सदाशिव अमरापुरकर: नरम दिल थे पर्दे के खलनायक
नई दिल्ली | एजेंसी: सदाशिव अमरापुरकर ने सिल्वर स्क्रीन पर खलनायक के किरदार को जीवंत कर दिया था. 80 के दशक की फिल्म ‘अर्ध सत्य’ में खलनायक ‘रमा शेट्टी’ का किरदार हो, या नब्बे के दशक की फिल्म ‘सड़क’ का निर्दयी किन्नर किरदार ‘महारानी’ या ‘इश्क’ में एक स्वार्थी पिता की भूमिका हो, दिवंगत अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर अपने हर किरदार में पूरी तरह ढले नजर आए.
अमरापुरकर की हिंदी सिनेमा जगत में सक्रियता हालांकि पिछले 10 सालों के दौरान बेहद कम हो गई थी और वह यदा-कदा चुनिंदा फिल्मों में ही नजर आए, लेकिन उन्हें भूला नहीं जा सकता.
बॉलीवुड फिल्मों में खलनायक की भूमिका को अपनी खास शैली और संवाद अदायगी के साथ पेश करने के लिए पहचाने जाने वाले बहुरंगी अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर का सोमवार तड़के मुंबई के धीरूभाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया. वह 64 साल के थे. फेफड़े में संक्रमण के कारण कुछ दिनों पहले ही उन्हें यहां भर्ती कराया गया था. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को उनके गृहनगर अहमद नगर में किया जाएगा.
अमरापुरकर ने अपने फिल्मी करियर में नकारात्मक और हास्य दोनों भूमिकाएं कीं, लेकिन खलनायक की भूमिकाओं को उन्होंने पर्दे पर अनोखे अंदाज में इतनी सहजता से निभाया कि एक समय में उनका नाम और चेहरा हिंदी फिल्मों में खलनायक का पर्याय बन गया था.
अमरापुरकर के बारे में दिलचस्प बात यह है कि पर्दे पर खलनायकी का खौफ पैदा करने वाला यह शख्स असल जिंदगी में बेहद विनम्र व सज्जन था. वह फिल्मों और अभिनय से इतर विभिन्न सामाजिक कार्यो व गतिविधियों में सक्रिय रहते थे.
नासिक में जन्मे अमरापुरकर का असल नाम गणेश कुमार नारवोडे था, वहीं परिवार और दोस्तों के लिए वह तात्या थे. लेकिन उन्होंने 1974 में नाम बदल लिया. उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था और अहमद नगर में रहने के दौरान स्कूल और कॉलेज में वह नाटकों में भाग लेते रहते थे.
निर्देशक गोविंद निहलानी ने सबसे पहले अपनी फिल्म ‘अर्धसत्य’ में मुख्य खलनायक की भूमिका करने का मौका अमरापुरकर को दिया था. साल 1983 में आई यह फिल्म सफल रही और अमरापुरकर के अभिनय को काफी सराहा गया.
उनकी संवाद अदायगी का अंदाज उस दौर के खलनायकों से काफी जुदा था और उनमें नयापन था. ‘अर्धसत्य’ के बाद अमरापुरकर ने ‘जवानी’, ‘पुराना मंदिर’, ‘आघात’, ‘मुद्दत’, ‘खामोश’, ‘फरिश्ते’ सहित कई फिल्मों में छोटी भूमिकाएं कीं.
साल 1987 में अमरापुरकर अभिनेता धर्मेद अभिनीत ‘हुकूमत’ में मुख्य खलनायक की भूमिका में आए, जो ब्लॉकबस्टर रही. उसके बाद उन्होंने ‘मोहरा’, ‘इश्क’, ‘हम साथ साथ हैं’, ‘आंखें’, ‘कुली नंबर 1’ सहित कई फिल्मों में नकारात्मक और हास्य भूमिकाएं निभाईं.
साल 1991 में आई फिल्म ‘सड़क’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ खलनायक और 1983 में आई फिल्म ‘अर्धसत्य’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा गया था.
अमरापुरकर आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब भी फिल्मों में खलनायकों के योगदान की बात चलेगी, सदाशिव अमरापुरकर का नाम प्रथम पंक्ति के खलनायकों में लिया जाएगा. भारतीय सिनेमा और मनोरंजन के क्षेत्र में उन्हें और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.