राष्ट्र

राहुल को गुस्सा क्यों आता है?

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: राहुल गांधी का गुस्सा करना या चुप रहना दोनों सुर्खियों में रहता है. बुधवार को कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सांप्रदायिकता के सवाल पर चर्चा करने की मांग पर सदन में अपने गुस्से का इजहार अध्यक्ष की आसंदी तक पहुंच कर किया. इस पर भाजपा ने तंज कसा कि अपने पार्टी में उठ रहे विरोध के स्वर को दबाने के लिये राहुल गांधी ने यह सक्रियता दिखाई है.

राहुल गांधी के समर्थन तथा विरोध में उठते स्वरों के बीच इस तथ्य को भुला दिया गया कि उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा ने कैसे अपने पैर फैला लिये हैं. सहारनपुर में दो समुदायों के बीच में जमीन को लेकर शहर तनाव का माहौल बनता है तो मुरादाबाद के कांठ में लाऊडस्पीकर लगाने की मांग पर धमकियों का दौर चलता है. उससे पहले मुजफ्फरनगर में दंगा होता है. उत्तर प्रदेश में ही हत्या कर पेड़ पर लटकाने का दौर अलग से चल चुका है. इन सब के बीच में यदि विपक्षी दल का उपाध्यक्ष सदन में चर्चा की मांग करता है तो उसे गुस्सा करार दिया जाता है.

गौरतलब है कि बुधवार को लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक दंगे पर चर्चा कराए जाने और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ विधेयक सदन में लाने की मांग की.

कुछ मिनट बाद राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस सांसद लोकसभा अध्यक्ष की आसंदी के पास चले गए, जिसे देखते हुए अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी.

इतना ही नहीं राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष पर विपक्ष को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया जिसका सुमित्रा महाजन ने खंडन किया.इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग को लेकर कांग्रेस का समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के सदस्यों ने भी हंगामे में साथ दिया.

राहुल के तेवर से नाखुश वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण करने की सलाह देते हुए कहा कि पार्टी हताशा में है तो वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राहुल गांधी को अपने सांसदों को काबू में रखने की सलाह दी.

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.वीरप्पा मोइली ने कहा कि राहुल पहली बार सदन की आसंदी के नजदीक विरोध जताते हुए गए हैं. यह सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ उनके गुस्से को दर्शाता है.”

सदन से बाहर आने के बाद राहुल ने मीडिया के सामने अध्यक्ष पर विपक्ष को नहीं बोलने देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “हम चर्चा की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार को चर्चा मंजूर नहीं है. संसद में ऐसा माहौल था कि सिर्फ एक व्यक्ति की आवाज सभी देशवासियों की मानी जाएगी और सिर्फ एक की आवाज सुनी जा रही है.”

सदन में कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर विपक्ष ने विरोध जारी रखा. कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.

भाजपा सदस्यों ने भी अध्यक्ष की आसंदी के पास विपक्षी सांसदों के जमा हो जाने को लेकर विरोध जताया. महाजन ने हालांकि, उन्हें सीट पर बैठने की सलाह देते हुए कहा कि वह इस हालात से निपटने में सक्षम हैं.

कांग्रेस और अन्य सदस्यों ने ‘वी वांट जस्टिस’, ‘होश में आओ’ का नारा लगाया. हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही अपराह्न दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई.

देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर चर्चा कराए जाने की मांग को समर्थन देते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी के सदस्य भी अपनी सीट से उठ खड़े हुए.

लोकसभा में सरकार के खिलाफ आरोप लगाने के बाद राहुल गांधी ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की और इस दौरान आडवाणी ने उन्हें सलाह दी कि वह कांग्रेस सांसदों को सदन में संयमित रहने के लिए कहें.

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वे एक ऐसे विषय को मुद्दा बना रहे हैं, जो कोई मुद्दा है ही नहीं. जेटली ने कहा, “कांग्रेस इस बेमुद्दे को मुद्दा क्यों बना रही है? कारण स्पष्ट है कि पार्टी का एक वर्ग जो नेतृत्व में अक्षम है, तख्तापलट का सामना कर रहा है.”

भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी ने कहा, “राहुल गांधी का लोकसभा अध्यक्ष को पक्षपाती कहना दुर्भाग्यपूर्ण है. यह सिर्फ हताशा के अलावा और कुछ नहीं है.”

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि सरकार किसी भी बहस के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, “देश में शांति है, संसद में भी शांति कायम करें. हम किसी भी बहस के लिए तैयार हैं.”

राहुल के आरोप के जवाब में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बुधवार को कहा कि वह सदन के नियमों का पालन कर रही हैं और विपक्ष को नजरअंदाज नहीं कर रही हैं जैसा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया है. महाजन ने संसद के बाहर मीडियाकर्मियों से कहा, “सदन को चलाने के नियम तय किए गए हैं और मैं उन नियमों का पालन कर रही हूं. सदन में सभी दलों के सदस्यों को समान अवसर देने की मेरी कोशिश है.”

राजनीति के जानकारों का मानना है कि गुरुवार को इस मद्दे पर चर्चा हो सकती है क्योंकि यह दिन प्राइवेट मेंबरों के लिये मुकर्रर दिन है. वैसे भी देश की समस्याओं को लेकर जिसका सारे देश पर प्रभाव हो सकता है सदन में चर्चा करने की परंपरा रही है.

error: Content is protected !!