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बीमार स्वास्थ्य सुविधायें

जेके कर
छत्तीसगढ़ में जनता का स्वास्थ्य जनता के भरोसे चल रहा है. दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के गृह जिले कबीरधाम में 272 दिनों में 500 शिशुओं की मौत की खबर आई थी. इस तरह से देखा जाये तो कबीरधाम जिले में पिछले 272 दिनों में औसतन रोज 2 शिशुओं की मौत हुई है. खबरों के अनुसार इनमें से 90 फीसदी शिशुओं की मौत सरकारी अस्पतालों में हुई है. आंकड़े चौकाने वाले हैं परन्तु इसका कारण चौंकाने वाला नहीं है. इसकी वजह है कि छत्तीसगढ़ सरकार अपने बजट से जनता के स्वास्थ्य के लिये देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम खर्च करती है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 जिसमें की 2015-16 की वस्तुस्थिति की जानकारी दी गई है; के अनुसार छत्तीसगढ़ की 32.7 फीसदी आबादी के पास ही उन्नत स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध है.

गर्भवती महिला की देखभाल
महिलाओं को प्रसव पूर्व विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है. यह माना जाता है कि अपने प्रसवावस्था के समय गर्भवती महिला की चार बार चिकित्सीय जांच हो जानी चाहिये. लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के समय पाया गया कि यह सुविधा छत्तीसगढ़ की केवल 59.1 फीसदी गर्भवती महिलाओं को ही मिल पाती है. इतना ही नहीं राज्य की केवल 30.3 फीसदी गर्भवती महिलाओं को 100 दिन या उससे ज्यादा दिन आयरन की गोली खाने को मिल पाती है. जबकि गर्भावस्था के समय सभी महिलाओँ को यह सुविधा मिलनी चाहिये.

आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ की महज 21.7 फीसदी गर्भवती महिलाओं को ही पूरी प्रसव पूर्व मिलने वाली सुविधा मिल पाती है. प्रसव के बाद के दो दिनों तक भी केवल 63.6 फीसदी माताओं की चिकित्सक, नर्स या अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा देखभाल की सुविधा मिल पाती है.

छत्तीसगढ़ में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रो में प्रसव कराने पर औसतन अपने पाकेट से 1,480 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. गांवों में 1,310 रुपये तथा शहरों में 2,157 रुपये अपने पाकेट से खर्च करने पड़ते हैं.

नवजात, शिशुओं की देखभाल
जिन बच्चों का जन्म घर में होता है उनमें से केवल 4.7 फीसदी को ही 24 घंटे के अंदर चिकित्सीय जांच हो पाती है. राज्य में महज 34.2 फीसदी नवजात की ही दो दिनों के अंदर चिकित्सीय जांच संभव हो पाती है. छत्तीसगढ़ में 70.2 फीसदी प्रसव किसी न किसी चिकित्सीय संस्थान में होती है जिसमें से 55.9 फीसदी प्रसव सरकारी अस्पतालों में होता है.

जहां तक बच्चों की देखभाल की बात है 76.4 फीसदी 12 माह से 23 माह तक के बच्चों को ही बीसीजी, मीसल्स, पोलियो तथा डीटीपी के प्रतिरक्षक टीके तथा ड्राप मिल पाते हैं.

रक्त अल्पता की बीमारी
एनीमिया या रक्ताल्पता की बीमारी से छत्तीसगढ़ की बहुत बड़ी आबादी ग्रसित है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार राज्य में 6-59 माह के 41.6 फीसदी बच्चे, 15-49 साल की गैर-गर्भवती 47.3 फीसदी लड़कियां तथा महिलायें, 15-49 साल की 41.5 फीसदी गर्भवती लड़कियां तथा महिलायें एवं 15-49 साल के 22.2 फीसदी लड़के तथा पुरुष रक्तअल्पता से ग्रसित हैं.

छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च
साल 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार अपने बजट से प्रति व्यक्ति/प्रतिवर्ष औसतन 802 रुपये खर्च करती है. इसकी तुलना यदि देश के अन्य राज्यों से करें तो इसी साल उत्तर-पूर्व के राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश ने 3002 रुपये, मणिपुर ने 1658 रुपये, मेघालय ने 1639 रुपये, मिजोरम ने 2700 रुपये, नगालैंड ने 1707 रुपये, सिक्किम ने 4145 रुपये तथा त्रिपुरा ने 1821 रुपये खर्च किये.

इसी तरह से असम ने 855 रुपये, बिहार ने 385 रुपये, छत्तीसगढ़ ने 802 रुपये, झारखंड ने 461 रुपये, मध्यप्रदेश में 540 रुपये, ओडिशा ने 543 रुपये, राजस्थान ने 760 रुपये, उत्तरप्रदेश ने 492 रुपये, उत्तराखंड ने 1270 रुपये खर्च किये.

स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पादन का खर्च
अब यदि इसे इसी साल राज्यों द्वारा अपने सकल घरेलू उत्पादन की तुलना में खर्च के रूप में देखा जाये तो असम ने 1.69, बिहार ने 1.13, छत्तीसगढ़ ने 1.08, झारखंड ने 0.87, मध्यप्रदेश ने 0.93, ओडिशा ने 0.83, राजस्थान ने 1.03, उत्तरप्रदेश ने 1.20 तथा उत्तराखंड ने 1.06 फीसदी प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च किये.

इसी तरह से आंध्रप्रदेश ने 1.92, दिल्ली ने 0.83, गोवा ने 1.05, गुजरात ने 0.68, हरियाणा ने 0.58, हिमाचल प्रदेश ने 1.58, जम्मू-कश्मीर ने 2.14, कर्नाटक ने 0.82, केरल ने 0.92, महाराष्ट्र ने 0.52, पंजाब ने 0.91, तमिलनाडु ने 0.75, तथा पश्चिम बंगाल ने 0.82 फीसदी खर्च किये हैं.

इनकी तुलना में उत्तर-पूर्व के राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश ने 2.83, मणिपुर ने 2.92, मेघालय ने 2.02, मिजोरम ने 2.71, नगालैंड ने 2.23, सिक्किम ने 2.11 तथा त्रिपुरा ने 2.53 फीसदी अपने राज्य के सकल घरेलू उत्पादन के हिसाब से प्रति व्यक्ति खर्च किये हैं.

छत्तीसगढ़िया की औसत आयु
यह माना जाता है कि स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्चे को बढ़ाकर नागरिकों की उम्र बढ़ाई जा सकती है. स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने से तात्पर्य है कि जनता को चिकित्सीय जांच, रोग की जांच तथा दवा पर सरकार ज्यादा खर्च करें. जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश के लोगों की औसत आयु अन्य राज्यों के लोगों से तुलनात्मक रूप से कम है.

भारतीयों की औसत आयु 67.9 वर्ष की है. जबकि छत्तीसगढ़ में रहने वालों की औसत आयु 64.8 वर्ष, मध्यप्रदेश में रहने वालों की औसत आयु 64.2 वर्ष तथा उत्तरप्रदेश में रहने वालों की औसत आयु 64.1 वर्ष है. असम में यह 63.9 वर्ष है. इस तरह से ये चार राज्य ऐसे हैं जहां के नागरिकों की औसत आयु राष्ट्रीय औसत 67.9 वर्ष से कम है.

बाकी के राज्यों में आंध्रप्रदेश में यह 68.5 वर्ष, बिहार में 68.1 वर्ष, दिल्ली में 73.2 वर्ष, गुजरात में 68.7 वर्ष, हरियाणआ में 68.6 वर्ष, हिमाचल प्रदेश में 71.6 वर्ष, जम्मू-कश्मीर में 72.6 वर्ष, झारखंड में 66.6 वर्ष, कर्नाटक में 68.8 वर्ष, केरल में 74.9 वर्ष, महाराष्ट्र में 71.6 वर्ष, ओडिशा में 65.8 वर्ष, पंजाब में 71.6 वर्ष, राजस्थान में 67.7 वर्ष, तमिलनाडु में 70.6 वर्ष, उत्तराखंड में 71.7 वर्ष तथा पश्चिम बंगाल में यह 70.2 वर्ष की है.

अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ केवल अच्छी चिकित्सा मात्र नहीं होती है. इसके लिये साफ वातावरण, पीने का स्वच्छ पानी, निस्तारी की व्यवस्था, पौष्टिक भोजन भी जरुरी है. इनमें सबसे गौर करने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ की करीब 40 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे वास करती है. रिजर्व बैंक की मानें तो छत्तीसगढ़ की जनसंख्या में से 1 करोड़ 04 लाख 11 हजार लोग गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं.

जाहिर है कि ऐसी स्थिति में जब जनता के पास पैसे न हों तो जनता के स्वास्थ्य में सुधार, औसत आयु में बढ़ोतरी के लिये सरकार को अपने बजट से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. तभी जाकर जन स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है. जनता का स्वास्थ्य जनता के भरोसे छोड़ने से काम नहीं चलेगा. इसमें राज्य को हस्तक्षेपकारी भूमिका का पालन करना होगा.

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