नर्मदा बांध और क्षुद्र स्वार्थ की बाढ़
संदीप पांडेय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन मनाया गया, नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोवर बांध को राष्ट्र के नाम समर्पित करके.इस बांध के डूब क्षेत्र में 244 गांव व एक नगर आता है. बांध की लागत करीब एक लाख करोड़ रुपए पहुंच रही है. रु. 1,500 करोड़ का अनुमानित भ्रष्टाचार तो सिर्फ पुनर्वास की प्रकिया में ही हुआ है. मध्य प्रदेश में पुनर्वास सम्बंधित भ्रष्टाचार की जांच हेतु न्यायमूर्ति एस.एस. झा आयोग का गठन हुआ जिसकी आख्या आज तक सार्वजनिक करने की हिम्मत सरकार नहीं जुटा पा रही है.
नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर स्लूस गेट बंद करने से करीब 40,000 परिवार अचानक डूब में आ गए. तय तो यह था कि किसी की जमीन डूबने से छह माह पूर्व ही उसका पुनर्वास कर दिया जाएगा. किंतु उपर्युक्त 40,000 परिवारों की पुनर्वास प्रक्रिया पूरी किए बिना उनके घरों में पानी भर कर एक तरीके से चूहों की तरह उन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह जबरदस्ती लोगों के साथ एक प्रकार की हिंसा है. यानी नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन 40,000 परिवारों पर हिंसा कर मनाया गया.
दूसरी तरफ मेधा पाटकर 37 अन्य डूब प्रभावित गांव के लोगों को लेकर छोटा बड़दा गांव में नर्मदा के पानी में खड़ी रहीं. इसके पहले वे अनशन पर बैठीं तो उन पर सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने का झूठा इलजाम लगा कर धार जेल में बंद कर दिया गया. आज तक मेधा पाटकर से बात करने के लिए मध्य प्रदेश या भारत सरकार से कोई उच्च स्तरीय प्रतिनिधि नहीं आया है. यह इस बात का अच्छा उदाहरण है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकारें लोकतंत्र में विश्वास नहीं करती और किसी भी विरोध की आवाज को दमन से कुचलने में विश्वास रखती हैं.
अपने ही देश के नागरिकों को भूमिहीन व बेघर बना दिया. म्यांमार की सरकार तो राजनीतिक द्वेष के कारण रोहिंगिया मुसलमानों को अपने यहां से खदेड़ रही है लेकिन नर्मदा घाटी के उन 40,000 परिवारों का क्या दोष जो उन्हें उनके घरों में पानी घुसा कर खदेड़ा जा रहा है? क्या ये भारत के नागरिक नहीं हैं और क्या इनका संविधान प्रदत्त जीने का मौलिक अधिकार नहीं है?
संघ परिवार जिस भारतीय संस्कृति की बात करती है जिसमें त्याग का स्थान बहुत ऊंचा है तो मेधा पाटकर से अच्छा उसका कौन प्रतिनिधि हो सकता है? उस मेधा पाटकार का इतना तिरस्कार कि सरकार में बैठा कोई व्यक्ति उनसे बातचीत को भी तैयार नहीं? मेधा पाटकर का नैतिक कद इस देश के ज्यादातर तथाकथित नेताओं से बड़ा है. चुनाव जीत कर नेता बनना ज्यादा आसान है लेकिन जनता के संघर्षों से जुड़कर बनना कठिन कार्य है. यह नरेन्द्र मोदी का अहंकार हो अथवा शिवराज सिंह चौहान का, नर्मदा घाटी की जल हत्या का कलंक तो संघ-भाजपा पर लगेगा ही.
नरेन्द्र मोदी ने प्रधान मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए जो अपना एक संवेदनहीन, आत्म-केन्द्रित, पितृसत्तात्मक व सामंती सोच वाला व्यक्तित्व उजागर किया है वह नर्मदा बचाओ आंदोलन के ऐतिहासिक संघर्ष के सामने बहुत बौना नजर आता है. यह विकास की सोच विशुद्ध रूप से भौतिकवादी है जिसमें इंसान की भावनाओं की कोई कद्र नहीं है. नरेंद्र मोदी का एकांगी पारिवारिक जीवन इस बात की पुष्टि करता है. यह भारत का दुर्भाग्य है कि देश की गौरवशाली सम्पन्न बौद्धिक व राजनीतिक परम्परा के बीच एक ऐसा व्यक्ति शीर्ष सत्ता पर विराजमान है जिसकी सोच अत्यंत संकीर्ण है. वह कभी अपने को महात्मा गांधी तो कभी सरदार पटेल या फिर विवेकानंद के समकक्ष देखना चाहते हैं लेकिन क्षुद्र स्वार्थ उन्हें ही नहीं, पूरे देश को ले डूबेगा.
*लेखक मैगसेसे से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.