जानिए सीजेआई दीपक मिश्रा के बारे में
नई दिल्ली। डेस्क: जस्टिस दीपक मिश्रा पर आरोप ऐतिहासिक घटना है. भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर चार सीनियर जजों ने गंभीर आरोप लगाये हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर सवाल जस्ती चेलामेश्वर के नेतृत्व में अन्य तीन वरिष्ठ जजों ने उठाया है. जस्टिस चेलामेश्वर दीपक मिश्रा के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज हैं. और उनके बाद जस्टिस रंजन गोगई का स्थान है. दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कान्फ्रेंस में शामिल होने वाले दो अन्य जस्टिस में मदन भीमराव लोकुर व कुरियन जोसेफ शामिल हैं. मुख्य न्यायाधीश सहित ये चारों जज सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे वरिष्ठ जज हैं.
दीपक मिश्रा 45वें मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस दीपक मिश्र भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश हैं. उन्होंने 27 अगस्तर 2017 को मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस जेएस खेहर का स्थान लिया. वे दो अक्तूबर 2018 तक अपने पद रहेंगे. ओडिशा में जन्मे मिश्रा ने कटक के एमएस लॉ काॅलेज से पढ़ाई पूरी की. इसके बाद 1977 में वे ओडिशा हाइकोर्ट बार के सदस्य बने. जल्द ही वे सिविल, रेवेन्यू व सेल्स टैक्स के अच्छे वकील के रूप में स्थापित हो गये. 1996 में वे हाइकोर्ट के एडिशनल जज बने. साल भर बाद उनका ट्रांसफर मध्यप्रदेश हाइकोर्ट कर दिया गया और 19 दिसंबर 1997 को स्थायी जज बन गये.
पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने
दिसंबर 2009 में दीपक मिश्रा को पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया. अगले साल इनका ट्रांसफर दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कर दिया गया. भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश रहे रंगनाथ मिश्र दीपक मिश्र के रिश्ते के चाचा थे.
प्रमुख केस जिनसे जस्टिस के रूप में दीपक मिश्रा जुड़े रहे
1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा पर रोक की याचिका खारिज करने वाली पीठ के दीपक मिश्रा अध्यक्ष थे. इस मामले में पीठ ने रात में सुनवायी की थी. उन्होंने याकूब की फांसी की सजा कायम रखी थी, इससे सप्ताह भर पहले उन्हें अज्ञात पत्र के जरिये जाने से मारने की धमकी मिली थी.
दिल्ली के निर्भया गैंगरेप केस के दोषियों की मौत की सजा को बराकरार उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने रखा था.
जस्टिस दीपक मिश्रा ने एक जनहित याचिका पर देशभर के सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान चलाने के आदेश दिये थे, जिसमें हाल में सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव किया.
दीपक मिश्रा ने आदेश दिया कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद वेबसाइट पर उसे 24 घंटे के अंदर अपलोड कर दिया जाये. ताकि अभियुक्त और अन्य लोग मामले के संबंध में कोर्ट में याचिका दायर कर पायें. कलकत्ता हाइकोर्ट के तत्कालीन जज सीएस कर्णन को कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के आरोप में छह महीने की सजा सुनाने वाली सात सदस्यीय पीठ में भी वे शामिल रहे.
सेबी-सहारा विवाद में इन्होंने फैसला दिया था, जिसके कारण सहारा प्रमुख को जेल हुई थी. राम जन्मभूमि विवाद में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करने वाली तीन सदस्यीय जजों की पीठ में भी जस्टिस दीपक मिश्रा शामिल थे.