नौ साल का पुलिस वाला
रायपुर | संवाददाता: पुलिस में नौकरी करने वाले नौ साल के राज सोनवानी को आप नहीं जानते होंगे. राज छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगे हुये सलोनी गांव में रहते हैं. अगर आप उनसे पूछें तो वो अपनी तोतली जुबान में कहते हैं- मैं पुलिस वाला हूं, सिपाही हूं.
पीपी 2 में पढ़ने वाले राज छत्तीसगढ़ के उन 300 बच्चों में शामिल हैं, जिन्हें पिता की मृत्यु के बाद पुलिस की नौकरी मिली. राज की उम्र तो नौ साल है लेकिन छत्तीसगढ़ में पांच साल के बच्चे भी रहे हैं, जिन्हें पुलिस विभाग ने नौकरी दी है. ऐसे बच्चों की उम्र नौ से 17 साल तक है.
2015 में राज सोनवानी के पिता हिम्मत सोनवानी अपनी ड्यूटी कर के छुट्टी मनाने घर लौट रहे थे. मोटरसाइकिल से लौटते समय एक ट्रक की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई. परिवार की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी. इसके बाद पिछले साल अप्रैल में पुलिस विभाग ने राज को उनके पिता की जगह पुलिस की नौकरी दे दी.
राज अपने स्कूल में सबको बताते हैं कि वो पुलिस वाले हैं. हालांकि उन्हें महीने में एकाध बार रायपुर के पुलिस लाइन में आना पड़ता है, जहां आम तौर पर उनकी उपस्थिति दर्ज़ की जाती है और यह भी देखा जाता है कि उनकी पढ़ाई-लिखाई चल रही है या नहीं.
इससे पहले जिन बच्चों को बाल सिपाही के तौर पर नौकरी दी जाती थी, उन्हें एक दिन स्कूल तो एक दिन थाने में ड्यूटी करनी पड़ती थी. बाद में जब इस मामले में सवाल उठे तो पुलिस प्रशासन ने बच्चों से ड्यूटी नहीं लेने का निर्णय लिया. लेकिन सरकारी दावे से अलग अभी भी कई ज़िलों में इन बच्चों से काम लिया जाता है.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वाच की साउथ एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगूली का कहना है कि यह अमानवीय है कि छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के बजाये उनसे काम लिया जाये. मीनाक्षी का कहना है कि पुलिस विभाग को इस संबंध में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिये.