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बिहार में पीडीएस की हकीकत

दुमका | राजीव: हिजला पहाड़ की तलहट्टी में बसा है धतीकबोना गांव. ये क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य बस्ती है. यहां गांव के छह से सात वर्ष के बच्चों को देखकर पता चल जाता है कि वे कुपोषण के दायरे में हैं या फिर इसके करीब हैं. हाल यह कि लक्ष्मण मुर्मू, आकाश टुडू, प्रीतम मुर्मू, लक्ष्मी मुर्मू, शार्मिला सोरेन सुबह के नाश्ते में सेब, केला, अनार जैसे पौष्टिक फल खाने के बजाए इमली खाकर अपना बचपन और स्वास्थ दोनों बिगाड़ रहे हैं.

धतीकबोना गांव में आदिवासियों के प्रतिनिधी हैं हैं नंदलाल सोरेन. उन्हे जन वितरण प्रणाली की लचर व्यवस्था से शिकायत है. कहते हैं “पिछले माह का खाद्यान्न नहीं मिला है. नए खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीडीएस के माध्यम से फिलहाल चार किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से चावल मिलता है जो कम है”.

गांव के बालेश्वर हांसदा के पास किसी भी तरह का कार्ड नहीं है. मजदूरी करके परिवार चला रही एमेली हांसदा कहती है “पहले पीडीएस से खाद्यान्न मिलता था लेकिन अब नहीं मिलता है क्योंकि डीलर ने बीपीएल कार्ड जमा करवा लिया है. कारण पूछने पर कहा कि मां मुन्नी मरांडी को पेंशन मिलता है”.

गांव का एक युवक प्रमोद मुर्मू ने कहा “पैतृक घर व संपत्ति का बंटवारा हो गया है. राशन कार्ड दूसरे भाई के हिस्से में है. अनाज मिलने पर दोनों भाई बखरा बंटवारा तो कर लेते हैं लेकिन दोनों परिवारों में से किसी का भी काम नहीं चलता है”.

सुशील हेंब्रम का कहना है कि घर में पांच सदस्य हैं और 20 किलो अनाज मिलता है. इस अनाज से पूरे माह का गुजारा कैसे संभव है. गांव की महिलाएं भी सरकारी खाद्यान्न प्रणाली की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं. मक्कू टुडू, मुन्नी हेंब्रम, बाहा मुनी हेंब्रम, एलेंती किस्कू, एलबीना मुर्मू, सावित्री हांसदा, पक्कू मरांडी समेत कई महिलाओं ने कहा कि वे खाद्य सुरक्षा के बारे में कुछ भी नहीं जानती हैं. पूछने पर सिर्फ इतना कहती हैं “कि कंट्रोल पीडीएस की दुकान से जो अनाज मिलता है उससे पूरे माह का गुजारा संभव नहीं है”.

हालांकि धतीकबोना गांव में स्थित आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 70 की सेविका शांतिलता मरांडी को लेकर ग्रामीणों को कोई खास शिकायत नहीं है. शांतिलता के केंद्र में 37 बच्चे नामांकित हैं. केंद्र में सात माह से तीन वर्ष के बच्चों को रेडी टू इट फूड मिलता है. गर्भवती महिलाओं को भी रेडी टू इट ही दिया जाता है पर ये स्वास्थ के लिए ज्यादा लाभकारी नही माना जाता. प्री-नर्सरी के बच्चों के लिए खिचड़ी की व्यवस्था है.

केंद्र में मिलने वाला अंडा अब बंद है क्योंकि अंडा की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े हो गये थे. शांतिलता कहती है “केंद्र से मिलने वाले पौष्टिक आहार से बच्चे व महिलाओं के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर पड़ने के साथ माहौल में भी तेज बदलाव हो रहा है. अगर खाद्ध सुरक्षा पर पूरी तरह ध्यान दिया जाए तो यह व्यवस्था कुपोषण से लड़ाई में मददगार साबित हो सकती है. आगें उन्होंने कहा सरकार को चाहिए कि उसके केंद्र के लिए अपना भवन बनावा दे क्योंकि केंद्र किराये पर चल रहा है. वह दबीं जुबां से ही सही यह भी कहती है कि सेविका-सहायिका के मानदेय में भी वृद्धि होनी चाहिए”.

दुमका से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ प्रखंड मे संचालित आंगनबाड़ी केंद्र व मीड डे मिल की स्थिति भी बहुत संतोषजनक नहीं है. प्रखंड के ककनी में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र में 38 नामांकित बच्चों में 13 बच्चे मौके पर उपस्थित थे. पोषाहर के तौर पर इन्हें सत्तू दिया गया था. महुबना केंद्र में 40 नामांकित बच्चों में नौ उपस्थित मिले. अभिभावक रुगना देवी एवं चेतनी देवी को केंद्र की व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं है. कहा कि यहां बच्चों को भरपेट पोषाहार मिलता है. मोहबना ए नामक केंद्र में 38 नामांकित बच्चे हैं पर मौके पर एक भी नहीं दिखे. यहां पोषाहार भी नहीं बन रहा था.

खैरबनी केंद्र में 35 में चार बच्चे मौजूद थे. इनके सामने खिचड़ी परोसने की तैयारी थी. ढोलापाथर में 38 में 13 बच्चे उपस्थित थे और खिचड़ी की हड़िया चूल्हे पर थी. मजडीहा में 34 में नौ बच्चे मौजूद थे. केंद्र पर मौजूद अभिभावक ज्योतिका किस्कू ने कहा “आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को भरपेट भोजन मिल जाता है. वहीं मिड डे की हालत भी जिले में बहुत संतोषजनक नहीं है. रामगढ़ के ढोलापाथर स्कूल में मीड डे मिल बंद है. मोहबना में मिड मिल चालू है पर बच्चों की शिकायत है कि उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता है.

एक रिपोर्ट यह भी है कि जिले में पीडीएस के जरिये खाद्यान्न की कालाबाजारी होती है और इसका खेप बांग्ला देश तक को जाता है. कुल मिलाकर सपाट शब्दों में कहा जाए तो खाद्य सुरक्षा की हालत बहुत अच्छी नहीं और इसमें सुधार के लिए पूरे तंत्र में सुधार की पुरजोर जरुरत है. जब तक सिस्टम में सुधार नहीं होता है तब तक परिस्थितियों के सुधरने की गुंजाइश कम है.

(इनपुट चरखा फीचर्स)

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