‘मसीहा’ डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा का निधन
ग्वालियर | संवाददाता: भारत जन आंदोलन के ब्रह्मदेव शर्मा का रविवार की रात ग्वालियर में निधन हो गया. डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा लगभग साल भर से अस्वस्थ थे और ग्वालियर में ही रह रहे थे, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. सोमवार की दोपहर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. मावा नाटे मावा राज के प्रणेता डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा ने बस्तर के कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन को जब नक्सलियों ने अगवा कर लिया था तो सरकार की ओर से मध्यस्था की थी. आदिवासियों में डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा के प्रति गहरा लगाव था.
ब्रह्मदेव शर्मा के प्रति आदिवासियों के इस गहरे लगाव का कारण दरअसल बैलाडीला का वो चर्चित कांड है, जिसमें श्री शर्मा ने 300 से ज्यादा गैर जनजातीय लोगों की जबरन शादी आदिवासी लड़कियों से एक साथ करा दी थी. ये वो लोग थे, जो बैलाडीला के लौह अयस्क की खदानों में काम करने आए थे. इन्होंने वहां की भोली-भाली आदिवासी युवतियों को शादी का झांसा देकर उनका दैहिक शोषण किया और छोड़ दिया. 60 के अंतिम दशक के उस दौर में शर्मा बस्तर के कलेक्टर थे.
19 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जन्में ब्रह्मदेव शर्मा का परिवार ग्वालियर में आ कर बस गया था. वे 1956 में आईएएस बने. मध्य प्रदेश काडर मिला. गणित से पीएचडी श्री शर्मा 1968 से लेकर 1970 तक बस्तर में पदस्थापित रहे और यहीं आदिवासी समाज से उनका इतना गहरा नाता जुड़ा कि अब वे उनके दिलों में बस गए.
सन 1973-74 में वे केन्द्रीय गृह मंत्रालय में निदेशक बने और फिर संयुक्त सचिव भी. लेकिन 1980 में सरकार के साथ बस्तर पाइन प्रोजेक्ट को लेकर नीतिगत मतभेद उभरने के बाद उन्होंने नौकरशाही से इस्तीफा दे दिया. तब श्री शर्मा मध्य प्रदेश सरकार में जनजातीय मामलों के सचिव थे. बाद में उन्हें फिर से आदिवासी विभाग का सचिव बनाया गया.
डॉ ब्रह्मदेव शर्मा बस्तर कलेक्टर रहते आदिवासियों के पक्ष में खड़े रहते थे. उन्हें जनता तथा गरीब लोगों के पक्षधर प्रशासक रूप में जाना जाता था. उन्होंने नार्थ-ईस्ट के वाइस चांसलर के रूप में लोकप्रियता हासिल की थी. शेड्यूल ट्राइब कमीशन के कमिश्नर के रूप में उनकी रिपोर्ट देश में आदिवासियों के भयावह स्थिति को बतलाती थी तथा उनकी अनुशंसायें आदिवासियों को न्याय दिलाने वाले दस्तावेज़ के रूप में जाने जाते हैं.
उन्होंने किसानों की लूट को गांव के गरीबी का कारण बताया था. भारत जन आंदोलन तथा किसान प्रतिष्ठा मंच का गठन कर उन्होंने किसानों तथा आदिवासियों के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर का बना दिया था. मुल्ताई पुलिस फायरिंग के बाद वे सरकार के नज़दीक होंने के बावजूद किसानों की ओर से लगातार लड़ते रहें. डॉ शर्मा ने किसानों की ओर से गवाही भी दी थी. देश के सभी दलों तथा सरकारों के लिये वे आजीवन सम्मानीय और आदरणीय बने रहे.