समर्थन मूल्य पर धान खरीदी हो सकती है बंद
नई दिल्ली | संवाददाता: सरकार फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य बंद कर सकती है. छत्तीसगढ़ समेत देश के करोड़ों किसानों को धान, गेहूं समेत अन्य फसलों पर सरकार एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य देती रही है. लेकिन अब अमरीका ने दबाव बनाया है कि भारत न्यूनतम समर्थन मूल्य देना बंद कर दे.
भारत सरकार पहले ही सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे प्रावधानों को कम करने की कोशिश में जुटी हुई है. ऐसे में अमरीकी दबाव का हवाला दे कर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रोक लगाना सरकार के लिये आसान हो सकता है.
गौरतलब है कि अर्जेंटीना में विश्व व्यापार संगठन की बैठक में अमरीका ने भारत को किसानों की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदने के मामले में छूट देने से इंकार कर दिया है. अमरीका इस बात के लिए भारत पर दबाव बना रहा है कि सरकार किसानों की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य में न खरीदे.
भारत में कृषि और खाद्य मामलों के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा जैसे लोग पहले ही यह आशंका जता चुके थे. शर्मा के अनुसार-अमरीका, यूरोपियन यूनियन, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और जापान उन देशों में से हैं जो विकासशील देशों में पब्लिक स्टॉक होल्डिंग कार्यक्रमों का स्थाई समाधान खोजने की मांग कर रहे हैं. आसान शब्दों में, अमीर देश भारत पर अपनी खरीद नीति को खत्म करने पर जोर डाल रहे हैं. अब चूंकि किसानों को दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य की गिनती कृषि सब्सिडी में होती है, भारत पहले ही इसकी सीमा को लांघ चुका है. भारत और दूसरे विकासशील देशों को एग्रीगेट मैजर ऑफ सपोर्ट (एएमएस) प्रावधानों के तहत 10 फीसदी कृषि सहायता की मंजूरी दी गई है. अमेरीका, यूरोपियन यूनियन समेत कुछ देश मानते हैं कि भारत धान के मामले में पहले ही इस सीमा को 24 फीसदी से भी ज्यादा लांघ चुका है.
शर्मा के अनुसार पिछले 12 बरसों से ये मुद्दा लटका हुआ है. अमीर देश यह भी चाहते हैं कि भारत कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कमी करके अपना बाज़ार और खोले. लेकिन भारत ने बाज़ार में अधिक पहुंच देने से मना करके किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की अपनी नीति की रक्षा करने का फ़ैसला किया है. दूसरी तरफ अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, उरूग्वे और पाकिस्तान आदि ने स्पष्ट कर दिया कि पब्लिक स्टॉक होल्डिंग पर वे कोई स्थायी हल तब तक नहीं स्वीकारेंगे, जब उसमें पारदर्शिता और उनके हितों की सुरक्षा सुनिश्चित न की जाए. विशेष तौर पर वे यह चाहते हैं कि भारत अपने इस तरह खरीदे गए खाद्यान्न का निर्यात न कर सके क्योंकि उनके हिसाब से इससे अंतर्राष्ट्रीय अन्न व्यापार पर बुरा असर पड़ता है.