बाज़ार

गिरते रुपए से खुश हैं सेब उत्पादक

शिमला | एजेंसी: रुपये के अवमूल्यन से सरकार भले ही परेशान हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक तो बिल्कुल ही नहीं. इसका कारण यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन से आयातित सेब महंगे हो गए हैं और इसके चलते लोग आयातित सेब की जगह देश में उगाए गए सेब खरीदने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं.

आयातित सेब जहां एक साल पहले 170 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे थे, वह अभी 200 रुपये प्रति किलो से अधिक कीमत पर बिक रहे हैं.

ऊपरी शिमला के कोटगढ़ के प्रमुख सेब उत्पादक गोपाल मेहता ने कहा, “आयातित सेब इन दिनों महंगे हो गए हैं और आम आदमी की पहुंच से दूर हो गए हैं. इसलिए वे तुलनात्मक रूप से सस्ते हिमाचल प्रदेश के सेब को पसंद कर रहे हैं.”

हिमाचल प्रदेश देश में एक प्रमुख सेब उत्पादक राज्य है. वर्ष 2012-13 में राज्य में कुल 2.04 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था, जो सामान्य 2.5 करोड़ पेटी के मुकाबले करीब 20 फीसदी कम था. एक पेटी में 20 किलोग्राम सेब अंटते हैं. इस बार राज्य में 3.5 करोड़ पेटी से अधिक सेब का उत्पादन होने के आसार हैं.

जानकारों के मुताबिक देश के 40 से 50 फीसदी सेब बाजार पर चीन, अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और चीली से आयातित सेब का प्रभुत्व है. दिल्ली के आजादपुर थोक मंडी में पिछले साल उत्कृष्ट आयातित सेब की एक पेटी की कीमत 2,000 रुपये या इससे कम चल रही थी, जो अभी 2,600 रुपये के आसपास चल रही है.

कृषि उपज के कारोबार से जुड़े अदानी एग्रीफ्रेश के उप महाप्रबंधक संजय महाजन ने कहा, “सेब के आयात में काफी गिरावट आई है. इससे घरेलू सेब को लाभ मिला है.”

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