प्रसंगवश

बड़ों के पास हैं नये बड़े नोट

सभी कायदे कानून छोटे लोगों के लिये होते हैं. बड़े लोग, पहुंच वाले लोग बड़े आराम से कायेद-कानूनों को धता बताकर घूमते रहते हैं. इसका खुलासा तब हुआ जब गुरुवार को दिल्ली पुलिस ने मुंबई से लाये गये 2000 के नये नोटों की एक खेप को पकड़ा. हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर दिल्ली पुलिस ने मुंबई से आये दो लोग अजीत पाल तथा राजिंदर सिंह को 27 लाख रुपयों के साथ धर दबोचा. इनके पास 2000 रुपयों के इतने नोटों को देखकर पुलिस दंग रह गई.

पकड़े गये आरोपियों ने बताया कि इससे पहले भी वे 1.5 करोड़ रुपये 2000 रुपयों के नये नोटों की शक्ल में मुंबई से दिल्ली ला चुके हैं. पुलिस ने मामला आयकर विभाग को सौंप दिया है.

अधिकारी इस बात की आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि इसमें बैंक से लेकर कई स्तर के बड़े अफसर शामिल हैं. ऐसे समय में जब आम लोग नये करेंसी को पाने के लिये जूझ रहें हैं देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से देश की राजधानी दिल्ली में नये नोटों के जखीरे लाना अपने-आप में एक बड़े घोटाले का संकेत लिये हुये है.

जाहिर है कि दिल्ली पुलिस ने दो ही आदमी को पकड़ा है जो इससे पहले 1.5 करोड़ रुपये ला चुके हैं. न जाने ऐसे कितने अनजाने खेप दूसरों के द्वारा लाई गई होगी जो पकड़ में नहीं आई है.

दूसरी तरफ 9 नवंबर से देश के एटीएम में लोग नये नोटों के लिये कतारबद्ध देखे जा सकते हैं. जिनमें से अधिकांश हाथ मलते ही रह जाते हैं. ये वे लोग हैं जो अपने एटीएम कार्ड के माध्यम से बैंक में जमा अपनी गाढ़ी कमाई से कुछ नये नोट हासिल करना चाहते हैं ताकि जरूरत के वक्त उनकी जेब में वैध करेंसी रहने का दिलासा रहे.

बैंकों तथा डाकघरों में भी इसी तरह से देश के बाशिंदों को भेड़-बकरियों के समान जूझते देखा जा सकता है. ये लोग पुराने नोट जमा करके नये नोट लेना चाहते हैं.

दोनों ही के लिये हजार तरह के कायदे कानून हैं. रोज बदलते नियम हैं. पहचान पत्र, आधार कार्ड, आयकर का नंबर, पहचान बताने वाली स्याही है.

उसके बाद भी देशवासी वैध नकदी की समस्या से दो-चार हो रहें हैं. अस्पतालों में, दवा दुकानों में जा जाकर लौट रहें हैं. ऐसे में मुंबई से दिल्ली लाई जा रही करोड़ों की नई करेंसी सरे बाजार ऐलान है कि देश में दो तरह के नागरिक समाज हैं. एक जिनके पास कुछ नहीं है, दूसरा वे जिनके पास सब कुछ है.

जाहिर है कि सभी कायदे कानून छोटों के लिये बड़े तथा बड़ों के लिये छोटे हैं.

नोटबंदी ने इसी सत्य को फिर से उजागार कर दिया है.

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