छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में देश-विदेश के शिल्पकारों के महाकुंभ के रूप में सूरजकुंड का पन्द्रह दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला रविवार को शुरू होने जा रहा है. अब की बार इस मेले में छत्तीसगढ़ थीम स्टेट के रूप में शामिल होगा. इसके अलावा लेबनान सहभागी राष्ट्र के रूप में इस आयोजन में भागीदार बनेगा.

भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा दुनिया के लगभग 18 देशों के शिल्पकारों के इसमें शामिल होने की संभावना है. थीम स्टेट के रूप में छत्तीसगढ़ की तैयारी पूरी हो चुकी है.

मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह एक फरवरी को सूरजकुंड में पूर्वान्ह ग्यारह बजे आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले के शुभारंभ समारोह में विशेष अतिथि के रूप में शामिल होंगे. मेले का शुभारंभ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करेंगे. केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा और छत्तीसगढ़ के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री अजय चन्द्राकर भी मेले में विशेष रूप से शामिल होंगे.

मेले में छत्तीसगढ़ के परम्परागत हस्तशिल्प पर आधारित 100 से अधिक स्टाल बनाए गए हैं, जो देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनेंगे. थीम स्टेट के रूप में छत्तीसगढ़ की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. इस वर्ष सूरजकुंड शिल्प मेले में लेबनान सहभागी राष्ट्र है. मेले में 18 देशों के भाग लेने की संभावना है. लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में फैले मैदान में शुरू हो रहे इस मेले में लगभग 766 स्टाल ग्रामीण परिवेश में बनाए गए हैं. इनमें छत्तीसगढ़ के 50 स्टाल हाथकरघा कपड़ों के, 36 स्टाल कोसा वस्त्रों के तथा 17 स्टाल छत्तीसगढ़ माटीकला बोर्ड के हैं. इन सभी 103 स्टालों में छत्तीसगढ़ के हस्तशिल्पियों और हाथकरघा बुनकरों की कारीगरी का अनोखा स्वरूप लोगों को देखने को मिलेगा.

थीम स्टेट के रूप में मेले के सम्पूर्ण परिसर को छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक संस्कृति , रहन-सहन, हस्तशिल्प कला की नायाब कलाकृतियों से सजाया गया है. वहां दंतेवाड़ा जिले के बारसूर स्थित भगवान श्री गणेश की ऐतिहासिक मूर्ति और बिलासपुर जिले के ग्राम ताला स्थित रूद्र शिव की विशाल प्रतिमा का मॉडल भी स्थापित किया गया है. मेले में दो प्रवेश द्वार बनाये गये है. इनमें से एक का नामकरण बस्तर , दंतेवाड़ा की प्रसिद्ध माता दंतेश्वरी के नाम पर और दूसरे प्रवेश द्वार का नामकरण छत्तीसगढ़ गेट किया गया है.

इस प्रवेश द्वार की मुख्य विशेषता यह है कि, इसमें बायसन हार्न माड़िया व दो द्वारपाल भगवान शिव के अंगरक्षक के रूप में खडे़ हुए दिखाई दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के परिसर को राज्य के परम्परागत गेड़ी नृत्य और गोदना चित्रकला के दृश्यों से भी सवारा गया है.

इतिहास के जानकारों के अनुसार सूरजकुंड को अपना नाम एक तोमर नेता, राजा सूरज मल द्वारा 10वीं सदी में यहां निर्मित एक प्राचीन रंगभूमि सूर्यकुंड से मिला है. यह एक अनूठा स्मारक है. इसका निर्माण सूर्य देवता की आराधना करने के लिए किया गया था और यह यूनानी रंग भूमि से मिलता-जुलता है.

प्राचीन सूर्यकुंड की भव्य ऐतिहासिक विरासत को उजागर करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा शिल्प मेले के दौरान प्रातः 10 बजे से सांय 5.30 बजे तक इस स्मारक को आगंतुकों के लिए खुला रखा जायेगा.

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