ट्रंप का ब्रिटेन दौरा
त्रिभुवन | फेसबुक: अल्लामा इक़बाल का एक शेर है : एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना.
बरतानिया को लेकर इक़बाल की कुंठा स्वाभाविक थी, लेकिन यह कुंठा मेरे भीतर भी गहरी दबी हुई है और अस्वाभाविक भी नहीं है. इसलिए जब अमेरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कुछ अशोभनीय और नागवार हरकतें कीं तो उन्होंने मेरा मन मोह लिया. हालांकि अब वह ज़माना गया जब ब्रिटिशर्स का दुनिया में एजाज़ था. अब उसके लिए गर्दिशे-ज़माना ही है.
ब्रिटेन यात्रा के दौरान ट्रंप की हरकतों ने बरतानिया के लोगों को बहुत सही से समझा दिया : तेरी निगाह से दिल सीनों में कांपते थे, खो गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना! ट्रंप को लोग भले बेवकूफ़ समझते हों, लेकिन है वह बहुत चालाक और डेढ़श्याणा नेता. जो हरकतें ब्रिटेन दौरे के दौरान हमारे प्रधानमंत्री को करनी थी, ट्रंप ने कीं और साबित किया कि ये हरकतें अमेरिका का नेता ही कर सकता है. ये किसी हिंदुस्तानी या पाकिस्तानी के बूते की बात नहीं. ट्रम्प ने ये सब करके बता दिया कि वे दुनिया के ज़्यादातर देशों की तरह ब्रिटेन को भी ठेंगे पर रखते हैं और दुनिया की असली ताक़त वे ही हैं. उन्होंने ब्रिटिशर्स की उन अावाज़ों पर भी ध्यान ही नहीं दिया, जिनमें ट्रंप की बहुत निंदा की जा रही थी. उन्होंने उस अदा से ब्रिटेन का दौरा किया, मानो कह रहे हों : राज़-ए-हरम से शायद इक़बाल बा-ख़बर है, हैं इस की गुफ़्तगू के अंदाज़ महरमाना.
ट्रंप ने बरतानिया की धरती पर साबित किया कि उर्यां हैं तिरे चमन की हूरें और चेताया कि चाक-ए-गुल-ओ-लाला को रफ़ू कर. इसका सबूत ये है कि वे अपनी पत्नी के साथ जब शनिवार को ब्रिटिश महारानी से मिलने वाले थे तो उन्होंने महारानी को ख़ूब इंतज़ार करवाया. वे बेचारी घड़ी ही देखती रहीं. ब्रिटिश समाज की निगाहों में ये हरकत बहुत बेहूदा थी. लेकिन इतना ही नहीं, उन्होंने आने के बाद भी कुछ कमी नहीं रखी. ब्रिटेन की महारानी से जब भी कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष मिलता है तो उसे कहा जाता है कि वह नत-नयन और नत-ग्रीवा होकर खम्मा घणी करे. ट्रंप ने ऐसा नहीं किया तो रानी ने ही अभिवादन के लिए अपना बूढ़ा-कांपता हाथ आगे बढ़ाया. मुझे लगता है कि ये हरक़त या तो मोदी को करनी चाहिए थी या जब प्रधानमंत्री थे तो नवाज़ शरीफ़ को. लेकिन शायर लोग कह गए हैं : बे-ज़ौक़ नहीं अगरचे फ़ितरत, जो उस से न हो सका वो तू कर. इसलिए जो मोदी नहीं कर सके, वह ट्रंप ने कर दिखाई.
सियासत में सिर्फ़ ताक़त या चालाकी नहीं चलती. सियासत में ज़माना उसी का होता है, जिसकी तबियत होती है. और ये चीज़ इस समय ट्रंप नामक अफ़लातून के पास है. उनकी तबियत का बहुत सुंदर उदाहरण इसके अलावा और क्या होगा कि उन्हें जब गार्ड ऑव ऑनर के लिए ब्रिटिश सेना के सर्वाेत्तम सैन्य अधिकारियों की टुकड़ी के सामने ले जाया जा रहा था तो महारानी को आगे और ट्रंप को पीछे चलना था. लेकिन बंदा आगे चला और महारानी बेचारी पीछे चलती रहीं. ऐसा करके भले ट्रंप ने बेहूदगी की हो, लेकिन ब्रिटेन जिस तरह आज भी अन्य देशों को अपने से दोयम समझता है, उसकी उस हेकड़ी को ट्रंप ने बड़े सलीके से तोड़ दिया और इसका एहसास भी बखूबी करवा दिया. मानो टह्रंप ने साबित किया कि गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर, होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर! इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में, या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर!
ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे भी ट्रंप को पसंद नहीं करती हैं. यह बात कई बार सामने आ चुकी है, लेेकिन ट्रंप भी कम नहीं हैं. वे भी उसी अदा के बंदे हैं, जिनके बारे में कहा जा सकता है कि माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख. उन्होंने पहले ही दिन प्रधानमंत्री टेरेसा मे से कह दिया : देखो, ब्रेक्सिट पर अपनी नीति को ठीक करो. नहीं तो हम यूरोपीय समुदाय से व्यापारिक समझौते करेंगे और ब्रिटेन टापता रहेगा. हम आपसे अलग से कोई समझौता नहीं करेंगे. उनकी ये अदा ऐसी थी, जैसे इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर!
ट्रंप का यह उद्धतपन अंतरराष्ट्रीय संकीर्ण राजनीतिक संस्कृति के मानसिक दासों को बुरा लग सकता है, लेकिन इस हरकत ने ब्रिटिशर्स की अकड़ ठीक करने का काम किया है. रस्सी जल गई, लेकिन बल नहीं गया. ब्रिटेन इसी सिद्धांत को मानता है. ट्रंप ने एहसास करवाया कि ब्रिटेन उसके सामने कुछ नहीं है और असली राजनीतिक शक्ति अमेरिका है. पिछले दिनों भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए तो उन्हें ब्रिटेन में राष्ट्राध्यक्षो की कतार में न केवल पीछे खड़ा किया गया, बल्कि उन्होंने रानी के इस आह्वान पर वोट दिया कि रानी के बाद रानी का बेटा राजा होगा. मोदी जी देश में तो रानी का बेटा राजा नहीं हो सकता का आलाप जगह-जगह और हर समय करते हैं, लेकिन ब्रिटेन में वे रानी के सामने नतनयन और नतग्रीवा थे.
हैरानी की बात ये भी है कि आरएसएस और भाजपा दशकों से ही भारत को कॉमनवेल्थ के ग़ुलाम संगठन में शामिल होने के लिए कांग्रेस की आलोचना करते रहे हैं. लेकिन अब स्वयं राष्ट़्राध्यक्ष बने तो उसी संस्कृति को जी रहे हैं. चलिए, अब इक़बाल साहेब का ये शेर गुनगुनाइए और मज़े कीजिए : फ़क़ीर-ए-राह को बख़्शे गए असरार-ए-सुल्तानी, बहा मेरी नवा की दौलत-ए-परवेज़ है साक़ी!