2 सितंबर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल
रायपुर | संवाददाता: 2 सितंबर को ट्रेड यूनियनों की आम हड़ताल है. इसे छत्तीसगढ़ में सफल बनाने के लिये सोमवार को चार वामपंथी पार्टियों की राजधानी रायपुर में बैठक हुई. इस बैठक में सीपीएम, सीपीआई, एसयूसीआई तथा सीपीएमएल लिबरेशन के नेताओं ने भाग लिया. वामपंथी नेताओं ने कहा कि केन्द्र की नव-उदारवादी नीतियों के खिलाफ देश के मजदूर 16वीं बार हड़ताल कर रहे हैं और अपनी आर्थिक मांगों से ऊपर उठकर इस देश की आम जनता के बुनियादी अधिकारों की हिमायत में मोदी सरकार की नीतियों पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं.
इन नीतियों का जिक्र करते हुए वामपंथी पार्टियों के नेताओं ने रेखांकित किया कि देश में आर्थिक असमानता इतनी बढ़ गई है कि सबसे धनी 10 फीसदी लोगों के हाथों में देश की कुल संपदा का तीन-चौथाई से ज्यादा जमा हो गया है, जबकि 90 फीसदी भारतीय परिवारों की मासिक आय 10,000 रूपये भी नहीं है.
वामपंथी प्रटी के नेताओं ने कहा कि मजदूर और किसान अपनी मेहनत से जो संपदा पैदा करते हैं, जिसका प्रतिफलन देश की जीडीपी वृद्धि-दर में दिख रहा है, उसे छीनकर देशी-विदेशी कार्पोरेट घरानों की तिजोरियों को भरा जा रहा है. इन्हीं पूंजीपतियों ने हमारे बैंकों का 18 लाख करोड़ रुपया दबाया हुआ है, लेकिन इसे वसूलने के बजाये यह सरकार उन्हें हर साल 6 लाख करोड़ रुपयों की कर-रियायतें दे रही हैं.
प्रेस को जारी एक बयान में माकपा के सचिव संजय पराते ने कहा कि सातवें वेतन आयोग ने न्यूनतम वेतन 18,000 रूपये प्रति माह घोषित किया है, लेकिन निजी क्षेत्र और सरकारी विभागों में कार्यरत ठेका मजदूरों के लिए इसे लागू करने के लिए तैयार नहीं है. उलटे, आज मजदूरों को जो श्रम-सुरक्षा हासिल है, उन कानूनों को ही वह ख़त्म कर रही है और उन्हें मालिकों की दया पर छोड़ा जा रहा है.
इन नीतियों की सीधी मार किसानों पर भी पड़ रही है और वे भूमिहीनता, ऋणग्रस्तता, पलायन और आत्म-हत्या के शिकार हो रहे हैं. यह सरकार पूंजीपतियों पर चढ़े बैंक-ऋण को तो सेटल कर रही है, किसानों को सरकारी व साहूकारी कर्जे से मुक्त करने की चिंता नहीं है. कृषि क्षेत्र की सब्सिडी को किसानों को देने के बजाये कृषि-आधारित उद्योगों की ओर मोड़ा जा रहा है.
संजय पराते ने कहा कि सेंटर फॉर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि हमारे देश में उच्च शिक्षा का स्तर कितनी तेजी से गिर रहा है. विश्व के पहले 300 सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों में भारत का कोई भी संस्थान शमिल नहीं है. निजीकरण की नीतियों के कारण आम जनता के लिए सस्ती शिक्षा दूभर हो गई है. पीएससी-2003 के संबंध में हाईकोर्ट के निर्णय से स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार में यह सरकार सीधे तौर पर शामिल है. प्रदेश में एक लाख से ज्यादा सरकारी पद खाली हैं, लेकिन उसे भरने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है.
वामपंथी नेताओं ने कहा कि देश को बचाने के लिए इन नीतियों के खिलाफ लड़ाई बहुत जरूरी है. यह ख़ुशी की बात है कि इस संघर्ष में गैर-वामपंथी तबके भी भरी संख्या में शामिल हो रहे हैं. इसलिए यह हड़ताल एक ‘देशभक्तिपूर्ण’ आयोजन है. वामपंथी पार्टियों ने आम जनता के सभी तबकों से इस संघर्ष में अपना योगदान करने की अपील की है.