स्मार्ट सिटी की एक तस्वीर यह भी है सरकार
अनुपमा सक्सेना | बिलासपुरः स्मार्ट सिटी में-‘रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, हमको तो माँ बाप के जैसे लगती है सड़क’ हम और आप इस गाने को सुनते हैं, बिना उन लोगों के बारे में सोचे जिनकी जिंदगी ऐसे गानों को बनाती है -हमारे आपके मनोरंजन के लिए.
हमारे अपने शहर के बीचों बीच स्थित व्यस्ततम चौराहे के बीच में, एक बड़ा पुराना पीपल का पेड़ है. चारों तरफ विभिन्न ब्रांड्स की ढेर सारी दुकाने, हर मिनट पेड़ के चारों तरफ आती-जाती महँगी-महँगी गाड़ियां, शहर के तेजी से ‘स्मार्ट सिटी ‘ की और बढ़ने की और इंगित करती हैं.
पेड़ के नीचे हनुमान जी की एक बड़ी मूर्ती है. इसी पेड़ के नीचे रोड डिवाइडर की एक फ़ीट ऊंचाई को आड़ बनाकर बसती है कई गृहस्थियां, एक अलग दुनिया बसती है, कुछ परिवारों की, कुछ लोगों की. इनमें से एक है पास के एक गांव से आये तीन बेटे 20, 13 और 7 वर्ष के, अपनी माँ के साथ, एक शराबी अपनी छह महीने गर्भवती पत्नी एवं 8 और 4 वर्ष के अपने बेटों के साथ, दो अकेली महिलाएं जिनमें से एक हनुमान जी की पूजा की व्यवस्था करती है और आते-जाते श्रद्धालुओं से कुछ पैसे ले लेती है. एक महिला, जो पेड़ के नीचे बैठ कर भीख मांगती है, उसके बगल में कूड़ा पड़ा हुआ है, जिसमें एक गाय और एक कुत्ता कुछ खाना मुँह मार रहे हैं.
पेड़ की एक मोटी टहनी से नीचे गड़े एक खम्बे तक तार बाँध कर कपड़े सुखाये जाते हैं, रोड डिवाइडर की आड़ बनाकर प्लास्टिक से ढक कर रखा जाता है पूरी गृहस्थी का सामान. चूल्हा जलाकर, कढ़ाही चढ़ाकर बैगन आलू की सब्जी और चावल बन जाता है, जमीन पर कपड़ा बिछाकर दिन में बच्चे सो जाते हैं. रात में ये सभी और कई बूढ़े बेसहारा भिखारी एवं भिखारिनें भी यही सो जाते हैं, पीने का पानी पास के सार्वजानिक नल से भर लिया जाता है और दैनिक कर्म के लिए पास के सुलभ शौचालय का उपयोग किया जाता है.
चूंकि यहां पैसे लगते हैं अतः नहाना हफ्ते में दो बार ही होता है. सफाई ना होने के कारण, महिलाओं के बालों में लटें पड़ गयी हैं, शरीर पर फोड़े फुंसी हो गए हैं. कुछ काफी बड़े हैं. बरसात के समय आस पास की दुकानों के नीचे शरण ले ली जाती है.
2011 जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 10 लाख सत्तर हज़ार गृह विहीन व्यक्ति हैं, जिसमे से लगभग साढ़े नौ लाख शहरी क्षेत्रों में रहते हैं. 2001-2011 के बीच शहरी क्षेत्रों में गृहविहीन लोगों की संख्या में 36.78% वृद्धि हुई है. किन्तु गृह विहीन लोगों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के अनुसार यह संख्या कहीं ज्यादा है. उनके अनुसार शहरी क्षेत्रों में लगभग एक प्रतिशत लोग गृहविहीन हैं और सड़कों पर रहते हैं.
नेशनल अर्बन लाइवलीहुड मिशन 2013 में गृहविहीन लोगों के लिए शेल्टर का प्रावधान होने के बाद भी भारत में अब तक मात्र 658 शेल्टर ही ऐसे लोगों के लिए बनाये गए हैं. इनकी कुल क्षमता मात्र 35000 व्यक्तियों की है.
2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में रायपुर में 03 एवं भिलाई में 04, दुर्ग में 02, कोरबा, अंबिकापुर एवं रायगढ़ में 01-01 नाईट शेल्टर थे. सफाई, सुरक्षा, उपयोग के संकेतकों पर इनकी स्थिति बहुत खराब थी। 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में कुल 24214 लोग गृहविहीन थे. जिसमें से बिलासपुर जिले में कुल 2712 लोग गृहविहीन थे। जिसमें से 934 लोग शहरी क्षेत्रों में गृहविहीन थे.
याद रखें यह 2011 के आंकड़े हैं और वास्तविक संख्या इनसे कहीं अधिक होगी. मैंने गूगल सर्च किया और जानने की कोशिश की बिलासपुर शहर में ऐसे किसी शेल्टर के बारे में. मुझे मिला नहीं. आप बता सकें तो अच्छा होगा. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये शेल्टर भी नाईट शेल्टर्स हैं, दिन में इन लोगों को सड़कों पर ही रहना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अनेक निर्णयों में ‘घर के अधिकार’ को ‘जीवन के’ मूलभूत अधिकारों का भाग माना है. ‘राइट टू फूड’ एवं ‘राइट टू एजुकेशन’ के बाद 2013 में ‘राइट टू हॉऊसिंग’ बिल भी संसद में प्रस्तुत किया गया। किन्तु अभी तक उसके पास होकर क़ानून बनाने का इंतज़ार है.
एक विकसित, समृद्ध, स्मार्ट सिटी के लिए जरूरी है कि उसमें अपने हर नागरिक को जीवन जीने की मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध हों. गृह विहीन लोगों के लिए नाईट शेल्टर बनाना एक तात्कालिक आवश्यकता है। इसके साथ ही इस मुद्दे पर लॉन्ग टर्म योजनाएं बनाने की भी जरूरत है.
पर सबसे पहले जरूरी है कि हम अपने आसपास इन सड़क पर रहने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील हों और संबंधितों का ध्यान इस ओर आकर्षित करें- विशेषकर जब स्मार्ट सिटी की प्लानिंग हो.