समलैंगिक मामला: सुप्रीम कोर्ट करेगा धारा 377 की फिर समीक्षा
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट 2013 के समलैंगिकता से जुड़े अपने ही फैसले की फिस से समीक्षा करेगा। इसमें आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाये गये समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने आज इस मामले को संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 की वैधता पर पुनर्विचार करेगी.
2013 में समलैंगिकता को ठहराया था अपराध
खंडपीठ ने कहा कि वह धारा 377 की संवैधानिक वैधता जांचने और उस पर पुनर्विचार करने को तैयार है. शीर्ष अदालत ने एलजीबीटी समुदाय के पांच सदस्यों की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब तलब भी किया है. याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि वह अपनी प्राकृतिक यौन पसंद को लेकर पुलिस के डर के साये में जीते हैं. गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बदलते हुए 2013 में बालिग समलैंगिकों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बनाने को अपराध करार दिया था.
कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से भी जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सामाजिक नैतिकता में समय के साथ बदलाव होता है. समाज का कोई वर्ग अपने व्यक्तिगत पसंद के कारण डर में नहीं जी सकता.
कांग्रेस ने फैसले का किया स्वागत
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है. ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है.
वहीं एक एलजीबीटी एक्टिविस्ट अक्काइ कहना है, ‘हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसला स्वागत करने की जरूरत है. हम 21वीं सदी में रह रहे हैं. सभी राजनीतिक दलों और राजनेताओं को इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़नी होगी.