पत्रकार की याचिका पर सरकार को नोटिस
बिलासपुर | संवाददाता: तहलका के छत्तीसगढ़ ब्यूरो प्रमुख राजकुमार सोनी की याचिका पर राज्य शासन और पत्रकार प्रफुल्ल पारे को हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है. अपने ब्लाग पर सरकार और एक पत्रकार की आलोचना करने वाले राजकुमार सोनी के खिलाफ दो साल पहले आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस मामले को रद्द करने के लिये राजकुमार सोनी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी.
गौरतलब है कि राजकुमार सोनी ने अपने ब्लॉग बिगुल में 15 जनवरी 2011 को ‘छत्तीसगढ़ चैनल पुराण’ और 21 मार्च को ‘प्रियंका का शहर छोड़कर जाना’ शीर्षक से दो लेख लिखे थे. इन्हीं लेखों को आधार बना कर राजकुमार सोनी के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत साइबर सेल में मामला दर्ज कराया गया था.
इस रिपोर्ट और आरोप पत्र को रद्द करने की मांग के साथ राजकुमार सोनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता का कहना था कि यह पूरा मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मामला है और इस तरह से मामला दर्ज करके संविधान के तहत मिले अधिकार का हनन किया जा रहा है. मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस आरएस शर्मा की एकल पीठ ने राज्य शासन और प्रफुल्ल पारे को नोटिस जारी करते हुये जवाब तलब किया है.
विवादों में 66ए
आईटी ऐक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक बताने वाली एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही सुनवाई चल रही है. फेसबुक पर कमेंट करने या कार्टून बनाने पर की गई गिरफ्तारियों से दुखी एक छात्रा श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुये कहा था कि आईटी कानून की धारा 66 ए की शब्द रचना बहुत व्यापक और अस्पष्ट है. यह उद्देश्य का मानक निर्धारित करने में अक्षम है. चूंकि इस वजह से इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है.
सिंघल की याचिका में कहा गया है कि अगर अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में आपराधिक कानून पर अमल से पहले न्यायिक मंजूरी को जरूरी नहीं बनाया गया तो अंकुश लगाने के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है.
प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने नवंबर में इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि हाल की घटनाओं के संदर्भ में वह स्वत: ही इस मामले का संज्ञान लेने पर विचार कर रही थी. न्यायाधीशों ने इस बात पर अचरज व्यक्त किया था कि अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी कानून के इस प्रावधान को किसी ने चुनौती क्यों नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल मामले की सुनवाई जारी है.