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अडानी की जनसुनवाई पर सवाल

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में अडानी के प्रस्तावित सरगुजा रेल कॉरीडोर को लेकर शुक्रवार को होने वाली जनसुनवाई सवालों के घेरे में आ गई है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने आरोप लगाया है कि इस जन सुनवाई के लिये निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है और अडानी व सरकार की मिलीभगत से सारे कानूनी प्रावधानों को किनारे किया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से जारी बयान में कहा गया है अडानी कंपनी द्वारा प्राइवेट रेल कॉरीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए कल 2 दिसम्बर को साल्ही गाँव में ग्राम पंचायत भवन में ऐसी जनसुनवाई कराई जा रही है, जिसकी ना तो क्षेत्रीय ग्रामीणों को, ना ही क्षेत्र के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को कोई सूचना है. जबकि सामाजिक प्रभाव आंकलन के लिए बने नियमों “भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवास्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (सामाजिक समाघात निर्धारण, सहमति तथा जन सुनवाई) नियम 2016 के अनुसार किसी भी भूमि अधिग्रहण से पूर्व सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट तैयार की जानी है और उसका प्रकाशन पंचायत तथा प्रमुख स्थानों पर किया जाना है जिसके पश्चात जनसुनवाई का आयोजन किया जाना चाहिए.

अपने बयान में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि जनसुनवाई से पूर्व इस रिपोर्ट का विस्तृत प्रचार प्रसार कराना और ग्रामीणों को इसके सम्बन्ध में जनसुनवाई से पूर्व पर्याप्त समय देना अति आवश्यक है. धारा 12 के अनुसार इसकी बाकायदा पोस्टर चस्पा के अलावा विस्तृत मुनादी करवाना भी आवश्यक है. चूंकि यह क्षेत्र पाँचवी अनुसूची क्षेत्र है, इसलिए नियमों की धारा 13 के अनुसार यहाँ जनसुनवाई से पूर्व ग्राम सभा की सहमति की भी आवश्यकता है. परन्तु निर्धारित जनसुनवाई से पूर्व ना ही गाँव में इसकी कोई स्पष्ट सूचना पहुंची है और ना ही सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट की प्रति मिली है. यहां तक कि यहाँ इस सम्बन्ध में किसी ग्राम सभा का आयोजन किया गया है.

आंदोलन की ओर से कहा है कि रेल कॉरीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तो लगभग संपन्न भी होने आई है और कई लोगों की ज़मीन तो अधिग्रहित भी की जा चुकी है, जिसमें मुआवज़ा वितरण के साथ ही सहमति पत्र अनिवार्यता से ली जा रही है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बयान में कहा गया है कि यह काम कायदे से जनसुनवाई के बाद ही कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रभावितों के साथ-साथ पूरे ग्रामवासियों को विचार-विमर्श किया जाना चाहिए और ग्राम सभा की मंज़ूरी ली जानी चाहिए. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने इस जन सुनवाई को रद्द करने की मांग की है.

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