प्रसंगवश

चीन से इतना आयात क्यों होता है?

रायपुर | विशेष संवाददाता: चीन से भारत में इतना ज्यादा आयात क्यों होता है? हाल ही में स्वास्थ्य के लिये हानिकारक बल्ब को छत्तीसगढ़ में प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि एक माह के भीतर ही लगातार तीन बार छत्तीसगढ़ में चीन में बने हैलोजन तथा बल्ब के कारण कुलमिलाकर हजार से भी ज्यादा गांव वालों के आंखों में सूजन आ गई थी. इस कारण से छत्तीसगढ़ शासन ने इनकों राज्य में प्रतिबंधित कर दिया है.

केन्द्र सरकार के आकड़ों के अऩुसार भारत में सबसे ज्यादा सामान चीन से आयात किया जाता है. कहने का तात्पर्य यह है कि भारत में जितना आयात किया जाता है उसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी चीन में बने सामानों की होती है. साल 2014-15 में भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 13.5021 फीसदी थी जो साल 2015-16 में बढ़कर 16.2247 फीसदी की हो गई.

चीन की तुलना में साल 2015-16 में स्विटजरलैंड से 5.0626 फीसदी, संयुक्त अरब अमीरात से 5.0990 फीसदी, अमरीका से 5.7294 फीसदी, जर्मनी से 3.1763 फीसदी, इंडोनेशिया से 3.4454 फीसदी, कोरिया से 3.4278 फीसदी, इराक से 2.8336 फीसदी का आयात हुआ है. भारत में करीब 232 देशों से आयात किया जाता है.

जाहिर है कि कोई भी दूसरा देश चीन के टक्कर में नहीं है. चीन, भारत के आयात में करीब 5 फीसदी के हिस्सदारी वाले देश स्विटजरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात तथा अमरीका से पांच गुना ज्यादा भारत में निर्यात करता है.

दो बातें स्पष्ट हैं. पहला भारत में सबसे ज्यादा चीन से आयात होता है दूसरा चीन में बने कुछ उत्पादों की गुणवत्ता संदेह के दायरे में हैं. छत्तीसगढ़ में तो उन्हें चिकित्सीय तौर पर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक पाया गया है. ऐसे में सीजीखबर ने पड़ताल करने की कोशिश की कि आखिर क्या कारण है कि चीन में बने उत्पाद भारत में इतने बहुतायत से आयात किये जाते हैं.

सीजीखबर ने बिलासपुर में रहने वाले इन मामलों के जानकार नंदकुमार कश्यप से जब सवाल पूछा तो उन्होंने बताया चूंकि चीन में बने उत्पाद सबसे सस्ते होते हैं इसलिये भारतीय व्यापारी वहीं से माल मंगाते हैं. उन्होंने कहा कि चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग करने वाला देश बन गया है. चीन में माल का उत्पादन सबसे सस्ता होता है इसलिये अमरीका तथा विकसित देशों की कंपनियां भी वहां से अपना उत्पादन करवाती है ताकि ज्यादा मुनाफा बटोर सके.

नंदकुमार कश्यप ने बताया कि विश्व व्यापार संगठन का हम लोगों ने विरोध किया था. उसका कारण यह है कि यह समझौता दुनिया के सभी देशों के साथ व्यापार, सेवा व कृषि के मामले में समान व्यवहार करने की मांग करता है. भला एक विकासशील देश को कैसे एक विकसित देश के साथ एक ही तराजू में रखकर तौला जा सकता है. उन्होंने कहा भारत सरकार ने साल 1995 में इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये थे. उस समय यदि भाजपा ने संसद में वामपंथ का साथ दिया होता तो भारतीय संसद से इस अन्यायपूर्ण समझौते को ठुकराया जा सकता था. अब चीन उसी समझौते का फायदा उठा रहा है.

नंदकुमार कश्यप ने कहा जिस अमरीका ने विश्व व्यापार समझौता लाया था उसका खुद का बाजार आज चीनी मालों से भर गया है. दरअसल, चीन में रॉ मटेरियल तथा तकनालाजी सस्ती है इस कारण से वहां माल सस्ते में बन जाता है. दुनिया भर की कंपनियां इसी सस्ते माल उत्पादन के कारण चीन की ओर भाग रहीं हैं.

सीजीखबर ने अभी हाल ही में चीन की यात्रा से लौटे रायपुर के ट्रेड यूनियन नेता धर्मराज महापात्र से इस बारें में बात की. धर्मराज महापात्र ने कहा कि चीन में लेबर हरगिज भी सस्ता नहीं है. वहां रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों में मजदूरों का न्यूनतम वेतन 300 युनान प्रतिदिन है. अर्थात् चीन के मध्यम दर्जे के शहर में एक मजदूर को प्रतिदिन भारतीय मुद्रा में 2,982 रुपये मिलते हैं.

धर्मराज महापात्र ने बताया कि चीन में सरकारी नीतियों के कारण वहां तकनालाजी अत्यंत सस्ती है तथा रॉ मटेरियल भी वहां सस्ता है. इस कारण से वहां उत्पादन करवाना सस्ता पड़ता है. उन्होंने आगे बताया कि तकनालाजी के मामले में चीन ने कई विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है. चीन उन्नत तकनालाजी तथा सस्ते उत्पादन लागत के कारण दूसरे देशों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.

जब सीजीखबर ने नंदकुमार कश्यप से हाल ही में चीन में बने 6 बल्ब फूटने से राजनांदगांव के एक गांव में 400 ग्रामीणों के आंखों में सूजन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा बगैर फिलामेंट वाले सभी बल्ब फूटने पर आंखों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. हैलोजन हो या एलईडी बल्ब सबके फूटने पर हानिकारक गैसें निकलती है. केवल पुराने दिनों के बल्ब जो फिलामेंट से जलते थे फूटने पर नुकसानदेह नहीं होते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि इसकी वैज्ञानिक और चिकित्सीय तौर पर जांच होनी चाहिये कि चीन में बने बल्ब तथा हैलोजन कितने नुकसानदायक हैं. जो चीज हमारे जनता को नुकसान पहुंचाती है उसे भला बेचने की इजाजत कैसे दी जा सकती है.

नंदकुमार कश्यप ने कहा कि ऐसा नहीं है कि चीन के सभी उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं. मुख्यतः वहां तीन तरह के माल बनते हैं. पहला उच्च तकनालाजी तथा गुणवत्ता वाले जिनके पीछे अमरीका जैसे विकसित देश भागते हैं. दूसके तरह के माल मध्यम श्रेणी के होते हैं. तीसरे तरह के मालों में गुणवत्ता का अभाव होता है परन्तु उन्हें इतनी कम कीमत पर बेचा जाता है कि हमारे व्यापारी मुनाफा कमाने के लिये उसके पीछे भागते हैं. चीन से वैध ही नहीं अवैध ढ़ंग से भी तस्करी के माध्यम से माल आयात किये जाते हैं.

इन तमाम तरह के पड़ताल के बाद निष्कर्ष निकलता है कि हमारे देश में उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये. खासकर, उच्च गुणवत्ता वाले सस्ते उत्पादों की ताकि हमारे देश के व्यापारी-कारोबारी की दूसरे देशों से आयात पर निर्भरता कम हो सके. इसके लिये भारतीय कामगारों को तकनीकी रूप से उन्नत बनाना पड़ेगा. यदि भारत में ही उत्पादन होने लगे तो इससे एक ओर तो कामगारों को रोजगार मिलेगा तथा दूसरी तरफ भारतीयों की क्रयशक्ति में इज़ाफा होगा. जिसका लाभ अंत में देश की अर्थव्यवस्था को होगा.

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