गुड्सा उसेंडी की पत्नी को हाईकोर्ट से राहत नहीं
बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी की पत्नी मालती उर्फ केएस प्रिया उर्फ शांति रेड्डी और सुरेंद्र कोसरिया की 10 साल की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है. पिछले महीने इस मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था.
गौरतलब है कि 20 फरवरी 2006 को राजधानी रायपुर के टैगोरनगर स्थित एमएलए रेस्ट हाउस में 32 विधायकों को कोरियर के माध्यम से लिफाफों में बंद नक्सली साहित्य व दंडकारण्य स्पेशल जोन कमेटी के प्रवक्ता गुडसा उसेंडी के नाम की एक-एक सीडी विधायकों को मिली थी.
इस मामले में पुलिस हाथ-पैर मार कर थक गई और कुछ भी पता नहीं चलने के बाद मामला ठंढ़े बस्ते में डाल दिया गया. 28 दिसम्बर 2006 को पुलिस ने मामले का खात्मा क्रमांक 101/ 06 पेश कर दिया.
दो साल बाद रायपुर में कुछ नक्सलियों और समर्थकों के पकड़े जाने के बाद पुलिस ने 3 फरवरी 2008 को विधायक निवास में सीडी और नक्सली साहित्य बांटने के आरोप में मालती उर्फ केएस प्रिया उर्फ शांति रेड्डी के मेमोरेंडम के आधार पर सुरेंद्र कोसरिया, प्रतीक झा, सिद्वार्थ शर्मा समेत 60 लोगों को नामजद आरोपी बनाया था.
4 फरवरी 2008 को मालती व सुरेंद्र व 26 अप्रैल 2008 को प्रतीक व सिद्वार्थ की गिरफ्तारी की गई. इसके बाद 30 अप्रैल 2008 को इस मामले में न्यायालय में आरोप पत्र पेश किया गया था.
हालांकि इस पूरे मामले में 32 में से किसी भी विधायक ने पुलिस को शिकायत नहीं की. यहां तक कि इस मामले को विधानसभा में जोरशोर से उठाने वाले विधायकों या विधानसभा की सचिवालय ने भी मामले में हस्तक्षेप नहीं किया. अदालत ने इस मामले में 32 गवाहों को बुलाया लेकिन इनमें कोई भी विधायक या विधानसभा सचिवालय का कर्मचारी नहीं था.
इस मामले में सुनवाई करते हुये रायपुर की फास्ट ट्रेक कोर्ट ने जुलाई 2010 में मालती उर्फ केएस प्रिया उर्फ शांति रेड्डी व सुरेंद्र कोसरिया को दस-दस साल कैद व जुर्माने की सजा सुनाई. इस मामले में प्रतीक झा और सिद्वार्थ उर्फ मोटू शर्मा को दोषमुक्त करार दिया गया था.
मालती उर्फ केएस प्रिया उर्फ शांति रेड्डी व सुरेंद्र कोसरिया ने अपने अधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में रायपुर फास्टट्रैक कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. जिस पर सुनवाई के बाद पिछले महीने फैसले को सुरक्षित रखा गया था. गुरुवार को इस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर अपनी मुहर लगाते हुये आरोपियों को राहत देने से इंकार कर दिया.