उत्तराखंड: हरीश को मौका, केंद्र हैरान
देहरादून | समाचार डेस्क: उत्तराखंड में सत्ता से हटाई गई कांग्रेस सरकार को हाई कोर्ट ने मंगलवार को बड़ी राहत दी. प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के खिलाफ कांग्रेस की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता हरीश रावत से 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा. इस बीच राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा. फैसले से हैरान केंद्र सरकार ने कहा है कि वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के बारे में विचार कर रही है. राष्ट्रपति शासन की घोषणा की समीक्षा न्यायपालिका के जरिये नहीं की जा सकती.
केंद्र सरकार ने गत रविवार को ही मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व वाली राज्य की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करते हुए राष्ट्रपति शासन लगाया दिया था, जबकि एक दिन बाद यानी सोमवार को रावत को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना था.
रावत द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि उन सभी नौ विधायकों, जिन्हें अध्यक्ष ने अयोग्य घोषित कर दिया है, उन्हें विधानसभा में होने वाले मतदान में शामिल होने की मंजूरी होगी.
न्यायालय ने कहा कि मतदान का परिणाम एक अप्रैल को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना चाहिए. न्यायालय ने अपने महापंजीयक को विधानसभा में मतदान पर नजर रखने के लिए पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद रहने को भी कहा है.
अदालत के इस फैसले से उत्साहित रावत ने अपना बहुमत साबित कर देने का विश्वास जताया है. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा, “हमलोग सदन में 31 मार्च को अपना बहुमत साबित कर देंगे.”
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उनकी सरकार को किसी भी कीमत पर गिरा देना चाहते थे, भले ही लोकतंत्र व संविधान की हत्या क्यों न करनी पड़े.
कांग्रेस प्रवक्ता व अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दो दिनों तक व्यापक बहस के बाद न्यायालय का यह फैसला आया है.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “उच्च न्यायालय ने उस तर्क को स्वीकार किया, जिसमें राष्ट्रपति शासन के बावजूद बहुमत साबित करने की मंजूरी के लिए न्यायिक समीक्षा की पर्याप्त गुंजाइश है.”
उन्होंने कहा, “विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाकर राष्ट्रपति शासन लागू करने व बहुमत साबित करने की प्रक्रिया को रोके जाने को न्यायसंगत नहीं ठहराता.”
सिंघवी ने कहा कि न्यायालय ने अयोग्य ठहराए गए विधायकों को मतदान में शामिल होने की मंजूरी दी है, लेकिन उनके मतों पर अलग से विचार किया जाएगा.
न्यायालय के इस फैसले से सन्न भाजपा ने कहा कि यह कांग्रेस की जीत की बात नहीं है. पार्टी ने राष्ट्रपति शासन के दौरान बहुमत साबित करने का मौका देने के न्यायालय के फैसले को ‘अप्रत्याशित’ करार दिया.
भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा, “राष्ट्रपति शासन के दौरान इस तरह का आदेश अप्रत्याशित है.”
उत्तराखंड में राजनीति संकट तब पैदा हुआ, जब पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सहित कांग्रेस के नौ विधायकों ने हरीश रावत के खिलाफ बगावत कर दी और भाजपा के पाले में चले गए.
यह संकट 18 मार्च को तब और गहरा गया, जब विधानसभा ने विनियोग विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया, जबकि सदन के आधे से अधिक सदस्यों ने इस पर मत विभाजन की मांग की. कांग्रेस के बागी विधायकों ने भाजपा के मत विभाजन की मांग का समर्थन किया, जिसे अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल ने खारिज कर दिया.
राज्य के 70 सदस्यों वाले सदन में कांग्रेस के पास नौ बागी विधायकों सहित 36 विधायक हैं. भाजपा के पास 28 हैं. अन्य छह विधायक छोटे दलों के हैं. बताया जाता है कि वे कांग्रेस का समर्थन करेंगे.
कांग्रेस के बागी विधायकों को शनिवार को अयोग्य घोषित कर किए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देर रात कैबिनेट की आपात बैठक बुलाकर फैसला लिया और रविवार से उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. विधानसभा को हालांकि भंग न कर निलंबित रखा गया. सोमवार को भाजपा नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर बहुमत साबित करने का दावा किया. ढोल-नगाड़े बजाए गए, लेकिन अदालत ने मौका कांग्रेस को दिया, भाजपा को नहीं.