कोरबा: जानवर, बंदूके और लाचार वनकर्मी
कोरबा | अब्दुल असलम: छत्तीसगढ़ के कोरबा वन मंडल क्षेत्र में जंगली जानवरों के आंतक से ग्रामीण बेहद परेशान हैं. इसके बावजूद इसके वन विभाग की लाचारी ही कहे कि विभाग को अविभाजित मध्यप्रदेश के समय मिले 5 रायफल और कारतूसो को न तो उपयोग की अनुमति नहीं है.
बंदुकों को देखकर आपको इस बात का भ्रम हो गया होगा कि वन विभाग के कर्मचारी जरुर ही जरुरत पडने पर इन बंदुकों का उपयोग करते होगें लेकिन यह दिखावा महज एक धोखा हैं. जी हां, ऐसा इसलिये क्योंकि इन कर्मियों को विभाग ने सुरक्षा के लिहाज से बंदुक तो जरुर थमा दी हैं लेकिन उसको चलाने की अनुमति के लिये इनको मुख्यालय का इंतजार करना होगा.
मध्यप्रदेश शासन काल में कोरबा वनमंडल को मिली 5 राइफल आज तक विभाग के बंद बक्से में धूल ही खा रही हैं. मध्यप्रदेश शासन काल मे मिले इन बंदुकों का विभागीय अमले ने आज तक उपयोग नहीं किया हैं. इसका सबूत इनको मिले 125 नग कारतूसो का आज भी इनके पास होना बताया जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के कोरबा वन मंडल मे लकड़ी तस्करो से ज्यादा हाथी और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता हैं. विभागीय अमला वैसे तो जानवरों-इंसानी संघर्ष की दूरी तय करने कई जतन करता हैं. इसके बाद भी अगर इन दोनो का कहीं सामना हो जाये तो लोगों की जिंदगी बचाने विभागीय अमले को बंदूको के जरिये हवाई फायर का भी अधिकार नहीं हैं.
छत्तीसगढ़ के कोरबा वन मंडल की वर्षिक रिपोर्ट पर अगर भरोसा करें केवल जंगली हाथियों ने 14 सालों मे 28 ग्रामीणों को मौत की नीद सुला दिया हैं. वहीं, 250 ग्रामीणों के आशियाने को जमीदोंज करने का काम इन्ही हाथियों ने किया हैं. कुछ ऐसे ही आकड़ें वनांचल क्षेत्रों में भालूओं के आतंक की कहानी भी बयां कर रहे हैं. जंगली भालू के हमले से 40 ग्रामीणों की मौत हो चुकी हैं तथा कई घायल हो चुके हैं.
वन विभाग जंगली जानवरों के आतंक पर नकेल कसने उनको मिले इन हथियारो का उपयोग नहीं कर सकता हैं जबकि कई खुद विभाग के अफसरों का ही सामना सर्चिग के दौरान जानवरों से हो जाता हैं और हथियार होने के बाद भी वे महज अपनी बेबसी दिखा और कुछ नहीं कर सकते.