योजना आयोग को नया रूप क्यों?
नई दिल्ली | एजेंसी: योजना आयोग के स्थान पर नये आयोग के गठन की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है. इसके लिये रविवार को नई दिल्ली में मुख्यमंत्रियों की बैठक आयोजित कर इस शुभकार्य का शुभारंभ किया गया. इसके बाद भी सवाल अपनी जगह पर है कि क्यों योजनाबद्ध तरीके से देश के विकास के लिये बनाये गयें योजना आयोग के स्थान पर एक नये संगठन की आवश्यकता महसूस की जा रही है. जाहिर है इसके जवाब देश की अर्थव्यवस्था के पास है जिसकी जरूरत है कि नये समय में नये तरह से योजनाएं बनाई जायें. इसके बावजूद यह इतना सरल नहीं है.
वास्तव में देश में 1991 से नये आर्थिक नीतियों को लागू किये जाने के बाद से ही बाजारवादी अर्थव्यवस्था में योजनाओं के लिये कोई जगह नहीं रह गई थी. बाजारवादी अर्थव्यवस्था में मुनाफा ही सब कुछ होता है जो अपने क्रियाकलापों पर से सरकारी नियंत्रण पसंद नहीं करता है.
इसी कारण से योजना आयोग पर 1992 में पहली बार पुनरावलोकन किया गया तथा मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते 2012 में एक संसदीय समिति ने इसके स्थान पर नये संस्था बनानेकी आवश्यकता पर बल दिया. वैसे पूर्व मनमोहन सिंह के चहेते तथा योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह ने योजना आयोग के पुराने तोप से नये आर्थिक नीतियों के पक्ष में खूब गोले दागे थे.
देश के लोकतंत्र ने पूर्व प्रधामंत्री मनमोहन सिंह को इस बात की इजाजात नहीं दी थी कि वे योजना आयोग में कोई परिवर्तन कर सकें. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत तथा नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था बनाने की बात ने फिर से जोर पकड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग के स्थान पर प्रभावशाली संस्था बनाने पर नए सिरे से जोर दिया है. रविवार के मुख्यमंत्रियों के बैठक में उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में अधिक प्रभावी तथा प्रासंगिक रहने के लिए योजना आयोग को नया रूप देना होगा.
योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था लाने के बारे में मुख्यमंत्रियों के साथ परामर्श बैठक में उन्होंने योजना आयोग की जगह नई संस्था बनाने को लेकर राज्यों द्वारा लिये महत्वपूर्ण सुझावों पर संतुष्टि जताई.
प्रधानमंत्री ने कहा, “योजना आयोग की भूमिकाएं, प्रासंगिकता और पुर्नसरचना पर दो दशकों से बार-बार सवाल उठाए जाते रहे हैं. पहली बार पुनरावलोकन 1992 में आर्थिक सुधारों के आरंभ पर किया गया था, जब यह महसूस किया गया कि सरकार की बदलती नीति के मद्देनजर अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है.”
उन्होंने कहा कि 2012 में संसदीय सलाहकार समिति ने कहा था कि योजना आयोग पर गंभीर रूप से पुनर्विचार करने और इसके स्थान पर नई संस्था बनाने की आवश्यकता है. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के आखिर में योजना आयोग पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया था.
मोदी ने कहा, “गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने योजना आयोग की बैठक में भाग लेते हुए महसूस किया था कि राज्यों के विचारों को समाहित करने के लिए बेहतर मंच की जरूरत है. उन्होंने कहा कि विकास अब हर किसी की प्राथमिकता है तथा आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए नई व्यवस्था विकसित करने का समय आ गया है.”
प्रधानमंत्री ने कहा, “जब तक राज्यों को विकसित नहीं किया जाता, राष्ट्र को विकसित करना असंभव है. ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक बदलाव के लिए भी नीतिगत प्रक्रिया की योजना बनाने की जरूरत है.”
मोदी ने कहा कि भारत को ताकतवर बनाने, राज्यों को सशक्त बनाने और सरकार के बाहर होने वाली गतिविधियों सहित सभी आर्थिक गतिविधियों को मुख्यधारा में लाने के लिए नई व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि आज की बैठक में राज्य जो विचार प्रकट करेंगे, वे योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था बनाने में बहुमूल्य सिद्ध होंगे.
बैठक में भाग लेने के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, “एक केंद्रीय संरचना के बदले अधिकांश राज्य एक वैकल्पिक संरचना की जरूरत महसूस करते हैं, जिसमें केंद्र, राज्य तथा विशेषज्ञों की भागीदारी हो.”
उन्होंने कहा, “कुछ देशों जैसे अमरीका में सरकार से स्वतंत्र रूप में काम करने वाले थिंक टैंकों का नीति-निर्माण में बेहद महत्वपूर्ण योगदान होता है. कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि आने वाले समय में हमारे देश में भी अमरीकी मॉडल का अनुसरण करते हुए कोई सलाहकार समिति का गठन, योजना आयोग के स्थान पर न कर दिया जाये.