छत्तीसगढ़ को सामाजिक न्याय 55फीसदी!
नई दिल्ली | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार के मामले औसतन आधे ही निपटाये जाते हैं. सरकारी आकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास की गई शिकायतों को निपटाने का आकड़ा पिछले तीन वर्षो से 55 फीसदी ही है.
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2012 अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के 88 मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास दर्ज करवाये गये थे जिनमें से खुद सरकारी आकड़ों के अनुसार 44 का निपटारा किया जा सका है. उसी तरह से वर्ष 2013 में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के 83 मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास दर्ज करवाये गये जिनमें से 60 का निपटारा किया गया. वहीं, इस वर्ष याने 2014 में 31 अक्टूबर तक 75 मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास दर्ज करवाये गये जिनमें से 32 का निपटारा किया गया है.
इस प्रकार से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के मामलों के 2012 में 50 फीसदी, 2013 में 72 फीसदी तथा 2014 में 42 फीसदी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा निपटाये गये हैं. यदि इन तीनों वर्षो की संयुक्त रूप से विवेचना की जाये तो छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के मामलों में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा तीन वर्षो में केवल 55 फीसदी का निपटारा किया जा सका है.
इन लोकसभा में पेश किये आकड़ों से जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2012 से अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार जिनकी शिकायत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास की गई क्रमशः 88, 83 तथा 75 रहें हैं.
इस प्रकार से छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास जो शिकायते दर्ज करवाई गई उनका औसत प्रति माह वर्ष 2012 में 7.3, वर्ष 2013 में 6.9 तथा 2014 में 7.5 रहा है. इससे जाहिर है कि 2012 की तुलना में 2013 में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार के मामले राष्ट्रीय आयोग के पास 0.4 मामले प्रति माह कम हुए थे जो फिर से चालू 2014 में 0.6 मामले प्रति माह बढ़ गयें हैं.
क्या इससे यह नतीजा निकाले कि छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अत्याचार बढ़ रहें हैं?