टमाटर की आत्महत्या
छत्तीसगढ़ में किसान के बाद टमाटर आत्महत्या पर उतारू हो गये हैं. वैसे टमाटरों के पास कोई चारा भी तो नहीं है आत्महत्या करने के सिवाय. अब इस महंगाई के जमाने में भला एक किलो टमाटर का किसान को पचास पैसे मिले तो माना जाना चाहिये कि दोनों के लिये आत्महत्या करने की स्थिति पैदा हो गई है. इससे न किसानों को टमाटर की लागत मिल पायेगी न ही इसके भरोसे उसका परिवार चल सकेगा.
भला हो छत्तीसगढ़ के पत्थलगांव के किसानों का जिन्होंने आत्महत्या करने के बजाये टमाटरों को सड़कों पर फैलाकर बुधवार को अपना विरोध प्रदर्शन किया. इससे उनकी बात छत्तीसगढ़ और देश के नीति निर्धारकों के कानों तक पहुंचेगी कि नहीं कहना मुश्किल है, यदि पहुंचेगी भी तो क्या उन नीतियों को पलटा जायेगा जिसके खिलाफ किसान प्रदर्शन करने को बाध्य हो रहें हैं इस पर भी सटीक रूप से टिप्पणी करना कठिन है.
प्रकट रूप में किसान टमाटर के भाव के न्यूनतम स्तर तक गिर जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं परन्तु वास्तव में वे उस नोटबंदी का विरोध कर रहें हैं जो टमाटर के भाव गिर जाने के नेपथ्य में है. किसान अनजाने में उस नीति का विरोध कर रहे हैं जो उनकी फौरी तंगहाली के जिम्मेदार है.
दरअसल, पत्थलगांव से लेकर जशपुर तक के क्षेत्र में उर्वरा भूमि होने के कारण टमाटर का प्रचुर उत्पादन होता है. इसे लेने के लिये छत्तीसगढ़ के अलावा झारखंड तथा ओडिशा से भी व्यापारी आते हैं. आज की तारीख में इस टमाटर के भाव गिरने के दो कारण हैं.
पहला, इस बार नोटबंदी के कारण ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा है. छोटे नोटों की कमी के चलते परिवहन ना के बराबर हो रहा है. जिसके चपेट में टमाटर क्या सब्जी से लेकर अनाज तक आ गये हैं. इस कारण से बाहर के व्यापारी किसानों से टमाटर खरीदकर कैसे ले जा पायेंगे?
दूसरा, नोटों की कमी के कारण व्यापारियों के पास नगदी की कमी हो गई है. इस कारण से वे भी टमाटर खरीदने से परहेज कर रहें है. इसके अलावा उनके यहां के बाजार भी तो मंदे पड़े हैं इसलिये थोक में टमाटर ले जाकर क्या करेंगे, उसका अचार थोड़े ना ही डालने हैं?
इधर दूसरी सब्जियों की तुलना में टमाटर तैयार होने के साथ तुरंत बिक जानी चाहिये अन्यथा उसके सड़ जाने का डर रहता है. इस कारण से किसान विवश हैं. उनकी विवशता उन्हें विरोध करने को बाध्य कर रही है. किसान अपने टमाटर का सही मूल्य चाह रहे हैं.
सभी किसान अपने उत्पादन का वह मूल्य चाहते हैं जिससे उनकी लागत के साथ-साथ इतना मुनाफा निकल सके कि उनके परिवार का भरण-पोषण हो सके. जब यह नहीं मिल पाता है तो किसान या तो आत्महत्या कर लेते हैं या विरोध करते है. पत्थलगांव के किसानों ने आत्महत्या करने के बजाये यथा स्थिति को बदलने के लिये विरोध का नायाब तरीका ढ़ूढ़ा हैं. उन्होंने मेहनत से उगाये गये सैकड़ों टन टमाटरों को बुधवार को सड़कों पर बिछाकर सड़क जाम किया.
शहीदे आज़म भगत सिंह ने अपने पर्चे में प्रसिद्ध अराजकतावादी प्रूंदों की उस उक्ति का उल्लेख किया था जिसमें कहा गया था कि बहरों को सुनाने के लिये धमाके की आवश्यकता होती है. आज, कम से कम जनता तक तो यह आवाज पहुंच गई है कि नोटबंदी से टमाटर के उत्पादक किसान कंगाली के कगार पर पहुंच गये हैं.
यथास्थिति में तुरंत बदलाव तो नहीं आयेगा परन्तु इससे आवाज देश के नीति निर्धारकों के कानों तक तो जरूर पहुंचेगी. लोहिया ने कहा था जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं.
नोटबंदी के कारण छाई मंदी से आत्महत्या करने से तो बेहतर है कि टमाटरों से आत्महत्या करवा कर अपना विरोध दर्ज करवाया जाये.