भाजपा की वैचारिक हार?
क्या जेएनयू मुद्दे पर भाजपा वैचारिक तौर पर जीत हासिल कर पाई है? कम से कम महाराष्ट्र में उसके साथ गठबंधन वाली शिवसेना तो ऐसा नहीं मानती है. शिवसेना का साफ कहना है कि भाजपा ने ही कन्हैया कुमार को हीरों बना दिया है. उधर, केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जिस दिन यह दावा किया कि भाजपा ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वैचारिक लड़ाई जीत ली, उसी दिन एक भगवा ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक चर्च को तहस-नहस कर डाला.
जेटली ने यह दावा इस वजह से किया था, क्योंकि जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने राष्ट्रीय ध्वज लहराया था और ‘जय हिंद’ कहा था.
उधर, ईसाई समुदाय के एक प्रवक्ता के अनुसार, “चर्च में जब वे बाइबिल के पन्ने फाड़ रहे थे और महिलाओं व बच्चों पर हमले कर रहे थे, तब वे ‘जय हिंद’ नहीं बल्कि ‘जय श्रीराम’ बोल रहे थे. हिंदुत्व ब्रिगेड की लड़ाई का यह नारा पिछली शताब्दी के आखिरी दशक से ही चल रहा है.”
छत्तीसगढ़ में कुछ हफ्तों के अंदर चर्च पर यह छठा हमला था.
जेटली वैचारिक युद्ध वाली बात भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक सम्मेलन मे बोल रहे थे. इसी संगठन के एक सदस्य को कन्हैया की जुबान काटने की धमकी देने के कारण निष्कासित कर दिया गया है.
भगवा ब्रिगेड के एक अन्य कार्यकर्ता को दिल्ली में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया का सिर काटने वाले को 11 लाख रुपये इनाम वाला पोस्टर लगाते गिरफ्तार किया गया है.
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि भाजपा समर्थक वकीलों ने ही पटियाला हाउस अदालत परिसर में कन्हैया कुमार की पिटाई की थी और भाजपा विधायक ओ.पी. शर्मा ने कहा था कि यदि उनके पास बंदूक होती तो वह गोली मार दिए होते.
यह स्पष्ट है कि भाजपा का यह समझना कि यह वैचारिक जीत है, सही नहीं है. जो कुछ हुआ, वह दिमागी स्तर से अधिक शारीरिक स्तर पर है.
यह विचारणीय है कि वामपंथ और दक्षिणपंथ को बांटने का भाजपा का बाहुबल वाले दृष्टिकोण के बारे में शिवसेना तक कह चुकी है कि इस तरह की चालों ने ही कन्हैया को हीरो बना दिया. शिवसेना की इस बात को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
अनुपम खेर ने कोलकाता में एक कार्यक्रम में कहा था कि योगियों और साध्वियों को पार्टी से निकाल देना चाहिए. इस बात से भाजपा के समर्थकों में बहुत कम लोगों ने ही सहमति जताई थी.
भाजपा के लिए यह सही नहीं होगा कि एक मंत्री वैचारिक जीत बताए और दूसरा कन्हैया कुमार को राजनीतिक पथभ्रष्ट करार दे.
दुनिया के देशों में धार्मिक स्वतंत्रता का आकलन करने वाली अमरीकी टीम को वीजा नहीं दिए जाने और भारत में हाल फिलहाल जो घटनाएं हुई हैं, उसको लेकर दुनियाभर में जो वैमनस्य का भाव पनप रहा है, वह अभी खत्म नहीं होगा.
भाजपा को अब दाएं या बाएं देखने की जगह केंद्र की अपनी सरकार के बेहतर प्रदर्शन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. आगे क्या होगा, बहुत कुछ असम, केरल और पश्चिम बंगाल में जीत पर निर्भर करेगा.
यदि वामपंथी केरल में जीत जाते हैं और पश्चिम बंगाल में अपनी स्थिति सुधारते हैं तो जेएनयू वाली भीड़ इसे अपनी जीत मानेगी, क्योंकि इन दोनों राज्यों में वामपंथी कन्हैया की भी कुछ रैलियां होनी हैं.
दूसरी ओर असम में भाजपा कांग्रेस को मात देती है तो वह अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में कुछ उम्मीद कर सकती है.
सरकार से जो गलती हुई, वह यह कि जेएनयू में राजद्रोह के आरोप को उसने बहुत अधिक तूल दे दिया.
चूंकि हिंदुत्व की ओर झुकाव लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है, इसलिए भाजपा के वैचारिक युद्ध की शुरुआत के पहले ही उसके खत्म हो जाने का खतरा है. (एजेंसी इनपुट)