कहां तक जायेगी अखिलेश की साइकिल
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: समाजवादी पार्टी की ‘दंगल’ में अखिलेश को साइकिल मिला है. चुनाव आयोग ने समाजवादी पार्टी में टूट के बाद पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल अखिलेश यादव की पार्टी को दिया है. वैसे भी समाजवादी पार्टी के ज्यादातर सांसद तथा विधायक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ हैं. इस बीच समाजवादी परिवार के ‘दंगल’ ने जिसने पूरी पार्टी को ही अपने चपेट में ले लिया था, अखिलेश यादव एक नेता के रूप में उभरे हैं. मुलायम सिंह के बेटे की छवि से बाहर निकलकर उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया है. जिसका लाभ निकट भविष्य में होने वाले चुनाव में मिलने की संभावना है.
वैसे भी भारतीय जनमानस सदा से वीर पूजा में विश्वास करता रहा है. पिता की राजनीतिक विरासत को लड़कर हासिल करने को एक तरह का साहसिक कदम माना जा रहा है. किसने सोचा था कि जिस मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को ‘खड़ाऊ राज’ चलाने के लिये सत्ता सौंपी थी वहीं एक दिन उसने विद्रोह कर बैठेगा. बहरहाल परिवार के झगड़े में मुलायम सिंह का रहा सहा राजनैतिक करियर ढ़लान पर जाता दिख रहा है तथा अखिलेश यादव एक संघषर्शील युवा नेता के रूप में उभरे हैं.
ऐन यूपी विधानसभा चुनाव के पहले शुरु हुये इस उठापटक को कुछ जानकार नूराकुश्ती मान रहे थे. कम से कम अब तो यह लग रहा है कि वह नूराकुश्ती न होकर अपने राजनीतिक वजूद को बचाने की लड़ाई थी. जिसमें अखिलेश को जीत हासिल हुई है. वैसे भी पार्टी का समर्थन उनके साथ रहा है. हां, मुलायम सिंह के साथ जोड़तोड़ में माहिर अमर सिंह जरूर है परन्तु यूपी चुनाव में वे कितना जोड़तोड़ कर सकते हैं वह साइकिल चुनाव चिन्ह हाथ से निकल जाने से साबित हो गया है.
रही बात इससे यूपी के आसन्न विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा इसका अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी. इसका परंपरागत यादव वोटरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह भी नहीं कहा जा सकता है. हां, अखिलेश यादव एक संघषर्शील तथा न झुकने वाले, धारा के खिलाफ तैरने का साहस रखने वाले युवा नेता के रूप में उभरे हैं इसमें कोई दो मत नहीं है.
रही बात कांग्रेस की तो उसे अखिलेश के नेता के रूप में उभरने से फायदा ही होगा. इस बात के पूरे संकेत हैं कि कांग्रेस यूपी विधानसभा चुनाव के लिये अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर ले. कांग्रेस के लिये इससे सुनहरा मौका दूसरा न होगा. क्योंकि इससे पहले जिस समाजवादी पार्टी से कांग्रेस के गठबंधऩ की बात चल रही थी वह अपने ढ़लान पर था. अब स्थिति में कुछ बदलाव आया है.
कांग्रेस समेत सारा विपक्ष यूपी में भाजपा के विजय रथ को थाम लेना चाहता है. लेकिन यूपी में भी बिहार के समान महागठबंधन बनेगा इसमें शक है. क्योंकि मायावती की बसपा के लिये चुनाव पूर्व गठबंधन करना अपने वोटों का बंटवारा करने के समान है तथा वह इससे परहेज ही करेगी. उधर, 2014 के लोकसभा चुनाव के समय छोड़ा गया भाजपा के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अब यूपी के मुहाने पर खड़ा है. जिसे थामना किसी अकेले राजनीतिक दल की बात नहीं है.
इस बात की भी संभावना है कि किसी को स्पष्ट बहुमत न मिले. ऐसे में मायावती की बसपा किसके साथ जाती है यह महत्वपूर्ण हो जायेगा. पूर्व में बसपा, भाजपा के साथ सरकार बना चुकी है, यह इतिहास में दर्ज है.