make in india किसके हित में?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देश में मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिये ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत गुरुवार से हुई. दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय मंत्री परिषद के सहयोगी एवं देशी तथा विदेशी उद्योगपतियों के समक्ष इस ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के आगाज़ की घोषणा की. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिये ‘मेक इन इंडिया’ वेबसाइट के लांच की भी घोषणा की. गौरतलब है कि आज के उद्योग आधारित अर्थ तथा समाज व्यवस्था के बीच प्रधानमंत्री मोदी, भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनते देखना चाहते हैं. इसके लिये दुनिया के अन्य देशों से पिछड़े भारत के मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिये ही इस ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को शुरु किया गया है. इसे प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कहें तो गलत न होगा.
उल्लेखनीय है कि इस अभियान के तहत देश में आटोमोबाईल, एविएशन, बायो टेक्नोलॉजी, केमिकल्स, कन्शट्रक्शन, रक्षा उत्पादन, इलेक्ट्रिक तथा इलेक्ट्रानिक के सामान, खाद्य संस्करण, सूचना संचार के क्षेत्र, दवा उद्योग, बंदरगाह, रेलवे, कपड़ा, स्वास्थ्य, चमड़ा उद्योग, ताप विद्युत के क्षेत्र में तथा टूरिजम को बढ़ावा देने के लिये उद्योगपतियों को सुविधाएं तथा अवसर मुहैया करवाये जायेंगे. जाहिर है कि देश में मैनुफैक्चरिंग बढ़ने से लोगों को रोजगार मिलेगा जिससे नागरिकों के क्रय शक्ति में इजाफ़ा होगा.
दुनिया की अर्थव्यवस्था को यदि राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिये से देखें तो स्पष्ट होता है कि व्यापार तथा बाजार के लिये पूरी दुनिया में हलचल मची है. उदाहरण के तौर पर जिस जमीन के नीचे तेल है वहां के राजनीतिक हालात को शांत बनाये रखने के लिये अमरीकी फौजे वहां पर तैनात हैं. कहने का तात्पर्य है कि प्राकृतिक संपदा का दोहन तथा उस पर अपना आधिपत्य बनाये रखने के दौर में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने देश में मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने का मार्ग चुना है. निश्चित तौर पर इसके लिये वह बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने प्रथम पंक्ति को छोड़कर दूसरे पंक्ति के गतिविधी पर अपना जोर लगाया है. जिसे मैनुफैक्चरिंग सेक्टर कहा जाता है. आखिरकार माल को बाजार में बेचने के पहले उसे बनाना जरूरी है तथा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के माध्यम से दुनिया के इसी मैनुफैक्चरिंग को भारत में केन्द्रित करने का यह सरकारी प्रयास है.
प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से देश में देशी तथा विदेशी कंपनियां अपने उत्पादन की इकाई खोलेगी जिसमें भारतीय कामगारों, प्रबंधकों, वित्त-प्रबंधकों और वैज्ञानिकों को अपना जौहर दिखाने का मौका मिलेगा. गौर करने वाली बात यह है कि इससे हमारे देश में विदेशी धन आयेगा या कहा जा सकता है कि इससे निवेश अवश्यंभावी है. इसके लिये मोदी सरकार ने पहले से ही रक्षा तथा रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया है.
आज की तारीख में चीन को दुनिया का एक मैनुफैक्चरिंग हब कहा जा सकता है. दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी वालमार्ट तक अपने उत्पादन के लिये चीन जैसे देश पर बहुत हद तक निर्भर है. उल्लेखनीय है कि चीन में समाजवादी सरकार होने के कारण वहां के श्रम कानून कठोर हैं जिससे विदेशी कंपनिया बिदकती हैं. जाहिर है कि हमारे देश में कई कानून हैं परन्तु उनका पालन नहीं किया जाता है. सबसे गौर करने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश तथा राजस्थान की भाजपा शासित राज्य सरकारों ने अपने श्रम कानूनों में बदलाव के लिये कदम उठाया है. इससे इस बात का संकेत मिलता है कि श्रम कानूनों के संबंध में मोदी सरकार पुराने ढर्रे पर नहीं चलने वाली है तथा भविष्य के कानून उद्योग मित्र की भूमिका में होंगे. जाहिर सी बात है कि अपने लिये अनुकूल माहौल पाते ही दुनिया का मैनुफैक्चरिंग सेक्टर भारत की ओर पलायन करने लगेगा.
तमाम तरह के अंदेशे के बावजूद यह सच है कि भारत को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने से देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक सुधार होगा. हां, इस सुधरी हुई अर्थव्यवस्था का लाभ देश के कितने फीसदी बाशिंदों को होगा यह अलग बात है.