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आरबीआई की वार्षिक मौद्रिक नीति में घटा रेपो रेट

देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2013-14 की वार्षिक मौद्रिक नीति जारी की जिसमें उसने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की घोषणा की है.रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बैंको को कर्ज देता है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के इस कदम के बाद माना जा रहा है कि अब वाणिज्यिक बैंक आवास, वाहन तथा अन्य ऋणों पर लगने वाली ब्याज दरें में कटौती करेंगे.

आरबीआई की इस कटौती के बाद रेपो रेट 7.25 फीसदी पर आ गया हैं जबकि बैंकों के द्वारा आरबीआई में जमा कराए जाने वाले नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) को इस नीति में अपरिवर्तित रखा गया है. रेपो दरों में सीमित कटौती को उचित ठहराते हुए आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है, ‘सिर्फ मौद्रिक नीति संबंधी पहल से वृद्धि तेज नहीं हो सकती. इसके लिए आपूर्ति संबंधी अड़चने दूर करने, राजकाज में सुधार और निवेश बढ़ाने की भी जरूरत है.’

चालू खाते के घाटे को अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए आरबीआई ने कहा है कि चालू खाते के घाटे के जोखिम और इसके वित्तपोषण को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति में सावधानी बरतनी होगी, इससे नीति के उपायों में भी बदलाव लाना पड़ सकता है. चालू घाते का घाटा (सीएडी) देश में आने वाले सकल विदेशी मुद्रा प्रवाह और देश से बाहर जाने वाले बाह्य प्रवाह का अंतर होता है. दिसंबर महीने में खत्म होने वाली तिमाही में ये 6.7 फीसदी हो गया था जो कि अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक स्तर था.

इस नीति में आरबीआई ने अनुमान भी लगाया है कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर 5.7 फीसदी तक रहेगी. आरबीआई का ये अनुमान केंद्र सरकार के 6.1 प्रतिशत से 6.7 प्रतिशत रहने के अनुमान से काफी भिन्न है. आरबीआई की अनुमान को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने निराशावादी बताते हुए कहा है कि मौजूदा स्थिति में सरकार का अनुमान ज्यादा व्यवहारिक है और चालू वित्त वर्ष में निश्चय ही हम 6 फीसदी से अधिक की आर्थिक दर प्राप्त करेंगे.

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