डायन बता पीट-पीटकर मार डाला
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के कोरिया में एक 60 वर्षीय महिला को डायन बता पीट-पीटकर मार डाला गया. कोरिया के सोनहट गांव के 29 वर्षीय प्रकाश पैकरा ने अपने चाची मनकी बाई को शुक्रवार को लाठी से पीटकर मार डाला. उसके बाद उसने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने आरोपी प्रकाश पैकरा पर हत्या का जुर्म दर्ज कर लिया है.
मिली जानकारी के अनुसार प्रकाश पैकरा की पत्नी को 17 अगस्त को लड़की हुई थी. जिसकी हालत खराब होने के कारण उसे अँबिकापुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 30 अगस्त तक नवजात बच्ची का अस्पताल में ईलाज चला. उसके बाद उसे घर ले आया गया परन्तु उसके अगले ही दिन बच्ची की मौत हो गई.
आरोपी का कहना है कि उसकी चाची काला जादू करती थी तथा उसी के कारण बच्ची की मौत हुई. उसके बाद से ही आरोपी अपने चाची से बदला लेने की फिराक में था. शुक्रवार को मौका देखकर उसने अपने चाती पर लाठी से हमला कर दिया. लाठी की मार खाकर मनकी बाई की मौत हो गई.
कैसी विडंबना है कि 21वीं सदी में जब लोगों को डिजीटल युग में ले जाने की बात हो रही है अभी भी गांव में लोग काले जादू से डरते हैं. डायन की धारणा हमारे देश में प्रमुख अन्धविश्वासो में से एक है. जिसमे किसी महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू टोना कर बीमारी फ़ैलाने, गाँव में विपात्तिया लाने का आरोप लगा कर उसे लांछित किया जाता है. डायन के रूप में आरोपित इन महिलाओ को न केवल सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किय जाता है बल्कि उन्हें शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है.
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 2005 में टोनही निरोधक कानून बनाया गया, इसके बाद निश्चित ही टोनही प्रताड़ना के मामले प्रत्यक्ष तौर पर सामने आए, लेकिन ऐसा नहीं है कि टोनही जैसा घिनौना शब्द खत्म हो गया है.
इस अधिनियम के तहत प्रदेश भर में सैकड़ों प्रकरण बने हैं और उनमें ऐसे कृत्य करने वालों को सजा भी हुई है. पर फिर भी सवाल जस का तस है कि क्या कारण है कि समाज से टोनही जैसे शब्द का कलंक नहीं मिट पा रहा है और महिलाओ को इसके कोपभाजन बनना पड़ रहा है.
दूरदराज के पिछड़े अंचलों में टोनही या डायन घोषित करके महिलाओं को सरेआम जलील करने और मास हिस्टीरिया की क्रूरतम परिणति के रूप में कथित टोनहियों को मौत के घाट उतार देने की अनेक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं के बाद सरकार ने इसे रोकने के लिए 19 जुलाई 2005 को छत्तीसगढ़ विधान सभा में टोनही प्रथा उन्मूलन विधेयक 2005 पारित करवाने में सफलता पाई.
इसी के साथ कई प्रश्न खडे हो जाते हैं. जिस औरत को ये बैगा आदि मिल कर टोनही करार देते हैं, वो हमेशा ही निर्धन, मजदूरी करने वाली, विधवा या परित्यक्ता, बेसहारा ही होती हैं, जिनका कोई नहीं होता, वो ही इसका शिकार बनती हैं. आज तक कभी देखा या सुना नही कि किसी पैसे वाले, रसूख वाले व्यक्ति के परिवार की किसी औरत तो टोनही करार देकर उसके साथ उपरोक्त व्यवहार करके गांव निकला दिया हो?
गरीब बेसहारा औरतें ही इसका शिकार क्यों होती हैं? यह एक सामाजिक विकृति है जिससे आज भी नारी जूझ रही है. यह एक ज्वलंत समस्या है जिसका निदान आवश्यक है.