रायपुर

कर्ज के दर्द की कोई दवा है डॉक्टर साहब ?

पं. वैभव बेमेतरिहा | रायपुर: डॉक्टर साहब, कर्ज में कौन नहीं है ? भारत सरकार कर्ज में है, राज्य सरकार कर्ज में है,सीएम साहब, आप भी कर्ज में होंगे ! अब भला देश के अन्नदाता कर्ज में हैं तो क्या हुआ. ये विपक्ष वाले, ये सामाजिक कार्यकर्ता, ये किसान नेता और हम मीडिया वाले एक किसान की मौत क्या हुई हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं. किसान मर गया….कर्ज से मर गया….सरकार सुन नहीं रही. फटाफट जांच दल गठित. ध्यान दीजिएगा जांच दल गठित. सरकार की ओर से नहीं, किसान संघ या विपक्ष की ओर से. और कुछ जांच हम मीडिया वाले भी कर लेते हैं. ग्राउंड जीरो पर जाकर. ये एक नया नाम आज की मीडिया ने दे दिया है. ग्राउंड जीरो मतलब जैसे किसी किसान ने आत्महत्या की तो उसके घर जाकर मृतक परिवार से मिलना, खेत में चले जाना, कुछ किसान नेताओं से बात कर लेना आदि…आदि.

खैर सवाल तो ये कि किसान मरे कैसे ? जहर पीकर या फांसी लगाकर. इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा. इसलिए इस दुविधा में परेशान किसान कभी खेत में जाकर फांसी लगा लेता है, तो कभी घर के भीतर बंद कमरे में जहर पीकर तड़प-तड़प मर जाता है. और सबसे चौंकाने वाली बात ये कि किसान उसी कीटनाशक से मरता है, जिसका इस्तेमाल उसे कीड़ों से फसल बचाने में करना पड़ता है. मरते वक्त भी किसान बहुत असानी से और सस्ती मौत मर जाता है. क्या करे किसान कर्ज से दबा जो है. वो आप जैसे बड़े नेता, पूंजीपतियों की तरह अस्पताल में हजारों रुपये प्रतिदिन वाले आईसीयू या वेंटिलेटर पर मरने का सुख प्राप्त नहीं कर सकता.

मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा और अपनी बिरादरी के बीच में सबसे कम अनुभव वाला पत्रकार हूँ डॉक्टर साहब. मैं देश के भीतर किसानों के हालात पर नहीं लिख रहा, मैं मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के किसानों की मौत की वजह नहीं लिख रहा. मैं अपनी मिट्टी के अन्नदाताओं की पीड़ा लिख रहा हूँ, जिसे मैंने महसूस किया है. या इस दर्द से खुद को पीड़ित समझने लगता हूँ. ये और बात है कि मैं किसान पुत्र नहीं हूँ. लेकिन मैं किसानों के बीच पला, बढ़ा हूँ. मेरे लंगोटिया मित्र किसान पुत्र ही हैं. जिनके साथ खेतों में हल चलाने से लेकर, फसल बोने और काटने के बाद मींजने तक में सहभागी रहा हूँ. इसलिए किसानों की मेहनत का मोल जानता और समझता हूँ. किसान इस देश के सबसे मूल्यवान और बलवान व्यक्ति होते हैं, ऐसा मैं कह सकता हूँ. ये और बात है जीवन जीने से लेकर मरने तक किसान सबसे कमजोर और साधारण ही दिखाई पड़ते हैं.

मैं नहीं जानता डॉक्टर साहब आप किसान पुत्र हैं या नहीं. लेकिन बचपन में आप भी इन किसानों के बीच पले-बढ़े होंगे. आप भी खेतों में गए होंगे, आपने भी हल थामा होगा, आपने भी फसल कटते और मींजते देखा होगा. आपने बाल्य और किशोर अवस्था में इसका आनंद तो लिया ही होगा. मतलब आप तब से लेकर अब तक किसानों की हर दशा से भली-भांति परिचित ही होंगे. मैं आपको ना कुछ बता रहा हूँ और ना ही जता रहा हूँ. हो सकता है सियासत में आने के बाद आप किसानों की ऐसी स्थिति-परिस्थिति, दशा-दिशा को भूल गए हों. इसलिए बस याद दिला रहा हूँ. क्योंकि आप किसानों को उजाड़कर नया रायपुर बना लेते हैं, किसानों की खेत को खरीदकर उसे बिल्डर को बेच देते हैं, आप किसानों की खेत में उद्योपतियों का सम्मेलन करा लेते हैं, आप अपने साथ उद्योगपतियों का दल विदेश ले जाते हैं. आप के पास कितना वक्त है सर इन पूंजीपतियों लिए. और तो और आप कपड़े के शो रूम के उद्घाटन करने भी पहुँच जाते हैं.

ये और बात है कि इन सबके बीच मृतक किसान परिवार के घर जाने का वक्त आप निकाल नहीं पाते. सीएम होने के नाते ना सही कम से आपके अपने गांव-घर के होने के नाते कवर्धा इलाके वाले रामझुल के परिवार के यहां ही चले जाते. यहां नहीं जाएं तो अपने निर्वाचन क्षेत्र के जिले वाले भूषण गायकवाड़ के घर ही हो आते. क्या पता, आपके जाने से प्रदेश के अन्य जिलों के किसानों को हो सकता कोई साहस दिखता, हिम्मत बंधती. ना तो फिर महासमुंद, बागबाहरा से किसी किसान की मौत की खबर आती और ना ही धमतरी, कांकेर से.

अब बता दीजिए डॉक्टर साहब, कर्ज के बोझ तले दबे या किसी पारिवारिक या मानसिक स्थिति से गुजर रहे किसानों को आत्महत्या से रोकेगा कौन ? आप से मेरे जैसा पत्रकार यह सवाल इसलिए कर रहा है क्योंकि आपकी विनम्रता और सौम्यता का मैं कायल हूँ. जिस विनम्रता के साथ आप सबकुछ सहन कर जाते हैं, यह गुण हर किसी में नहीं होता. चूंकि आप डाक्टर है आप हर मर्ज की दवा जानते हैं. आपने कहा कि आपने सुराज के दौरान प्रदेश की जनता का लक्षण पहचाना था. अगर पहचान लिया है तो अब वक्त इलाज का है. डॉक्टर साहब इलाज कर ही दीजिए, अब और देर ना कीजिए. क्या पता आत्महत्या का रोग लाइलाज ना हो पाये. क्या पता कोई किसान फिर ना मर जाए.

अंत में अपील उन किसानों से जो सत्ता की चौखट पर हार कर मर जा रहे हैं. किसान साथी आपको मरना नहीं है, बल्कि ऐसे वक्त़ में आपको लड़ना है. मौत से हारना नहीं, बल्कि संघर्ष के बल पर आपको कमजोर बनाने वालों को हराना है. अगर आप हिम्मत हारकर आत्महत्या करते रहेंगे, तो सत्ता पूंजीपतियों के लिए ही काम करती रहेगी. इसलिए अपने हक के लड़िए, अधिकार के लिए आगे आइए. आपके हाथ लोकतंत्र है. लोकतंत्र से किसानों की सत्ता तय करिए.

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