हिन्दी से UPSC में पक्षपात क्यों?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: शुक्रवार को हिन्दी माध्यम से पक्षपात पर दिल्ली में बवाल हुआ. हिन्दी माध्यम के छात्रों को आश्वासन दिया गया था कि यूपीएससी परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया जायेगा उसके बावजूद एटमिट कार्ड जारी कर दिया गया. इससे छात्रों में यह भावना उभरी कि यूपीएससी परीक्षा के पैटर्न में बदलाव नहीं किया जा रहा है.
नतीजन, छात्र सड़कों पर उतर आये तथा संसद में भी उनके समर्थन में राजनीतिक दलों ने हंगामा खड़ा कर दिया. इन तमाम विरोधों ने हिन्दी के छात्रों से यूपीएससी में किये जा रहे पक्षपात का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है. गौरतलब है कि 2011 से यूपीएससी की परीक्षा में बदलाव किया गया है. जिसके तहत यूपीएससी में 300 अंकों के वैकल्पिक विषय के स्थान पर 200 अंकों का अनिवार्य सीसैट विषय जोड़ दिया गया.
2011 से लागू सीसैट की परीक्षा अंग्रेजी में हुआ करती है. जिसका हिन्दी के छात्रों के लिये दिया जाने वाले अनुवाद विवादों में रहा है. इस अनुवाद से प्रश्न ही कुछ और बन जाता था. जिसका नतीजा यह हुआ कि हिन्दी माध्यम के छात्रों का यूपीएससी में चयनित होने की संख्या लगातार घटती गई तथा 2013 में मात्र 26 छात्र ही यूपीएससी में सफल हो सके. इसी के बाद से छात्रों ने इस सीसैट का विरोध करना शुरु कर दिया.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शुक्रवार को यूपीएससी के करीब 150 अभ्यर्थियों को उस समय हिरासत में ले लिया गया, जब वे संसद की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. यूपीएससी अभ्यर्थियों को मध्य दिल्ली में केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन के बाहर गिरफ्तार किया गया. सिविल सेवाओं के अभ्यार्थी सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट समाप्त करने की मांग कर रहे थे. वे इस टेस्ट को मानविकी और हिंदी पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थियों के साथ भेदभाव बता रहे हैं.
अभ्यर्थी अनुराग चतुर्वेदी ने बताया, “हमें जब तक लिखित में परीक्षा की तारीख आगे बढ़ाने और सीएसएटी परीक्षा समाप्त करने का आश्वासन नहीं मिल जाता, हम विरोध जारी रखेंगे.” इसी तरह से एक अन्य अभ्यर्थी आर.वी. यादव ने कहा, “हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और इसे दरकिनार किया जा रहा है. क्षेत्रीय भाषा जानने वाले विद्यार्थी स्वयं को लाचार महसूस करते हैं.”
विरोध-प्रदर्शन गुरुवार रात से तेज हो गया. उत्तरी दिल्ली के मुखर्जी नगर में शुक्रवार को भी करीब 500 विद्यार्थी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस मुद्दे को लेकर शुक्रवार को राज्यसभा की कार्रवाई भी बाधित हुई. यूपीएससी में हिन्दी के सवाल पर बहस को आगे बढ़ाने के पहले कुढ आकड़ों पर गौर करना बेहतर होगा. जिससे किसी नतीजे पर पहुंचने में सुविधा होगी.
यूपीएससी द्वारा जारी किये गये आकड़ों के अनुसार गैर अंग्रेजी भाषी छात्रों की भागीदारी उस प्रकार से रही- वर्ष 2008 में 5,082, वर्ष 2009 में 4,839, वर्ष 2010 में 4,156, वर्ष 2011 में 1,682 थी. इसी प्रकार से 117 तेलगु वाले छात्रों ने वर्ष 2008 यूपीएससी की परीक्षा दी जो 211 में गिरकर 29 हो गई. तमिल वाले 98 छात्रों ने वर्ष 2008 में इसमे भाग लिया जो 2011 में गिरकर 14 हो गई. कन्नड़ वाले 14 छात्रों ने वर्ष 2008 में भाग लिया था जो 2011 में गिरकर मात्र 5 रह गई थी.
इसके विपरीत अंग्रजी माध्यम वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ती गई. यूपीएससी की परीक्षा में अँग्रेजी माध्यम वाले 50.57 फीसदी छात्रों ने परीक्षा दी थी जो 2009 में बढ़कर 54.50 फीसदी, 2010 में 62.23 फीसदी तथा 2011 में 82.93 फीसदी हो गई. आकड़ों से जाहिर है कि यूपीएससी में अंग्रेजी माध्यम वाले छात्रों की संख्या 2011 तक लगातार बढ़ती गई. हैरत की बात है कि उसके बावजूद 2011 में सीसैट को यूपीएससी परीक्षा में शामिल कर लिया गया.
आकड़े, जो कभी झूठ नहीं बोलते हैं बयां कर रहें हैं कि मामला केवल हिन्दी भाषी छात्रों का नहीं बल्कि गैर अंग्रेजी भाषी छात्रों का है. यूपीएससी परीक्षा में अंग्रेजी को वरीयता दी जा रही है यह साफ है. याद कीजिये की अंग्रेजों के जमाने में लार्ड मैकाले ने जो शिक्षा पद्धति लागू की थी उसका उद्देश्य अंग्रेजी हुकूमत के लिये क्लर्को का उत्पादन करना था. उस समय आईसीएस या इंडियन सिविल सर्विसेस में आने वाले आभिजात्य वर्ग के लोग हुआ करते थे.
यूपीएससी में अंग्रेजी माध्यम को वरीयता देने का परिणाम यह होगा कि केवल आज के आभिजात्य वर्ग के लिये आईएएस, आईपीएस बनने के लिये आरक्षण लागू करना. जाहिर है कि इससे हिन्दी भाषी छात्रों का गुस्सा भड़क उठा है. हालांकि, कार्मिक राज्य मंत्री ने सदन में आश्वासन दिया है कि हफ्ते भर में इसका समाधान करने की कोशिश की जायेगी. उसी समाधान पर यूपीएससी में हिन्दी भाषा छात्रों का भविष्य टिका हुआ है.
एक बिन्दु और है जिस पर चर्चा करनी आवश्यक है वह है, आईएएस बनने के बाद क्या जनता से उनकी समस्याओं से रूबरू होने के लिये अंग्रेजी भाषा किसी तरह से मदद करता है. क्या स्थानीय जनता अंग्रेजी में बात करती है. यदि नहीं तो फिर यूपीएससी की परीक्षा में अंग्रेजी को वरीयता क्यों दी जा रही है.