छत्तीसगढ़ किसान आत्महत्या में आंध्र, तमिलनाडु से आगे
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ किसानों की आत्महत्या के मामले में आंध्र और तमिलनाडु से आगे है. संकट ये है कि राज्य सरकार किसानों की आत्महत्या को लगातार झुठलाने का प्रयास करती रही है.
पिछले दो दिनों में दो किसानों की आत्महत्या के बाद फिर से छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या का सवाल बहस के केंद्र में आ गया है. शनिवार को राजनांदगांव ज़िले के किसान भूषण गायकवाड़ ने अपनी जान दे दी थी, उसके बाद रविवार को कबीरधाम ज़िले के रामझुल साहू ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से आंकड़ों को देखें तो किसान आत्महत्या की भयावह स्थिति नज़र आती है. छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1,555 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं. हालत ये है कि भारत सरकार के आंकड़ों के ही अनुसार 2009 में राज्य में किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज किये गये. लेकिन जब इन आंकड़ों को लेकर सवाल उठने लगे तो सरकार ने आत्महत्या के कारणों को जानने या उन्हें दूर करने के बजाये आंकड़ों को ही छुपाना शुरु कर दिया.
सरकार अपनी इस कोशिश में कामयाब भी रही और 2011 में भारत सरकार के एनसीआरबी ने जो आंकड़े जारी किये, उसमें छत्तीसगढ़ के आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या शून्य पर आ गई. कहां तो एक साल पहले तक हर दिन लगभग तार किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सामने आये थे और कहां एक भी किसान की आत्महत्या का नहीं होना चकित करने वाला आंकड़ा था. अगले साल यानी 2012 में यह आंकड़ा चार पर आया. लेकिन 2013 में फिर से राज्य सरकार ने बताया कि राज्य में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है.
हालांकि जब मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा तो छत्तीसगढ़ सरकार के सुर बदल गये. केंद्र सरकार ने इस साल किसानों से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के समय जो आंकड़े पेश किये, उसके अनुसार देश भर में किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पांचवें नंबर पर है.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की पीठ को अपनी रिपोर्ट में बताया कि छत्तीसगढ़ में पिछले साल कुल 954 किसानों ने आत्महत्या की है.
इसी तरह महाराष्ट्र में 4291, कर्नाटक में 1569, तेलंगाना में 1400 और मध्यप्रदेश में 1290 किसानों ने आत्महत्या की थी. इस क्रम में पांचवा नंबर छत्तीसगढ़ का है. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने दूसरे राज्यों की तरह आज तक न तो केंद्र से इस मद में कभी मदद मांगी और ना ही अपने ही आंकड़ों को स्वीकार करते हुये उसे सुलझाने की कोशिश की.