लोग सत्ता की छाया में हत्या और हिंसा का तांडव कर रहे हैं। क्या लोग एकजुट होकर इनका मुकाबला नहीं कर सकते? देश और समाज बचाना है तो खड़ा होना होगा!