प्रसंगवश

छत्तीसगढ़िया छाती पर बाहरी मूंग

कनक तिवारी
संविधान के तहत नागरिक देश में कहीं भी शिक्षा, व्यापार या नौकरी आदि के सिलसिले में जा या बस सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अन्य प्रदेशों में बसने वालों को स्थानीय रहवासी का प्रमाणपत्र नहीं दिए जाने पर कड़ी आपत्ति की. अधिवास का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक का अधिवास भारत में है. नियोजन, शैक्षिक, आर्थिक तथा व्यावसायिक कारणों से लोग यहां वहां आव्रजित होते हैं.

मसलन छत्तीसगढ़ जैसा प्राकृतिक संपदायुक्त लेकिन पिछड़ा इलाका अन्य प्रदेशों को मानो बसने का निमंत्रण देता रहा. कई प्रदेशों के लोग पीढ़ियों पहले आकर यहां बसते गए. उत्तरप्रदेशीय लोगों ने राजनीति, शिक्षा, संस्कृति और ग्रामीण जनता से जुड़े छोटे मोटे कारोबारों के जरिए ऊंचाइयां छुईं. पंजाब और हरियाणा के लोग यातायात, होटल, खेती और शराब आदि के ठेकों में कमाते गए. दक्षिण से आए अधिकांश लोग शासकीय उपक्रमों की नौकरियों, स्टेनोग्राफी, शिक्षा, नर्सिंग और अन्य तकनीकी कामों में दक्ष हुए.

गुजराती व्यापारियों ने लकड़ी, तेंदूपत्ता तथा वनोत्पाद में खूब दौलत बटोरी. बंगालियों ने विधि, शिक्षा और डॉक्टरी में ज्ञान तथा ख्याति अर्जित की. राजस्थानी आप्रवासियों ने सोना, चांदी, किराना, ठेकेदारी, उद्योग और मीडिया-उद्योग के कामों में महारत हासिल की. आव्रजित लोग छत्तीसगढ़ में आत्मसात हो गए मूल निवासी आदिवासी. शहरों से बेदखल होते गांवों और जंगलों की ओर खिसकते रहे. उन्हें आंध्रप्रदेश, ओडिसा, बंगाल और बिहार आदि के नक्सली नेतृत्व ने अपना गुलाम ही बना लिया.

सरकारी कर्मचारी आदिवासियों और अन्य दलितों का दैहिक, आर्थिक और मानसिक शोषण करते रहे. घटनाएं इतनी अधिक और संलिष्ट हैं कि जांचना आवश्यक है कि बाहरी हस्तक्षेप और अतिक्रमण की दखलंदाजी का आसमान कितना बड़ा हो सकता है.

कांग्रेस में अजीत जोगी के अपवाद को छोड़कर कोई नेता नहीं है जिसके राजनीतिक आका मध्यप्रदेश में नहीं हैं. दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया छत्तीसगढ़ी अनुयायियों के लिए पार्टी हाईकमान के सामने लामबंद होते रहते हैं. मध्यप्रदेश को तो संभाल नहीं पा रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में उनकी टांग अंगद का पांव बनने आतुर है. जोगी सोनिया और राहुल गांधी के अतिरिक्त किसी को घास नहीं डालते. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने रायपुर में जोगी समर्थकों ने कारगर हुल्लड़ की.

पार्टी प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद को कई बार जोगी ने भरी सभा में औकात बताई. जोगी सिद्ध करने में सफल होते हैं कि उनके परिवार के बिना कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अधूरी है. जोगी से विपरीत स्वभाव के डॉ.रमनसिंह को भी अड़ोस पड़ोस में कोई खैरख्वाह नहीं ढूंढ़ना पड़ता. आर0एस0एस0 की अनिवार्य उपस्थिति के अतिरिक्त रमनसिंह को केवल पार्टी मुख्यालय से समायोजन बिठाना पड़ता है. जनाधार खोती बहुजन समाज पार्टी में मायावती ‘एकमेवो द्वितीयो नास्ति‘ अर्थात् सर्वेसर्वा हैं. छोटी मोटी पार्टियों के भी प्रतिनिधि और पदाधिकारी छत्तीसगढ़ में घूमते दिखाई देते हैं. नई बनी आम आदमी पार्टी केजरीवाल की जेब में पड़ी है.

छत्तीसगढ़ के योग्य दावेदारों के रहते तिकड़म के आधार पर दो बार डॉ. लक्ष्मण चतुर्वेदी को कुलपति बनाया गया. इस कुलपति ने अध्यापकों, छात्रों और शिक्षा के संस्कारों को तहसनहस करने में अपनी सक्रियता दिखाई. तत्कालीन मुख्य सचिवों और अन्य अधिकारियों से संपर्क का लाभ होने से उन्हें लोकायुक्त की टिप्पणियों के बावजूद सरकार द्वारा बचाया गया. लोकायुक्त विधि तथा मानव अधिकार आयोग के लिए भी छत्तीसगढ़िया नहीं मिले.

बाहरी आई.ए.एस. अधिकारियों की मनमर्जी के चलते स्थानीय उम्मीदवारों के साथ छल करते हुए बाहरी उम्मीदवारों को महाविद्यालयों में नौकरी देने के षड़यंत्र लगातार रचे गए. निजी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का मालिकी हक किसका है? बड़े बड़े अस्पताल कौन चला रहा है? एडवोकेट जनरल भी आयातित हैं.

बस्तर में टाटा और एस्सार के बड़े इस्पात कारखाने लगाने का औद्योगिक शोशा छोड़ा गया. दोनों को सस्ती दरों पर सैकड़ों एकड़ जमीन और लौह अयस्क कबाड़कर उसका दुरुपयोग करने का अवसर खोने की इच्छा नहीं थी. पर्यावरण और आदिवासी भले बरबाद हो जाएं. राजनेता आगंतुक अतिथियों का इस्तकबाल करने का मौका खोना नहीं चाहते.

वेदांता (स्टरलाइट) के विश्वचर्चित उद्योगपति अनिल अग्रवाल एन.डी.ए. शासनकाल में कोरबा स्थित सार्वजनिक उपक्रम भारत अल्यूमिनियम कंपनी का कारखाना औने पौने में खरीदने में सफल हुए. सौदे पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई. स्टरलाइट ने हजारों पेड़ कटवाए. सैकड़ों एकड़ जमीन हथियाई. अदालतें उनका कुछ नहीं बिगाड़तीं. सरकारें कारगर कदम नहीं उठातीं.

नया रायपुर में कंपनी को लगभग मुफ्त जमीन मिली कि मरीजों के लिए स्तरीय कैंसर अस्पताल बनाएगी. सब कुछ टांय टांय फिस्स निकला. रायगढ़ कांग्रेसी उद्योगपति नवीन जिंदल की गिरफ्त में है जैसे बाज के जबड़े में बस्तर की मैना. रायगढ़ का नाम जिंदलनगर कर दिए जाने से उद्योगपति के प्रति न्याय होगा. आरोपों के अनुसार उसके कारिंदों द्वारा बुरी तरह पीटे गए पर्यावरण कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल का विश्व स्तर पर सम्मान हुआ.

सरकारी खदानों पर बाहरी कोलमाफियाओं की गिद्धदृष्टि और षड़यंत्रों का भंडाफोड़ खुद सुप्रीम कोर्ट कर रहा है. माफियाओं के समर्थन में दस्तखत करते पूर्वप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पूरा देश भ्रष्टाचार करने के लिए हरा भरा खेत दिखाई देता था. उनके तथाकथित चरित्र का भोलापन बयान करने बुद्धिजीवी भी सामने नहीं आए जो उनसे उपकृत होते रहे. बेचारी बेटी ने अपनी पुस्तक ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल‘ में पिता का बचाव पक्ष के वकील की तरह जनअदालत में करने की जुगत बिठाई.

किसानों की जमीनों को डर, आतंक, लालच या मंत्रियों, अधिकारियों की शह पर गुजरात, पंजाब और हरियाणा आदि के लोग खरीद रहे हैं. स्थानीय किसान पिछड़े इलाकों में धकियाए जा रहे हैं. खेती की भूमि सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी सिकुड़ रही है. खनिजों के ठेके बाहर की कंपनियों के पक्ष में आवंटित होते हैं. कच्चे माल की सुविधा लेते अधिकांश विद्युत संयंत्र बाहर की कंपनियों ने लगाए हैं. कई में राजनेताओं की हिस्सेदारी बताई जाती है.

सबसे बड़ा अभिशाप बाहरी नक्सली नेतृत्व और बाहरी मानव अधिकार नेताओं का है. भौंचक आदिवासी केवल दर्शक हैं. सरकार और नक्सलवादियों की गोलियों के बीच उनकी छाती है. कोई आर्थिक योजना नहीं है जिसमें केवल छत्तीसगढ़ के बेकार युवजनों के लिए नौकरियों और रोजगार को पर्याप्त संख्या में आरक्षण हो. प्रदेश की उच्चतर सेवाओं तथा न्यायपालिका में बाहरी व्यक्तियों का दबदबा है. उनके वंशज तक सरकार के ठेकेदार, प्रतिनिधि या वकील बने लाभ उठा रहे हैं. ईमानदार छबि वाले अधिकारी नियमों को तोड़ मरोड़कर राज्य के सलाहकार होते हैं. राजनीतिज्ञों और कार्यकर्ताओं को बाजार की ताकतों, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, लोकप्रशासन और तकनीकी विषयों का अपेक्षित ज्ञान नहीं होता.

स्थानीय नेतृत्व अर्धशिक्षित, दब्बू, संकोची और सहनशील है. सेवानिवृत्त अधिकारी गृहप्रदेशों में अट्टालिकाओं, कारखानों और व्यवसायों में अकूत पूंजी निवेश करते हैं. बाहरी तत्व छत्तीसगढ़ को चारागाह समझते अबाधित रूप से फलफूल रहे हैं. न्यायपालिका के सर्वोच्च में भी अतिथियों की आवाजाही सुनिश्चित है. सब कुछ बदस्तूर कायम है. कोई शोध नहीं होता. बहुतों को बोध नहीं होता. किसी को क्रोध नहीं होता.

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