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ये सूट-सूट क्या है?

जेके कर
प्रधानमंत्री मोदी का पहना सूट 4.31 करोड़ रुपये में एक व्यापारी ने खरीद लिया है. यह वही सूट है, जिस पर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 10 लाख रुपयों का होने का ताना मारा था. रागा बड़े लोगों में से हैं, इसलिये उनकी बातें छोटी नहीं हो सकती. प्रधानमंत्री मोदी के सूट के 4.31 करोड़ रुपयों में बिकने पर मीडिया ने उसे जिस तरह से सुर्खियों में लाया और भाजपा के नेता जिस तरह इस कोट को लेकर गौरवान्वित होते रहे, उससे देश का वह मतदाता हतप्रभ है, जिसने एक चायवाले को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था.

याद करिये, मतदाताओँ से वादा किया गया था, “बहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार”. जाहिर है कि मोदी सरकार के बने नौ माह हो गये हैं परन्तु महंगाई है कि कम होने का नाम नहीं ले रही है. कांग्रेस या भाजपा की चिंता में यह महंगाई नहीं है. मोदी का सूट और उसका बखान देश के सभी मुद्दों पर भारी पड़ गया है.

जनता से तो वादा किया गया था कि विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन को देश में वापस लाकर विकास के कार्यों में लगाया जायेगा. पिछले नौ माह में न तो काला धन वापस आया है और न ही काला धन रखने वाले गिरफ्तार हुए हैं. बकौल वित्तमंत्री अरुण जेटली, काला धन के खिलाफ सबूतों की जरूरत है बिना सबूतों के कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती. यह सभी को मामूम है कि बिना सबूतों के कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है, सवाल यही है कि इस सबूत को जुटाने की जिम्मेवारी किसकी है ? क्या इसे भी किसी अनंतकालीन परियोजना की तरह सरकार बना देना चाहती है? फिर पिछली सरकार से फर्क क्या रह गया है? पिछले प्रधानमंत्री मनमोहक सिंह भी तो इसी बिना पर काले धनधारियों को गिरफ्तार नहीं कर सके थे और तब जेटली और नरेंद्र मोदी समेत तमाम तरह के बाबा काला धन पर 100 दिन में कार्रवाई का दावा करते फिरते थे. उन दावों का क्या हुआ ?

लेकिन इन सवालों का जवाब कोई नहीं देना चाहता. इसके उलट पिछली सरकार पर हमला बोल कर अपनी गरदन बचाने की कोशिश चलती रहती है.

इन सवालों के जवाबों में मोदी सरकार औऱ उनके समर्थक विदेशी निवेश की उपलब्धियों को गिनाते नहीं अघाते. यह सही है कि देश में, विदेशों से आने वाले सफेद धन को लिये अनुकूल माहौल मनाया गया है. देश के रक्षा उत्पादन, रेलवे से लेकर बीमा के क्षेत्र तक में विदेशी निवेश के लिये दरवाजा पूरी तरह से खोल दिया गया है. अब विदेशों से धन आयेगा तथा मुनाफा कमाकर लौट जायेगा. पहले के मनमोहक सिंह के सरकार के समान ‘पॉलिसी पैरालाइसिस’ का शिकार मोदी सरकार नहीं है. इसने तेजी से फैसले लिये हैं जिनसे बड़े व्यापारिक घरानों को फायदा होने जा रहा है. औद्योगिक घरानों के लिये कॉरिडोर बनाये जा रहे हैं.

इसी तरह मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश भी किसानों की जमीन पर उद्योग लगाने तथा गांवों को खाली करके वहां से खनिज निकालने का रास्ता ही सुगम बनायेगा. मोदी जी पिछले 10 महीनों में मुनाफा के अलावा कोई और बात नहीं कर रहे हैं. राज्यों में खाद्य सुरक्षा के बजट में कमी किया जा रहा है. रोजगार गारंटी योजना का मद कम किया जा रहा है. स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल ये है कि राज्यों में महीनों तक एड्स की दवाइयों की आपूर्ति नहीं हो रही है. सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी हो रही है.

सोमदत्त की कविता थी-किस्से अरबों हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार के भी किस्से अरबों हैं.जहां जनता के मुद्दे गायब हैं और किस्से चर्चा में हैं. फिलहाल तो कुछ दिन सूट-सूट का खेल चलेगा. हमने बेची, आप बेच कर दिखाओ और इसी तरह के सूट किस्से. जनता के मुद्दे सूट की चमक में गायब हैं और फिलहाल तो इन मुद्दों के हल होने की प्रतीक्षा ही की जानी चाहिये.

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