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राजीव गांधी: प्रतिमा के खंडित बिम्ब

कनक तिवारी | फेसबुक: ‘राजीव गांधी मेनी फेसेट्स’ शीर्षक की पुस्तक हरिश्चंद्र ने 62 प्रमुख लोगों के इंटरव्यू में शामिल कर प्रकाशित की थी. उस मंत्रालय से पुरस्कार प्राप्त लेखक होने से मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने भूमिका लिखी. अर्जुन सिंह ने पुस्तक को ‘अति पठनीय‘ घोषित किया. पुस्तक का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने किया. उसे ऐसा महत्व प्रदान किया जिसके लायक किताब कतई नहीं रही है.

किताब में अनेक गैरराजनीतिक व्यक्तियों के विचारों के अलावा राजीव गांधी के समर्थकों और कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की प्रतिक्रियाएं हैं. हरिश्चंद्र ने विरोधी दलों के नेताओं, विदेशी पत्रकारों तथा अन्य व्यक्तियों के विचार भी शामिल किये. पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह, लोकसभा में विपक्ष के लेता लालकृष्ण आडवाणी, भारत में बी.बी.सी. के संवाददाता मार्क टुली, लेखक खुशवंत सिंह, छायाकार रघु राय, पत्रकार राजीव शुक्ला तथा राजीव देसाई, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन तथा पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारुख अब्दुला, सीनियर एडवोकेट पी.पी. राव भी शामिल किए गये.

राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, उपराष्ट्रपति के.आर. नारायण, प्रधानमंत्री पी.व्ही. नरसिंहराव तथा मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह सहित लोकसभा के अध्यक्ष शिवराज पाटिल, राज्यसभा की उपाध्यक्षा डॉ. नजमा हेपतुल्ला, श्रीमती शीला कौल, भजनलाल, बेअंतसिंह, वसंत साठे, आर.के. दोरेन्द्र सिंह, रिसांग कीसिंग, पी. शिवशंकर, ए.आर. अंतुले, प्रणव मुखर्जी, सुखराम, गिरधर गोमांग, पी. चिदंबरम, नटवर सिंह, रोमेश भंडारी, आर.एल. भाटिया आदि ने भी राजीव गांधी के व्यक्तित्व के आयामों का उद्घाटन करने की कोशिश की है.

ज्ञानी जैलसिंह ने राष्ट्रपति-प्रधामंत्री संबंधों के संदर्भ में उद्घाटन करने के बदले अनायास ही पोस्टमार्टम करने की कोशिश की. कई व्यक्तियों ने जिनमें प्रमुखतः विरोधी दलों के लोग शामिल हैं, राजीव गांधी के संबंध में विवादास्पद बातें कहीं. ऐसा नहीं है, युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी से गलतियां नहीं हुईं. लेकिन आने वाले इतिहास में उन्हें केवल गलतियों के आधार पर आंकलित करने की हर कोशिश भी गलत होगी.

पांच वर्षीय प्रधानमंत्री काल को राजीव ने इतना घटना प्रधान तो बना दिया था कि देश को स्वीकार करना पड़ा है कि चाहे जो कुछ भी हो वह गति राष्ट्रीय जीवन से छिन गई है. ज्ञानी जैलसिंह ने अलबत्ता स्वीकार किया उन्हें राष्ट्रपति बनाने इंदिरा जी की राय बनाने राजीव गांधी की भी भूमिका थी.

ज्ञानी जैलसिंह ने कहा श्रीमती इंदिरा गांधी की दुखद हत्या के बाद उन्होंने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का खुद फैसला कर लिया था. भले ही राजीव अनुभवहीन थे. ज्ञानी जी के अनुसार प्रणव मुखर्जी तथा नरसिंहराव उनके सबसे पहले मुलाकाती नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. ज्ञानीजी ने वरिष्ठ नेताओं से सलाह मषविरा करने के बदले अपने सचिवों बंदोपाध्याय तथा बिंद्रा से विचार विमर्श किया था. उन्होंने भी राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सलाह दी. सबकी राय में केवल राजीव थे जो देश के नाजुक दौर में राष्ट्र को एक रख सकते थे.

ज्ञानीजी के अनुसार राजीव गांधी का व्यक्तित्व करिश्माई था. वे कांग्रेस के सबसे बड़े वोट संग्राहक थे. मधुर संबंधों के बावजूद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंध कुछ महीनों बाद बिगड़ गये. राजीव ने राष्ट्रपति की अनेक सलाहों को सुन तो लिया, उन पर अमल नहीं किया. ज्ञानीजी ने रहस्योद्घाटन किया राजीव राष्ट्रपति के विरूद्ध महाभियोग लाने का विचार कर रहे थे. उनका इशारा पी. चिदम्बरम की ओर रहा है.

राजीव गांधी की मृत्यु के बाद गड़े मुर्दे उखाड़े गए. ज्ञानीजी ने कहा तत्कालीन मंत्री के.के. तिवारी ने उनके विरूद्ध लोकसभा में अभद्रतापूर्ण बातें कहीं. तब उन्होंने मन बना लिया था कि अब वे राजीव सरकार को भंग कर सकते थे. उन्होंने दो कारणों से सरकार को भंग नहीं किया.

पहला तो यह कि राजीव ने क्षमा मांग ली थी. दूसरा यह कि राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया जाता तो उनसे अपेक्षाकृत कमजोर व्यक्ति प्रधानमंत्री के पद पर होता. वह लोकतंत्रीय सरकार को ठीक से नहीं चला पाता. सेना द्वारा शासन के सूत्र अपने हाथ में लिये जाने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता था.

जिन्हें ज्ञानी जैलसिंह के राष्ट्रपति भवन के आखरी दिनों के किस्से याद हैं, वे उनके तर्को से सहमत नहीं हो सकते. देश को उन नेताओं के नाम याद हैं जिन्होंने तिकड़मबाजी करके तत्कालीन राष्ट्रपति को बरगला कर राजीव सरकार को भंग करने के घृणित प्रयास किये थे. समाचार पत्रों में चटखारे ले लेकर किस्से छपाये गये थे.

खबरें अब तक लोगों के दिमागों में कहीं न कहीं कुलबुला रही हैं. देश पूछना चाहेगा क्या किसी प्रधानमंत्री को बहुमत होने के बावजूद केवल राष्ट्रपति से मतभेद के आधार पर हटाया जा सकता था? क्या भारत जैसे देश में तीन चौंथाई बहुमत वाली कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री को हटा देने मात्र से सत्ता में सेना के आने का मार्ग प्रशस्त हो सकता था? ज्ञानी जी नहीं जानते थे चार या पांच दिनों के बाद देश के नये राष्ट्रपति के रूप में वेंकटरमण अपने पूर्ववर्ती द्वारा लिये गये निर्णयों पर पुनर्विचार नहीं करते?

जाहिर है राजीव गांधी ने ऐसा कोई संवैधानिक उल्लंघन नहीं किया था. इस संबंध में संविधान के पंडितों ने गोपनीय और प्रकट तौर पर भी अपनी राय व्यक्त की थी. राष्ट्रपति को अधिकांश विद्वानों ने राजीव सरकार को भंग करने से मना किया था. आज राजीव गांधी के संबंध में विवादास्पद बातों पर टिप्पणी करने से परहेज करना चाहिए.

पुस्तक में अन्य अनेक महानुभावों के व्यक्तिगत विचार रंगीन हैं. ये विचार परीकथाओं के दंतनायक के लिए चित्रित किए गए. राजीव गांधी के प्रति अभिनंदन पत्र या निन्दा प्रस्ताव की शक्ल में भले हों. ऐसे विचार इतिहास की बुनियाद नहीं बनते.

वक्त अब भी राजीव गांधी के करीब है. उनके संबंध में तटस्थ और ठंडा मूल्यांकन करना संभव नहीं है. मात्र 62 व्यक्तियों के चुने गये प्रश्नों के उत्तर में कहे गये वाक्यांश राजीव गांधी की जीवनी नहीं बन सकते. ये विचार किसी प्रतिमा को खंडित दर्पण से दिखाये गये बिम्ब जरूर हैं. इन बिम्बों के आधार पर राजीव गांधी को समझने की कोशिश का दावा करना एक बेमानी बात है.

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