छत्तीसगढ़: कटोरे में धान कम होगा?
रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इस बार 30 फीसदी पैदावार कम होने की आशंका है. कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि यदि राज्य में अगले 15 दिनों में अच्छी बारिश नहीं हुई तो धान उत्पादन में 30 फीसदी से अधिक की गिरावट आ सकती है.
वहीं, विश्लेषकों का मानना है कि भले ही राज्य में एक पखवाड़े के अंदर अच्छी बारिश हो जाए, फिर भी नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी.
बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव केआर पिसदा ने कहा, “राज्य सरकार ने हालात से अवगत कराने के लिए शुरुआती रिपोर्ट केंद्र को भेज दी है. सभी जिलाधीशों को फसल आकलन रिपोर्ट तैयार करने और कम बारिश से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए कार्य योजना बनाने को कहा गया है.”
छत्तीसगढ़ के कृषि मामलों के जानकार नंद कश्यप ने सीजीखबर से कहा, “छत्तीसगढ़ में 69 तहसीलों में हालात खराब हैं और अनुमान के हिसाब से 18 सितंबर तक उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में ऐसा ही मौसम रहेगा.”
वहीं, मौसम विज्ञान केन्द्र रायपुर के अनुसार छत्तीसगढ़ के 11 जिलों में कम वर्षा हुई तथा 7 साल जिलों में सामान्य वर्षा दर्ज की गई है. मौसम विभाग ने यह आकड़ा 1 जून, 2015 से लेकर 10 सितंबर, 2015 तक हुई वर्षा के आधार पर दिया है.
मौसम विभाग के अनुसार सामान्य वर्षा से तात्पर्य सामानय से 19 फीसदी कम या ज्यादा वर्षा से है. ठीक उसी तरह से कम वर्षा का अर्थ सामान्य से 20 से 59 फीसदी कम वर्षा का होना है.
मौसम विभाग के अनुसार इस दौरान छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 1 फीसदी ज्यादा वर्षा हुई है. दंतेवाड़ा तथा बस्तर में 0.003 फीसदी ज्यादा वर्षा हुई है. इसी तरह से कम वर्षा नारायणपुर में 5 फीसदी, महासमुंद में 3 फीसदी, रायगढ़ में 2 फीसदी तथा कोरबा में 18 फीसदी हुई है. इन्हें सामान्य वर्षा की श्रेणी में रखा गया है.
जहां तक कम वर्षा वाले जिलों का सवाल है कांकेर में 31 फीसदी, धमतरी में 37 फीसदी, दुर्ग में 24 फीसदी, राजनांदगांव में 43 फीसदी, रायपुर में 32 फीसदी, बिलासपुर में 20 फीसदी, जांजगीर-चांपा में 23 फीसदी, जशपुर में 29 फीसदी, सरगुजा में 34 फीसदी तथा कोरिया जिलें में 40 फीसदी कम वर्षा हुई है.
छत्तीसगढ़ में एक भी जिला ऐसा नहीं है जहां मौसम विभाग के अनुसार अल्प वर्षा या अतिरिक्त वर्षा हुई है. अतिरिक्त वर्षा का अर्थ 20 फीसदी तथा उससे ज्यादा वर्षा का होना तथा अल्प वर्षा का तात्पर्य 60-99 फीसदी कम वर्षा होना है.
मौसम विभाग के द्वारा जारी किये गये आकड़ों को गहराई से देखने से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में केवल बीजापुर में 1 फीसदी तथा दंतेवाड़ा एवं बस्तर में 0.003 फीसदी वर्षा ज्यादा हुई है.
जाहिर है कि आकड़ों के इन खेल में छत्तीसगढ़ के वर्षा आधारित कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ने जा रहा है. एक तरफ आम इंसान प्याज तथा दाल की बढ़ी हुई कीमत को अदा करने में आधा हुआ जा रहा है ऐसे में यदि धान की पैदावार भी कम हो तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी जल्द सामने आने लगेगा.
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ दिनों से मानसून की कमजोर स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 19 अगस्त को ही कृषि और जल संसाधन विभाग को किसानों के व्यापक हित में अग्रिम तौर पर आपातकालीन कार्य योजना तैयार रखने के निर्देश दिये हैं. डॉ. सिंह ने कहा है कि अल्प वर्षा प्रभावित किसानों को सिंचाई की हर संभव सुविधा दी जाएगी.
उल्लेखनीय है कि देश में शीर्ष 10 चावल उत्पादक राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ में खरीफ सत्र 2015 में राज्य शासन कृषि विभाग द्वारा 36 लाख 45 हजार हेक्टेयर में धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है. इसकी जानकारी कृषि विभाग ने 4 अगस्त को विज्ञपत्ति के माध्यम से दी थी. जबकि जल संशाधन विभाग के 28 अगस्त की विज्ञप्ति के अनुसार, “प्रदेश के किसानों के हित में बड़े, मंझोले और छोटे जलाशयों से लगभग तीन लाख 64 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसलों की सिंचाई के लिए पानी दिया जा रहा है. ऐसे जलाशयों जहां-जहां पेयजल और निस्तारी की आवश्यकता से अधिक पानी भरा है, वहां सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जा रहा है.” इससे मोटे तौर पर माना जा सकता है कि महज 10 फीसदी इलाकों में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाई जा सकती है.
इसके बाद भी यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है कि यदि कम वर्षा के कारण बांधों में ही पानी कम हो तो क्या होगा? क्या धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इसकी पैदावार कम हो जायेगी. इसी से जुड़ा सवाल है कि धान की कम पैदावार का सीधा असर किसानों पर पड़ेगा तथा इससे ग्रामीण छत्तीसगढ़ की क्रय शक्ति कम हो जायेगी. जाहिर है कि कम वर्षा से छत्तीसगढ़ के अन्य उत्पादों को अपने लिये नया बाजार तलाशना होगा.