डेयरी और खेती में नई इबारत
रायपुर । एजेंसी: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के जवाली गांव की रहने वाली उषा अपने गांव की सरपंच है. कामयाब पशुपालक के साथ-साथ उन्नत कृषक के रूप में उसके परिवार की पहचान है. अपने पति यशवंत पटेल की मदद से उषा 40 एकड़ के रकबे में धान, गेहूं, टमाटर, धनिया, मिर्च, पपीता, केला और सूरजमुखी की खेती करती है. अपने खेतों में वे रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम करते हैं.
घर-परिवार तक सीमित रहने वाली उषा ने जब दो गायों के साथ दूध बेचने का व्यवसाय शुरू किया तब उसने सोचा भी नहीं था कि एक दिन उसके डेयरी फॉर्म से 350 लीटर दूध की बिक्री होगी. शुरुआत जरूर संघर्ष भरा था, लेकिन उषा के हौसले बुलंद थे. दो से चार, चार से आठ और आठ से सोलह करते-करते उसने अपना डेयरी फॉर्म तैयार कर लिया.
उषा की सफलता से आसपास के लोग भी प्रेरित हुए. दूसरे किसान भी डेयरी से होने वाले फायदे को देखकर गौ पालन को गंभीरता से लेने लगे. उनके दूध की भी बिक्री की व्यवस्था उषा ने की. आज गांववाले रोज 150 लीटर दूध उषा को बेचने के लिए देते हैं. उनके खुद के डेयरी फॉर्म से हर रोज 200 लीटर दूध निकलता है. इस तरह गांव में 350 लीटर दूध का उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है.
डेयरी के व्यवसाय ने ही उसके लिए जैविक खाद और कीटनाशकों का इंतजाम कर दिया है. खुद के तैयार किए हुए कंपोस्ट खाद, गोबर खाद और केंचुआ खाद का इस्तेमाल वे करते हैं. फसलों को कीड़ों और बीमारियों से बचाने के लिए वे गौमूत्र से बने कीटनाशक ही प्रयोग करते हैं. जैविक खाद और कीटनाशक के उपयोग से न केवल उनकी पैदावार बढ़ी है, बल्कि खेती की लागत भी बहुत कम हो गई है.
उषा गाय के गोबर से बायोगैस संयंत्र चलाती है. इससे भी खाना पकाने के लिए ईंधन में होने वाले खर्च की बचत होती है. डेयरी और पशुपालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए राज्य शासन ने उषा को कृषि उत्पादकता पुरस्कार से नवाजा है.
उषा बताती है कि उसकी सफलता में कृषि और पशुधन विकास विभाग के अधिकारियों का भी योगदान है. दुधारू पशुओं के टीकाकरण, उनकी उचित देखभाल और पौष्टिक चारे के बारे में मार्गदर्शन वह अधिकारियों से लेती रहती है.
हरे चारे के रूप में अजोला घास के उत्पादन और पैरे को यूरिया उपचारित कर उसकी पौष्टिकता बढ़ाने के गुर उसे पशुधन विकास विभाग के अधिकारियों से ही प्राप्त हुए. इससे उन्हें दूध का उत्पादन बढ़ाने में काफी मदद मिली. विभागीय योजनाओं और सरकार द्वारा किसानों को दिए जा रहे अनुदानों की जानकारी भी वे लेती रहती हैं. कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह पर उन्नत और वैज्ञानिक तरीके से खेती कर उन्होंने अपने पैदावार में अच्छी बढ़ोतरी की है.
पिछले 12 साल से डेयरी व्यवसाय से जुड़ी उषा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में खेती के साथ-साथ पशुपालन और डेयरी के धंधे के लिए भी किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए. इससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी.
उनका कहना है कि सहकारी समितियों के माध्यम से विकासखंड और जिला स्तर पर दूध खरीदे जाने के केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए. इससे पशुपालकों को उनके दूध की सही कीमत मिलेगी.
कामयाब उद्यमी और संवेदनशील जनप्रतिनिधि के रूप में पहचान बनाने वाली उषा का मानना है कि खेती, पशुपालन और डेयरी; तीनों के संयुक्त उपक्रम से छत्तीसगढ़ के किसान समृद्ध हो सकते हैं. इस तरह की समन्वित खेती से खाद और कीटनाशक की जरूरत भी पूरी होती है जिससे यहां के किसान जैविक खेती कर अपनी उपज का बेहतर दाम हासिल कर सकते हैं.