राष्ट्र

तमिलों को न्याय सुनिश्चित कराए श्रीलंका

नई दिल्ली | एजेंसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को श्रीलंका से वहां रह रहे तमिल अल्पसंख्यकों के लिए समानता, न्याय, गरिमा और आत्मसम्मान सुनिश्चित कराने की अपील की. श्रीलंका के प्रमुख तमिल राजनीतिक दल तमिल नेशनल एलायंस, टीएनए के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद प्रधानमंत्री ने यह अपील की.

एक अधिकारी ने कहा, “प्रधानमंत्री ने श्रीलंका से तमिल समस्या के राजनीतिक समाधान की अपील की, जो इस समुदाय के लोगों की समानता, गरिमा, न्याय और आत्मसम्मान की आकांक्षाओं को पूरा करे और अखंड श्रीलंका के संविधान के अधीन हो.”

टीएनए ने श्रीलंका सरकार पर संविधान के 13वें संशोधन के प्रावधानों को कमजोर बनाने और उत्तरी और पूर्वी प्रांत के जनसांख्यिकी में बदलाव लाने के प्रयास का आरोप लगाया है.

मोदी ने टीएनए प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि भारत श्रीलंका के पूर्वोत्तर में रह रहे लोगों की सहायता, उनके पुनर्वास और निर्माण कार्यों के लिए काम करता रहेगा.

उन्होंने कहा कि भारत का ध्यान आवास, रोजगार, क्षमता निर्माण, शिक्षा, अस्पताल और ढांचागत निर्माण से संबंधित परियोजनाओं पर होगा.

बयान के अनुसार, “टीएनए नेताओं की यात्रा श्रीलंका सरकार और वहां के राजनीतिक दलों से संबंध जारी रखने के भारत सरकार के रुख तहत हुई है.”

दिग्गज तमिल राजनीतिज्ञ आर.संपंथन के नेतृत्व में आए प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की.

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वह श्रीलंका के मसले पर पहले की कांग्रेस नीत सरकार की नीतियों की अनदेखी नहीं करेगा.

प्रतिनिधिमंडल के नेता आर.संपंथन ने भारत पहुंचक कहा कि श्रीलंका में रहने वाले तमिलों के पूर्वज भारतीय ही हैं.

उन्होंने कहा, “उनकी संस्कृति समेत सबकुछ भारतीय है. इसलिए मुझे लगता है कि भारत ही वह एकमात्र देश है, जो बृहद भूमिका निभा सकता है.”

ढाई दशक तक चले संघर्ष के खत्म होने के बाद श्रीलंका तमिल समुदाय को मुख्यधारा में शामिल न करने और संघर्ष के अंत में हजारों निर्दोष तमिलों की हत्या के आरोपों से जूझ रहा है.

उल्लेखनीय है कि 1987 में भारत ने श्रीलंका के पूर्वोत्तर इलाकों में तमिल अलगाववाद खत्म करने के लिए सेना की तैनाती की थी. उन सैनिकों ने एलटीटीई से लड़ाई को खत्म करने में सफलता पाई और मार्च 1990 में वापस भारत लौट गए. इस दौरान 1200 भारतीय जवान शहीद हो गए.

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