छत्तीसगढ़

कश्मीर में कैद है छत्तीसगढ़

रायपुर| विशेष संवाददाता: कश्मीर में बंधक बना कर रखे गये छत्तीसगढ़ के 42 मजदूर परिवारों की मुक्ति से सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है. कुछ दिनों पहले मौके पर पहुंची छत्तीसगढ़ के पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार और उनके सामने ही मजदूरों की पिटाई के बाद अब इस मुद्दे पर कोई बात भी नहीं करना चाहता.

बंधुआ मुक्ति मोर्चा को राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने कहा है कि उनके बताये पते पर कोई मजदूर नहीं पाया गया. जबकि उसी पते से मजदूर परिवारों ने ईंट भट्ठे के मालिक से बचकर किसी तरह फोन से इसकी जानकारी इस संवाददाता को दी है.

बंधक बनाए गए मजदूर परिवारों ने बताया कि ईंट-भट्टा का मालिक भागने की कोशिश करने पर जलते ईंट के भट्ठे में झोंक देने की बात कहता है, यही वजह है कि दिन में एक समय खाना खाकर भी सभी मजदूर काम करने को मजबूर हैं.

किसी तरह सितंबर माह में वहां से भागने में कामयाब रहे मजदूर अनिल खांडे ने बताया कि जम्मू के ईंट भट्ठों में उनके साथ जानवरों की तरह काम लिया जाता है. तय मजदूरी की दर से कम में काम करना उनकी मजबूरी है.

अनिल की पत्नी और तीन बच्चे अब भी जम्मू में फंसे हुए हैं. अनिल का परिवार पिछले सात महीनों से बंधक बना हुआ है. वह अपऩे 13 साल की बच्ची को याद करके रो पड़ता है. वह कहता है कि उसकी बेटी पर भट्ठा के ठेकेदार की बुरी नजर है और वह छेड़खानी का शिकार भी हो चुकी है.

अनिल खांडे की आंखों में आंसू हैं और होठों पर थरथराते हुये थोड़े-से शब्द-“ फागुन तिहार आगे साहब, मोर लईका मन कईसे होही..” अनिल का दावा है कि जम्मू में उनके परिवार के साथ साथ 42 मजदूर परिवारों को तरह-तरह की यातनांए दी जा रही हैं. अनिल आशंका जताते हुये कहते हैं- “डर है कि कहीं मेरे भागने की वजह से ठेकेदार मेरे पत्नी और बच्चों की हत्या न कर दे.”

वादे हैं, वादों का क्या
लगभग 2 महीने पहले 50 से अधिक मजदूर परिवारों को जम्मू से छुड़ाकर रायपुर लाया गया था. उस दौरान मुख्यमंत्री ने अपने आवास में उन्हें साड़ी भेंट करके उनसे वादा किया था कि एक माह के भीतर उनका पुनर्वास कर दिया जाएगा. लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा पर अफसरों ने अमल नहीं किया.

हालत ये है कि 50 में से 20 मजदूरों को ही अब तक पुनर्वास पैकेज का 20 हजार रूपए दिया गया है. बाकि मजदूरों का अब तक न तो जॉब कार्ड बन पाया, ना ही उन्हें राशन कार्ड मुहैया कराया गया है. इसी दौरान इनमें से गणेश राम नाम के मजदूर की मलेरिया से मौत हो गई. जब मजदूर की लाश घर से उठाई जा रही थी तब आनन फानन में श्रम विभाग के अधिकारी पुनर्वास के 20 हजार रूपए उसे देने पंहुचे थे.

कहीं अनहोनी न हो जाए
छुड़ाकर लाए गए मजदूरों में से रामसमारी (बदला हुआ नाम) ठेकेदारों के सामुहिक दुष्कर्म का शिकार हो गई थी. इस दुष्कर्म की वजह से उसके तीन माह के गर्भ का गर्भपात हो गया था. छत्तीसगढ़ में समुचित पुनर्वास नहीं हो पाने की वजह से उसे फिर से काम की तालाश में पलायन करना पड़ा.

बीते दिनों उसने हरियाणा से फोन पर काम करने की जानकारी बंधुआ मुक्ति मोर्चा के कार्यालय में दी थी. उसके बाद से ही रामसमारी का पता नहीं चल पा रहा है. बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने दुष्कर्म के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

पुलिस के लाजवाब बयान
गृहमंत्री ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा के दिल्ली कार्यालय को लिखे पत्र में कहा है कि बताये गए जगह पर मजदूर नहीं मिले हैं. जबकि इसी महीने जांजगीर जिले के दो पुलिस के जवान मजदूरों को कार्यकर्ता बंधुआ मुक्ति मोर्चा के प्यारेलाल दिवाकर के साथ छुड़ाने गए थे.

प्यारेलाल पर भट्ठा मालिक के गुर्गों ने जानलेवा हमला भी किया था. अब उसी जगह से लौटकर मजदूरों नहीं मिलने की बात कहना समझ से परे है.

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के निर्मल गोराना कहते हैं- “मजदूरों को छुड़ाने के लिए कई महीनों से बंधुआ मुक्ति मोर्चा छत्तीसगढ़ सरकार से पत्र व्यवहार कर रहा है. गृहमंत्री ने मुझे पत्र भेजकर कहा है कि बताए गए जगह पर मजदूर नहीं है. जबकि मैं स्वयं जाकर मजदूरों को उसी जगह से बाहर निकालने के लिए तैयार हूं. बशर्ते छत्तीसगढ़ पुलिस दो सिपाही भेजने के बजाय जम्मू की सरकार से समन्वय बनाए.”

छत्तीसगढ़ बंधुआ मुक्ति मोर्चा के एक और कार्यकर्ता प्यारेलाल दिवाकर भी पुलिस और गृहमंत्री के बयान को गलत बताते हैं-“पिछली बार जब हम दो पुलिस के जवानों के साथ मजदूरों को छुड़ाने गए थे तब ठेकेदार के गुर्गे मुझे पीटते रहे और पुलिस के जवान मूकर्दशक बनकर देख रहे थे. इसके बाद भी मैं पुलिस को फिर से उसी जगह पर ले जाने के लिए तैयार हूं.”

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