चाक से जीवन गढ रहा छवि
कोरबा | संवाददाता: छह साल पहले छत्तीसगढ़ के कोरबा के कुम्हार छविलाल कुम्हार के सामने रोजी रोटी चलाना एक चुनौती थी. परिवार में पीढी दर पीढी चली आ रही मिट्टी से बर्तन बनाने की कला की वह अनदेखी भी नही कर सकता था. आखिरकार यही उसके जीवन यापन का एकमात्र जरिया भी था. लंबे समय से उसके परंपरागत पेशे की सुध नही लिये जाने से खिन्न कुम्हार छविलाल भविष्य में इस पेशे से किनारा करने का मन बना रहा था.
समाज के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री तक जब कुम्हारों की दशा की बात पहुची. उन्होनें प्रदेश में माटीकला बोर्ड के स्थापना के साथ कुम्हारों की दशा सुधारने संवेदनशीलता दिखाई. इसी कड़ी में कुम्हारों को विद्युत चाक प्रदान किया गया. छविलाल भी उनमें से एक था. मुख्यमंत्री की पहल से मिले निःशुल्क चाक से मिट्टी का बर्तन के साथ अन्य सामग्री बनाने का काम करता है. बाजार में इसकी बिक्री से उसकी आर्थिक स्थिति पहले से कही बेहतर हो गई है.
छत्तीसगढञ के कोरबा शहर से लगे सीतामढी वार्ड में मिट्टी से बर्तन बनाने के परम्परागत व्यावसाय को जीवित रखने वाले अनेक परिवार रहते है. मिटटी गीला कर कच्चे बर्तन समेत अन्य सामग्रियां चाक से गढना,धूप में सुखाना फिर आग में पकाना इनकी रोज की दिनचर्या है. मौसम और तीज त्यौहारों के अनुरूप मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हार आज पहले से कही अधिक खुश नजर आते है.
ऐसे ही सीतामढी वार्ड का छविलाल कुम्हार है. छत्तीसगढ़ सरकार की सहायता से वे अपने पुश्तैनी काम को हंसी खुशी अंजाम देकर परिवार का जीवन यापन कर रहे है. छविलाल ने बताया कि मुख्यमंत्री की पहल से उसे वर्ष 2008 में विद्युत चलित चाक प्रदान किया गया था. यही चाक उसके जीवन का खेवैय्या बना हुआ है.
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के छविलाल ने बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी कि वे स्वयं विधुत चलित चाक बाजार से खरीद सके. जिस वक्त विद्युत चाक उसे निःशुल्क प्रदान किया गया उसकी कीमत बाजार में 12 हजार रूपये के आस-पास थी और यह हमारे प्रदेश में मिलता भी नही था. उस दौरान कुम्हारों को विद्युत चलित चाक देना मरते हुये व्यावसाय को पुनर्जीवित करने जैसा था.
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के छविलाल ने बताया कि आज उसकी स्थिति पहले से कही बेहतर है. गर्मी के दिनों में मटकी,सुराही के साथ दूसरे मौसम एवं तीज त्यौहार में दीये,पूजा से संबंधित पात्र, आदि बनाकर बाजार में बेचता है. जिससे उसकी अच्छी आमदनी हो जाती है. आर्थिक स्थिति भी पहले से कही बेहतर है. छविलाल का कहना है कि सरकारी सहायता नही मिलता तो शायद वे इस कार्य को इतने अच्छे से नही कर सकता था.