pk का विरोध या आमिर खान का?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: फिल्म ‘पीके’ के रिलीज होने के 10 दिन बाद देशभर में उसका विरोध हो रहा है तथा अभिनेता आमिर खान का पुतला जलाया जा रहा है. इसलिये पूछा जाना चाहिये कि विरोध वास्तव में किसका हो रहा है? आमिर खान का या फिल्म का. फेसबुक में आमिर के कुछ समर्थकों ने टिप्पणी की है कि विरोध कहीं आमिर के उपनाम खान के कारण तो नहीं हो रहा है. यह टिप्पणी किसी की व्यक्तिगत सोच हो सकती है परन्तु इससे सवाल खड़ा होता है कि क्या वास्तव में ‘पीके’ का विरोध किया जा रहा है? यदि फिल्म ‘पीके’ में वास्तव में कुछ आपत्तिजनक है तो अदालत की शरण में न्याय पाने के लिये जाने से किसने रोका है. कानून को अपने हाथ में लेकर विरोध स्वरूप ‘पीके’ के पोस्टर फाड़े जाने तथा फिल्म को बंद किया जाने की धमकी देने से क्या इस फिल्म का प्रदर्शन रुक जायेगा. उलट ‘जो बदनाम होता है क्या उसका नाम नहीं होता’ के तर्ज पर दर्शक फिल्म ‘पीके’ को और ज्यादा देखने जायेंगे क्योंकि उनके मन में अब ‘पीके’ के कहानी को लेकर कौतुहल पैदा हो गया है जो फिल्मकार चाहते हैं.
यदि ‘पीके’ का ही विरोध किया जा रहा है तो मध्य प्रदेश के न्यायधानी जबलपुर में आमिर खान का पुतला काहे के लिये जलाया गया. एजेंसी की खबरों के मुताबिक ” मध्य प्रदेश में भी ‘पीके’ फिल्म के विरोध का दौर शुरू हो गया है. जबलपुर में हिंदूवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने रविवार को प्रदर्शन कर आमिर खान के पुतले का दहन किया. कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘पीके’ फिल्म में हिंदू भावनाओं के ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया है, हिंदू देवी-देवों का अपमान किया गया है. लिहाजा इस फिल्म का प्रदर्शन बंद होना चाहिए. कार्यकर्ताओं ने स्थानीय सिनेमाघर संचालकों को चेतवानी दी है कि अगर आगामी तीन दिन में फिल्म को दिखाना बंद नहीं किया तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे. ” खबरों के अनुसार छत्तीसगढ़ के रायपुर तथा भिलाई में भी इस फिल्म ‘पीके’ का विरोध शुरु हो गया है.
उधर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन ने एनडीटीवी के हवाले से रविवार को कहा है, “हर फिल्म किसी न किसी की धार्मिक भावनाएं आहत कर देती है. हम गैर-जरूरी तरीके से दृश्य नहीं हटा सकते. रचनात्मक प्रयास नाम की एक चीज होती है, जिससे लोग अपने अंदाज में चीजों को पेश करते हैं. हम पहले ही ‘पीके’ को प्रमाण-पत्र दे चुके हैं. अब हम कुछ भी नहीं हटा सकते, क्योंकि यह पहले ही सार्वजनिक हो चुकी है.”
दूसरी तरफ फिल्म ‘पीके’ के समर्थन में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, “राजकुमार हिरानी और विधु विनोद चोपड़ा को एक शानदार और साहसपूर्ण फिल्म के लिए हार्दिक बधाई.” आडवाणी ने भारत की विविधता का समर्थन करते हुए कहा, “हम सौभाग्यशाली हैं कि भारत जैसे एक विशाल और विविधताभरे देश में पैदा हुए हैं. यह हर किसी देशभक्त की यह सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी भी बनती है कि जाति, समुदाय, भाषा, क्षेत्र, और धर्म के कारण देश की एकता कमजोर न होने पाए.” जाहिर है कि धर्म पर इन विरोध करने वालों से ज्यादा समझ रखने वाले लालकृष्ण आडवाणी की बात आज के नवयुवकों के गले नहीं उतर रही है.
‘पीके’ का विरोध करने वालों से पूछने का मन करता है कि उनका गुस्सा तब कहा था जब आसाराम बापू जैसे गुरु धर्म के नाम पर अधर्म कर रहें थे. आज भी आसाराम बापू सलाखों के पीछे बंद है, क्या इससे बाबाओं का मान बढ़ता है? जाहिर है कि इस देश में तथाकथित बाबाओं ने संपत्ति का ढ़ेर लगा लिया है. उनके पीछे उनके अंध भक्तों की भीड़ चलती है. इससे वास्तव में धर्म की राह दिखाने वाले गुरुओं की गरिमा का हास हुआ है जिसका विरोध किया जाना चाहिये न कि आमिर खान का.