राष्ट्र

‘असहिष्णुता बहुत बड़ा संकट’

कोलकाता | समाचार डेस्क: मशहूर कवि अशोक वाजपेयी ने गुरुवार को कहा कि असहिष्णुता एक बहुत बड़ा संकट है. उन्होंने कहा कि राजनीति का ‘व्यवसायीकरण’ हो गया है और इसका मुख्य मकसद किसी तरह सत्ता में बने रहना है. कोलकाता साहित्य समारोह के उद्घाटन सत्र में वाजपेयी ने दलित शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी पर दुख जताया.

‘सहिष्णु भारत में असहिष्णुता’ के मुद्दे पर हुए सत्र में वाजपेयी ने कहा, “यह महज बहस, असहमति और देश की विविधता के सामने खड़ा प्रश्न नहीं है बल्कि यह बहुत बड़ा संकट है. कोई भी ऐसा लोकतंत्र नहीं हो सकता जिसमें असहमति, बहस और संवाद को हतोत्साहित किया जाए और अल्पसंख्यक-केवल धार्मिक मामलों में नहीं बल्कि विचारों के मामले में भी, पर हमला बोला जाए और उसे राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाए.”

असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले वाजपेयी ने कहा कि विरोध की आवाज उठाने वालों का ‘चरित्र हनन’ किया जा रहा है.

“हमने जो करना था, जब किया तो वह इसलिए किया क्योंकि हम मुद्दे को लोगों के सामने लाना चाहते थे ताकि वे तय करें कि उन्हें कैसा भारत चाहिए. लेकिन, सोशल मीडिया पर हम सबका चरित्र हनन किया गया जैसे कि हम संदिग्ध चरित्र और संदिग्ध साख के लोग हैं.”

पूर्व नौकरशाह वाजपेयी ने कहा कि पुरस्कार लौटाने वाले किसी भी शख्स ने ये नहीं कहा कि देश असहिष्णु है. उन्होंने कहा, “हमने कहा कि असहिष्णुता की कुछ ताकतों को तवज्जो दी जा रही है. भारत बतौर एक देश और यहां के लोग काफी हद तक सहिष्णु हैं.”

वाजपेयी ने कहा, “बातों को ऐसे पेश किया गया जैसे कि हम सरकार को कुछ कह रहे हों. जबकि, ऐसा नहीं था. हम लोगों को संबोधित कर रहे थे. क्योंकि, ये लोग ही हैं जिन्हें तय करना है कि वे कैसा भारत चाहते हैं.”

उन्होंने मौजूदा राजनीति के स्तर पर भी हमला बोला. वाजपेयी ने कहा, “नेता समानता और न्याय सुनिश्चित करने वालों के बजाए सत्ता में बने रहने के लिए प्रबंधकीय तिकड़म करने वाले बन गए हैं.”

देश में बढ़ रही हिंसा की तरफ इशारा करते हुए वाजपेयी ने कहा कि इसकी वजह यह है कि गरीबी, अन्याय, असमानता, अशिक्षा जैसे मुद्दों को अदृश्य कर दिया गया है. जो नजर आ रहा है वह है स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, इंटरनेट.

रोहित वेमुला की खुदकुशी पर उन्होंने कहा, “यह घटना इस बात को साबित करती है कि जहां ज्ञान को स्वतंत्र होना चाहिए, जहां ज्ञान को असहमति, संवाद, बहस के जरिए मिलना चाहिए, वहां इतना भेदभाव है. बजाए इस पर ध्यान देने के, हमारे पास ऐसे मंत्री हैं जो चीजों को खोदकर निकाल रहे हैं और हमें बता रहे हैं कि रोहित दलित नहीं था.”

उन्होंने कहा कि सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता की बहस में हमें देश के सामने मौजूद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को नहीं भूलना चाहिए.

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