छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: ‘टोनही’ पत्नी की हत्या की

अंबिकापुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक पति ने अपनी पत्नी की ही टोनही होने के शक में हत्या कर दी है. घटना सूरजपुर के रमकोला थाना क्षेत्र का है. मिली जानकारी के अनुसार पति रामेश्वर गोंड़ ने अपनी पत्नी तेजमति की डंडे से पीटकर हत्या कर दी है.

पुलिस ने पति रामेश्वर गोंड़ को धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर लिया है. उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में आज भी महिलाओं पर टोनही का आरोप लगाकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है.

हर तीसरे दिन एक टोनही प्रताड़ना

छत्तीसगढ़ में औसतन हर तीसरे दिन एक महिला को टोनही कहकर प्रताड़ित किया जाता है. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 से जून 2015 तक टोनही प्रताड़ना के 1,268 मामले सामने आए हैं. इसमें से 332 मामले अब भी विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. 10 साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद मामलों का निराकरण नहीं होने की वजह से प्रताड़ित महिलाएं बहिष्कृत जीवन जीने को विवश हैं.

डायन बता पीट-पीटकर मार डाला

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के बीते साल के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 160 औरतें टोनही-डायन बताकर मारी गईं, जिनमें झारखण्ड की 54, ओडिशा की 24, तमिलनाडु की 16, आंध्रपदेश की 15, मप्र की 11 हैं. साल 2011- 2012 और 2013 के आंकड़ों में 519 महिलाओं की हत्या डायन-टोनही के नाम पर हुई.

टोनही के संदेह में 2 की हत्या

‘रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटिलमेंट सेंटर’ नामक गैर-सरकारी संगठन के आंकड़ा के अनुसार, 15 वर्षो में विभिन्न राज्यों में 2500 से अधिक औरतें डायन-टोनही बता मारी जा चुकी हैं. मप्र के झाबुआ जिले में हर साल 10.15 महिलाओं की ‘डाकन’ बता हत्या हो जाती है, कमोवेश यही स्थिति झारखंड, ओडिशा, बिहार, बंगाल, असम के जनजातीय इलाकों की भी है. ऐसे मामले अदालत भी पहुंचे और शीघ्र निपटारों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग तक उठी.

टोनही बता माँ का सिर मुंडवाया

अकेले छत्तीसगढ़ में 10 वर्षों में 1,268 मामले सामने आए जिनमें 332 विभिन्न अदालतों में हैं. बड़ी सच्चाई, इसमें ज्यादातर पीड़ित महिलाएं ही हैं. ठेठ आदिम परंपराओं में जी रहे आदिवासियों के घोर अंधविश्वास का फायदा उठाकर चालाक लोग जमीन, पैसे, शराब, कुकृत्य के लिए ओझा-गुनिया, बाबा, तांत्रिक, झाड़फूंक करने वाले बनकर, ऐसी जघन्यता को अंजाम देते हैं. पढ़ा-लिखा, समझदार तबका भी शिकार होता है.

टोनही बता कर महिला को पीटा

लगता नहीं, इसके पीछे जागरूकों की विचारशून्यता या अनदेखी मूल कारण है, और केवल कानून या सरकारी पहल से अंधविश्वास खत्म होने वाला नहीं. इसके लिए सबको सामूहिक-सामाजिक तौर पर खुलकर ईमानदार प्रयास करने होंगे.

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