क्या रेलमंत्री जी सुन रहे हैं?
बिलासपुर | समाचार डेस्क: रेलवे ठेका कर्मचारियों की सुरक्षा का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखता है. न तो उनका बीमा कराया जाता है और ही उन्हें सुरक्षा उपकरण दिये जाते हैं. दूसरी ओर रेलवे ज्यादातर काम ठेकेदार के माध्यम से कराती है. जिसमें दिनों-दिन वृद्धि हो रही है. शुक्र है कि उसके बाद भी रविवार शाम को जोनल मुख्यालय वाले बिलासपुर के स्टेशन में दर्जनभर ठेका कर्मचारी मौत के मुंह में जाने से बच गये.
ठेका कर्मियों की जान बच जाने के बाद भी रेलवे उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा. रेलवे के जो कर्मचारी पहुंचे वे भी रेलवे को हुये नुकसान का ही आकलन करते रहे.
उल्लेखनीय है कि रविवार शाम को बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर पुणे-हावड़ा आजाद हिंद एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर दो पर आया था. उसमें पानी भरने के लिये दर्जनभर ठेका कर्मचारी लगे थे. प्लेटफार्म नंबर एक पर एक यात्री ट्रेन तथा गुड्स लाइन पर मालगाड़ी थी. जब पुणे-हावड़ा आजाद हिंद एक्सप्रेस छूट गई तो ठेका कर्मचारी प्लेटफार्म में जाने की तैयारी कर रहे थे. उसी समय उन्होंने देखा कि उसपर एक माल गाड़ी आ रही है.
मालगाड़ी का एक दरवाजा खुला हुआ था तथा वह हाइड्रेन पाइप को तोड़ता हुआ आगे बढ़ रहा था. मालगाड़ी के दरवाजे से टकराने के कारण पाइप में लगे बिजली के बोर्ड चिंगारी के साथ जल रहे थे. सामने से मौत आती देख सभी ठेका कर्मचारी नाली में लेट गये. जिससे उनकी जान बच गई.
ठेका कर्मचारियों के पास न तो सुरक्षा टोपी, दस्ताने तथा जूते तक नहीं थे. बाद में रेलवे के जो कर्मचारी पहुंचे उन्हें हाइड्रेन पाइप तथा बिजली के बोर्ड टूटने की फिकर सता रही थी तथा वे उसे ही गिन रहे थे. ठेका कर्मचारियों के लिये किसी के पास भी फुर्सत नहीं थी.
ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे में काम करने वाले ठेका कर्मचारियों की बीमा कराना तथा उन्हें सुरक्षा उपकरण देना किसकी जिम्मेदारी है. क्या रेलवे इससे इंकार कर सकता है. क्या रेलवे आगे से इस पर गौर फरमायेगा कि ठेकेदार अपने कर्मचारियों की सुरक्षा का समुचित ध्यान रख रहे हैं या नहीं. आखिरकार जो दुर्घटना होती है वह रेलवे क्षेत्र में ही तो होती है.
गौरतलब है कि दावे के अनुसार बिलासपुर रेलवे स्टेशन देश के चुनिंदा साफ-सुथरे रेलवे स्टेशनों में से है. जाहिर है कि उसे इस मुकाम तक पहुंचाने वाले खुद मौत के मुंह में घुसकर काम करते हैं. क्या यह बात एक ट्वीट पर रेल यात्रियों के बच्चों को दूध पहुंचा देने वाले, बीमारों को दवा तथा चिकित्सा सुनिश्चित करने वाले रेलमंत्री तक पहुंच पायेगी?